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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका, दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग का नहीं होगा गर्भपात - Chhattisgarh High Court

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 29, 2024, 10:43 PM IST

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राजनांदगांव की दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग के गर्भपात कराने की याचिका को खारिज कर दिया है. साथ ही इसे पीड़िता के लिए खतरनाक बताया है.

Chhattisgarh High Court
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (ETV Bharat)

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग के गर्भवती होने पर परिजनों की ओर से गर्भपात कराने की अनुमति को लेकर लगाई गई याचिका खारिज कर दी है. विशेषज्ञों द्वारा गर्भपात करना पीड़िता के लिए खतरनाक होने के रिपोर्ट दिए जाने पर हाईकोर्ट ने ये महत्वपूर्ण फैसला लिया है.

गर्भपात से पीड़िता को हो सकता है खतरा: मामले में जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की कोर्ट में सुनवाई हुई. उन्होंने पीड़िता का विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम गठित कर जांच रिपोर्ट देने कहा था. 9 सदस्यों की टीम ने जांच में पाया कि 20 सप्ताह का गर्भ समाप्त किया जा सकता है. इसके अलावा विशेष परिस्थिति में 24 सप्ताह का गर्भ पीड़िता के जीवन रक्षा के लिए हो सकता है. इस मामले में पीड़िता 24 सप्ताह से अधिक की गर्भवती है. ऐसे में गर्भ खत्म करना उसके स्वास्थ्य के लिए घातक है. ऐसे में पीड़िता का सुरक्षित प्रसव कराया जाना उचित है.

कोर्ट ने याचिका की खारिज: जानकारी के मुताबिक पीड़िता का भ्रूण स्वस्थ्य होने के साथ ही उसमें किसी प्रकार की जन्मजात विसंगति नहीं है. मेडिकल रिपोर्ट में याचिकाकर्ता की गर्भावस्था की उम्र लगभग 32 सप्ताह है. डॉक्टरों ने राय दी है कि पीड़िता का सहज प्रसव की तुलना में गर्भ समाप्त करना अधिक जोखिम होगा. ऐसे में कोर्ट ने गर्भपात कराने की याचिका खारिज कर दी है.

भ्रूणहत्या कानूनी रूप से नहीं है स्वीकार्य: विशेषज्ञों के अभिमत के साथ ही हाईकोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा है कि जांच रिपोर्ट में इस गर्भकालीन आयु में गर्भावस्था को समाप्त करने से सहज प्रसव की तुलना में अधिक जोखिम हो सकता है. ऐसे में गर्भावस्था जारी रखें, भ्रूणहत्या न तो नैतिक होगी और न ही कानूनी रूप से स्वीकार्य है. कोर्ट ने गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन करने से इनकार कर दिया.

राज्य सरकारी उठाएगी खर्च: साथ ही कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म की शिकार नाबालिग पीड़िता को बच्चे को जन्म देना है. राज्य सरकार को सभी आवश्यक व्यवस्थाएं करने और सब खर्च वहन करने का निर्देश दिया गया है. यदि नाबालिग और उसके माता-पिता की इच्छा हो तो प्रसव के बाद बच्चा गोद लिया जाए तो राज्य सरकार कानून के लागू प्रावधानों के अनुसार आवश्यक कदम उठाएगी.

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गर्भपात से पीड़िता को हो सकता है खतरा: मामले में जस्टिस पार्थ प्रतीम साहू की कोर्ट में सुनवाई हुई. उन्होंने पीड़िता का विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम गठित कर जांच रिपोर्ट देने कहा था. 9 सदस्यों की टीम ने जांच में पाया कि 20 सप्ताह का गर्भ समाप्त किया जा सकता है. इसके अलावा विशेष परिस्थिति में 24 सप्ताह का गर्भ पीड़िता के जीवन रक्षा के लिए हो सकता है. इस मामले में पीड़िता 24 सप्ताह से अधिक की गर्भवती है. ऐसे में गर्भ खत्म करना उसके स्वास्थ्य के लिए घातक है. ऐसे में पीड़िता का सुरक्षित प्रसव कराया जाना उचित है.

कोर्ट ने याचिका की खारिज: जानकारी के मुताबिक पीड़िता का भ्रूण स्वस्थ्य होने के साथ ही उसमें किसी प्रकार की जन्मजात विसंगति नहीं है. मेडिकल रिपोर्ट में याचिकाकर्ता की गर्भावस्था की उम्र लगभग 32 सप्ताह है. डॉक्टरों ने राय दी है कि पीड़िता का सहज प्रसव की तुलना में गर्भ समाप्त करना अधिक जोखिम होगा. ऐसे में कोर्ट ने गर्भपात कराने की याचिका खारिज कर दी है.

भ्रूणहत्या कानूनी रूप से नहीं है स्वीकार्य: विशेषज्ञों के अभिमत के साथ ही हाईकोर्ट ने यह याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा है कि जांच रिपोर्ट में इस गर्भकालीन आयु में गर्भावस्था को समाप्त करने से सहज प्रसव की तुलना में अधिक जोखिम हो सकता है. ऐसे में गर्भावस्था जारी रखें, भ्रूणहत्या न तो नैतिक होगी और न ही कानूनी रूप से स्वीकार्य है. कोर्ट ने गर्भावस्था का चिकित्सकीय समापन करने से इनकार कर दिया.

राज्य सरकारी उठाएगी खर्च: साथ ही कोर्ट ने कहा है कि दुष्कर्म की शिकार नाबालिग पीड़िता को बच्चे को जन्म देना है. राज्य सरकार को सभी आवश्यक व्यवस्थाएं करने और सब खर्च वहन करने का निर्देश दिया गया है. यदि नाबालिग और उसके माता-पिता की इच्छा हो तो प्रसव के बाद बच्चा गोद लिया जाए तो राज्य सरकार कानून के लागू प्रावधानों के अनुसार आवश्यक कदम उठाएगी.

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