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58 सालों से अनोखे तरीके से यहां हो रही राम भक्ति, दूर-दूर तक है इस अनूठी परिपाटी के चर्चे - Chhindwara Goswami Tulsidas Jayanti - CHHINDWARA GOSWAMI TULSIDAS JAYANTI

छिंदवाड़ा के चौरई में गोस्वामी तुलसीदास की जयंती पारंपरिक तरीके से मनाई जाती है. यहां सावन के महीने में पिछले 58 सालों से ये कार्यक्रम किया जा रहा है, जिसमें कई तरह की सांस्कृतिक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है.

CHHINDWARA GOSWAMI TULSIDAS JAYANTI
छिंदवाड़ा के चौरई में गोस्वामी तुलसीदास की जयंती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 5, 2024, 8:26 PM IST

छिंदवाड़ा: सावन के महीने का मतलब शिव भक्ति और आराधना का महीना होता है. लेकिन कुछ भक्ति और आराधना के ऐसे तरीके होते हैं कि वह मिसाल बन जाते हैं. ऐसी ही एक कहानी है छिंदवाड़ा अंतर्गत चौरई की है जहां, पिछले 58 सालों से सावन के महीने में गोस्वामी तुलसीदास जयंती पारंपरिक तरीके से मनाई जाती है. जिसमें कई तरह की अनोखी और सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है. इसलिए कहा जाता है कि इस कार्यक्रम की चर्चा पूरे देश में होती है.

TULSI JAYANTI CELEBRATION
तुलसीदास जयंती की 1967 से शुरू हुई परंपरा आज भी जीवित (ETV Bharat)

1967 से शुरू हुई परंपरा आज भी जीवित

बताया जाता है कि 58 साल पहले चौरई के माता मंदिर में 1967 में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाने का सिलसिला शुरू हुआ था. गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज का जन्म सावन में हुआ था. इसलिए उनके द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के अखंड पाठ की शुरुआत सावन के पहले दिन से ही जाता है. यह कार्यक्रम लगातार 21 दिनों तक चलता है. इससे एक सप्ताह पूर्व पारंपरिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.

CHHINDWARA UNIQUE RAM DEVOTION
58 सालों से अनोखी रामभक्ति (ETV Bharat)

सम्मेलन में देशभर की मंडली लेती हैं हिस्सा

रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती के मौके पर 21 दिनों तक 24 घंटे चलने वाले अखंड रामायण पाठ का समापन पूर्णाहुति के साथ किया जाता है. इसके साथ ही ग्रामीण परिवेश का सबसे मुख्य झांझे भजन प्रतियोगिता और फिर ग्रामीण इलाकों का सबसे प्रमुख नृत्य शैला आयोजित होता है. वहीं, इस आयोजन में अखिल भारतीय स्तर का मानस पाठ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसमें देशभर के अलग-अलग प्रान्तों से मानस मंडली पहुंचती है.

TULSI JAYANTI PRESERVING HERITAGE
तुलसीदास जयंती पर सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन (ETV Bharat)

ये भी पढ़ें:

सावन में इन चीजों का करें दान, महादेव की बरसेगी कृपा, खूब होगी तरक्की

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विरासत को सहेजने की कोशिश

चौरई वरिष्ठ नागरिक नूरसिंह राय ने बताया कि "हमारे बुजुर्गों द्वारा प्रारंभ की गई एक परंपरा जो आज भव्य स्वरूप में हम सभी के सामने है. 1967 से चौरई नगर से ये जयंती निरंतर मनाई जा रही है. 58 साल पहले धर्म के प्रचार के उद्देश्य से शुरू हुई यात्रा, अब विरासत को सहेजने का प्रयास भी कर रही है. इस साल यह आयोजन 12 अगस्त को किया जाएगा."

उन्होंने बताया कि राम भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी सनातन धर्म के वो महान संत हैं, जिन्होंने रामचरितमानस लिख कर मानव जाति पर एक उपकार किया है. यह ग्रंथ आने वाली पीढ़ी को राम जी के मर्यादा को समझने में मदद करेगा और उन्हें नई दिशा प्रदान करेगा. तुलसी जयंती समारोह अपने आप में एक अद्भुत अलौकिक समारोह है, जहां भारतीय संस्कृति और प्राचीन सभ्यता को जीवित रखा है. इसमें आयोजित प्रतियोगिता भारत की प्राचीनतम और विशेष प्रतियोगिता है. इसकी शुरुआत 21 दिवसीय अखंड रामचरितमानस पाठ से होती है, जिसमें 21 दिन 24 घंटे लगातार मानस पाठ किया जाता है.

भारतीय संस्कृति की कुछ इस प्रकार की प्रतियोगिता जो आज विलुप्त होने की कगार पर हैं, उन्हें जीवित रखने का काम तुलसी जयंती कर रही है. जिनमे झांझे प्रतियोगिता, भजन प्रतियोगिता, शैला प्रतियोगिता शामिल है. इन सभी प्रतियोगिता में आस पास के गांवों सहित पड़ोसी जिले तक के प्रतिभागी भाग लेते हैं और इस आयोजन को भव्य रूप देते हैं.

छिंदवाड़ा: सावन के महीने का मतलब शिव भक्ति और आराधना का महीना होता है. लेकिन कुछ भक्ति और आराधना के ऐसे तरीके होते हैं कि वह मिसाल बन जाते हैं. ऐसी ही एक कहानी है छिंदवाड़ा अंतर्गत चौरई की है जहां, पिछले 58 सालों से सावन के महीने में गोस्वामी तुलसीदास जयंती पारंपरिक तरीके से मनाई जाती है. जिसमें कई तरह की अनोखी और सांस्कृतिक प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है. इसलिए कहा जाता है कि इस कार्यक्रम की चर्चा पूरे देश में होती है.

TULSI JAYANTI CELEBRATION
तुलसीदास जयंती की 1967 से शुरू हुई परंपरा आज भी जीवित (ETV Bharat)

1967 से शुरू हुई परंपरा आज भी जीवित

बताया जाता है कि 58 साल पहले चौरई के माता मंदिर में 1967 में रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाने का सिलसिला शुरू हुआ था. गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज का जन्म सावन में हुआ था. इसलिए उनके द्वारा रचित श्री रामचरितमानस के अखंड पाठ की शुरुआत सावन के पहले दिन से ही जाता है. यह कार्यक्रम लगातार 21 दिनों तक चलता है. इससे एक सप्ताह पूर्व पारंपरिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.

CHHINDWARA UNIQUE RAM DEVOTION
58 सालों से अनोखी रामभक्ति (ETV Bharat)

सम्मेलन में देशभर की मंडली लेती हैं हिस्सा

रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती के मौके पर 21 दिनों तक 24 घंटे चलने वाले अखंड रामायण पाठ का समापन पूर्णाहुति के साथ किया जाता है. इसके साथ ही ग्रामीण परिवेश का सबसे मुख्य झांझे भजन प्रतियोगिता और फिर ग्रामीण इलाकों का सबसे प्रमुख नृत्य शैला आयोजित होता है. वहीं, इस आयोजन में अखिल भारतीय स्तर का मानस पाठ प्रतियोगिता आयोजित की जाती है, जिसमें देशभर के अलग-अलग प्रान्तों से मानस मंडली पहुंचती है.

TULSI JAYANTI PRESERVING HERITAGE
तुलसीदास जयंती पर सांस्कृतिक प्रतियोगिता का आयोजन (ETV Bharat)

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विरासत को सहेजने की कोशिश

चौरई वरिष्ठ नागरिक नूरसिंह राय ने बताया कि "हमारे बुजुर्गों द्वारा प्रारंभ की गई एक परंपरा जो आज भव्य स्वरूप में हम सभी के सामने है. 1967 से चौरई नगर से ये जयंती निरंतर मनाई जा रही है. 58 साल पहले धर्म के प्रचार के उद्देश्य से शुरू हुई यात्रा, अब विरासत को सहेजने का प्रयास भी कर रही है. इस साल यह आयोजन 12 अगस्त को किया जाएगा."

उन्होंने बताया कि राम भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी सनातन धर्म के वो महान संत हैं, जिन्होंने रामचरितमानस लिख कर मानव जाति पर एक उपकार किया है. यह ग्रंथ आने वाली पीढ़ी को राम जी के मर्यादा को समझने में मदद करेगा और उन्हें नई दिशा प्रदान करेगा. तुलसी जयंती समारोह अपने आप में एक अद्भुत अलौकिक समारोह है, जहां भारतीय संस्कृति और प्राचीन सभ्यता को जीवित रखा है. इसमें आयोजित प्रतियोगिता भारत की प्राचीनतम और विशेष प्रतियोगिता है. इसकी शुरुआत 21 दिवसीय अखंड रामचरितमानस पाठ से होती है, जिसमें 21 दिन 24 घंटे लगातार मानस पाठ किया जाता है.

भारतीय संस्कृति की कुछ इस प्रकार की प्रतियोगिता जो आज विलुप्त होने की कगार पर हैं, उन्हें जीवित रखने का काम तुलसी जयंती कर रही है. जिनमे झांझे प्रतियोगिता, भजन प्रतियोगिता, शैला प्रतियोगिता शामिल है. इन सभी प्रतियोगिता में आस पास के गांवों सहित पड़ोसी जिले तक के प्रतिभागी भाग लेते हैं और इस आयोजन को भव्य रूप देते हैं.

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