बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को एक कलंक की तरह बताया है. कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यह एक ऐसी सोच है जो वेस्टर्न कंट्री से आयातित दर्शन को दर्शाता है. यह भारतीय सिद्धांतों की अपेक्षाओं के विपरीत है. वर्तमान दौर में विवाह की संस्था लोगों को नियंत्रित नहीं करती है जैसा कि पहले किया करती थी.
लिव इन रिलेशनशिप से से जुड़े मामले में कोर्ट की टिप्पणी: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है. यह पूरा मामला एक बच्चे के कस्टडी से जुड़ा हुआ था जिसका जन्म लिव इन रिलेशनशिप से हुआ था. इस बच्चे की कस्टडी को न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी और न्यायमूर्ति संजय एस अग्रवाल की खंडपीठ ने खारिज कर दिया. यह आदेश 30 अप्रैल को पारित किया गया था.
"समाज के कुछ संप्रदायों में अपनाया जाने वाला लिव-इन रिलेशनशिप अभी भी भारतीय संस्कृति में एक कलंक के रूप में जारी है. क्योंकि यह भारतीय सिद्धांतों की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत एक आयातित दर्शन है. यह वेस्टर्न कंट्री से लाई गई सोच है.": छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
लिव इन रिलेशनशिप के इस केस को समझिए: यह पूरा मामला दंतेवाड़ा के एक 43 साल के शख्स अब्दुल हमीद सिद्दीकी से जुड़ा हुआ है. उसने एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी. जिसमें उसने कहा कि वह एक अलग धर्म की महिला के साथ लिव इन रिलेशनशिप में था. जिसने एक बच्चे को जन्म दिया.इसके बाद पिछले साल दिसंबर में दंतेवाडा़ की एक फैमिली कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी के लिए उनकी याचिका खारिज कर दी थी. जिसके बाद वह हाईकोर्ट में पहुंचे.
सिद्दीकी ने अपनी याचिका में कहा कि वह साल 2021 में धर्म परिवर्तन के बिना उससे शादी करने से पहले तीन साल तक महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था. 31 अगस्त, 2021 को उनके रिश्ते से एक बच्चे का जन्म हुआ. 10 अगस्त, 2023 को, उन्होंने मां और बच्चे को लापता पाया। उस वर्ष, उन्होंने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की जिसमें मांग की गई कि महिला को एचसी के समक्ष पेश किया जाए.महिला ने हाई कोर्ट को बताया था कि वह अपनी इच्छा से अपने माता-पिता के साथ रह रही है. उसके बाद यह केस दंतेवाड़ा परिवार अदालत में पहुंचा. यहां कोर्ट ने बच्चे की कस्टडी अब्दुल हमीद सिद्दीकी को नहीं दी. जिसके बाद उसने हाईकोर्ट का रुख किया.
हाईकोर्ट में दोनों पक्षों के बीच हुई बहस: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में दोनों पक्षों की ओर से बहस हुई. कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अब्दुल हमीद सिद्दीकी के वकील ने कहा कि दोनों ने स्पेशल मैरेज एक्ट 1954 के तहत शादी की थी. यह शादी एक इंटर रिलीजन मिलन था. वकील ने दावे के साथ कहा कि मुस्लिम कानून के तहत सिद्दीकी ने दूसरी शादी की अनुमति पाई थी. इसलिए उसका क्लाइंट बच्चे की कस्टडी का हकदार है क्योंकि वह प्राकृतिक अभिभावक है. सिद्दीकी के वकील ने दंतेवाड़ा फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की.
महिला की वकील ने क्या तर्क दिया: इस सुनवाई के दौरान महिला की वकील ने तर्क दिया कि शादी के महिला ने धर्म परिवर्तन नहीं किया है. इसलिए वैध दूसरी शादी का दावा करना और पहली पत्नी के रहते हुए इसे विशेष विवाह अधिनियम1954 के दायरे में लाना स्वीकार्य नहीं है. ऐसी स्थिति में सिद्दीकी लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे के लीगल गार्जियन होने का दावा नहीं कर सकते.
हाईकोर्ट ने सिद्दीकी की याचिका की खारिज: इस केस में हाईकोर्ट ने सिद्दीकी की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि फैमिली कोर्ट के इस फैसले पर वह रोक लगाने को इच्छुक नहीं है.
"पर्सनल लॉ के प्रावधानों को किसी भी अदालत के समक्ष तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक कि इसे प्रथा के रूप में पेश नहीं किया जाता और साबित नहीं किया जाता.समाज के बारीकी से निरीक्षण से पता चलता है कि पश्चिमी देशों के सांस्कृतिक प्रभाव के कारण विवाह की संस्था अब लोगों को पहले की तरह कंट्रोल नहीं करती है. इस महत्वपूर्ण बदलाव और वैवाहिक कर्तव्यों के प्रति उदासीनता ने संभवतः लिव-इन की अवधारणा को जन्म दिया है. ऐसे रिश्तों में महिलाओं को समझना और उनकी रक्षा करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अक्सर लिव-इन रिश्तों में साथी द्वारा शिकायतकर्ता और हिंसा की शिकार होती हैं.विवाहित पुरुष के लिए लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर निकलना बहुत आसान है. ऐसे मामले में अदालतें ऐसे संकटपूर्ण लिव-इन रिलेशनशिप से बचे लोगों और ऐसे रिश्ते से पैदा हुए बच्चों की कमजोर स्थिति पर अपनी आंखें बंद नहीं कर सकती हैं": छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट
इस तरह कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को लेकर टिप्पणी में इसे कलंक कहा है. अदालत ने इस पश्चिमी देशों और सभ्यता से लाई गई सोच बताया है. कोर्ट ने यह भी माना है कि विवाह नाम की संस्था अब पहले की तरह लोगों को कंट्रोल कर पाने में सक्षम नहीं है.
सोर्स: पीटीआई