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गृह मंत्रालय ने लद्दाख के लिए तीन प्रमुख फैसले लिए: चेरिंग दोरजय लकरूक - CHERING DORJAY LAKROOK

लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजय लाक्रूक ने ईटीवी भारत के रिनचेन एंग्मो चुमिचान से बात की.

चेरिंग दोरजय लकरूक
चेरिंग दोरजय लकरूक (फाइल फोटो)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 9, 2024, 9:12 PM IST

लद्दाख: लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजय लकरूक ने खुलासा किया कि गृह मंत्रालय (MHA) ने लद्दाख के लिए तीन प्रमुख फैसले लिए हैं. इनमें सरकारी नौकरियों में लद्दाखियों के लिए 95 फीसदी आरक्षण, लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों (LAHDCs) में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण और भोटी और उर्दू को राज्य की भाषा के रूप में मान्यता देना शामिल है.

उन्होंने ईटीवी भारत से नौकरियों में 95 फीसदी आरक्षण पर चर्चा की. उन्होंने समझाया, "इसमें से 80 प्रतिशत जॉब्स लद्दाख की अनुसूचित जनजातियों के लिए रजिर्व होंगी, 10 प्रतिशत लद्दाख के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए, 4 फीसदी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ रहने वाले निवासियों के लिए और 1 पर्सेंट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होंगी.

उन्होंने आगे कहा, "लद्दाख के लिए एक अलग लोक सेवा आयोग की स्थापना के बारे में फिलहाल कोई स्पष्टता नहीं है. हमें उम्मीद है कि 15 जनवरी को होने वाली आगामी चर्चाएं अधिक जानकारी प्रदान करेंगी और स्थायी समाधान की दिशा में काम करेंगी."

चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा, "हालांकि यह चार सूत्री एजेंडे का हिस्सा नहीं है, लेकिन लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों में महिलाओं के लिए आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है. लद्दाख में महिलाओं की नीति और निर्णय लेने में सीमित भागीदारी रही है, जो एक उल्लेखनीय अंतर रहा है."

उन्होंने आगे कहा कि पंचायतों में महिलाओं के लिए पहले से ही 33 प्रतिशत आरक्षण है.पहाड़ी परिषदों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण था. अतीत में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति शासन और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी की कमी को उजागर करती है. यह नया विकास निस्संदेह लद्दाख की महिलाओं के लिए अच्छी खबर है.

भोटी और उर्दू को राज्य भाषा के रूप में नामित करने के निर्णय के बारे में उन्होंने कहा, "लेह जिले में, भोटी को राज्य भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग लंबे समय से चली आ रही है.खासकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने के बाद. इससे पहले जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्य में भोटी को कुछ मान्यता प्राप्त थी. यह भाषा हिमालय क्षेत्र में थोड़े बहुत बदलावों के साथ अरुणाचल प्रदेश तक बोली जाती है. इसके अलावा, संविधान की 8वीं अनुसूची में भोटी को शामिल करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा."

लद्दाख में राजनीति के बदलते स्वरूप पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "इससे पहले, लद्दाख के पास जम्मू-कश्मीर विधानसभा में चार निर्वाचित विधायक और दो एमएलसी थे और कैबिनेट में भी हमारा प्रतिनिधित्व था. पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में निर्णय लेने में हमारी भूमिका भी होती थी. हालांकि, बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद, हमें लगता है कि हमारा प्रतिनिधित्व खो गया है. यही कारण है कि हम राज्य का दर्जा मांग रहे हैं, ताकि हम लद्दाखियों की जरूरतों के हिसाब से कानून बना सकें."

उन्होंने कहा कि इस विधायी शक्ति की कमी को गहराई से महसूस किया जा रहा है. वर्तमान में हमारे पास केवल एक सांसद है, जबकि हमारी आबादी कम है, लद्दाख का विशाल भौगोलिक विस्तार एक सांसद के लिए पूरे क्षेत्र का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करना चुनौतीपूर्ण बनाता है. यही कारण है कि, हमारे चार-सूत्री एजेंडे के हिस्से के रूप में, हम बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए दो सांसदों की मांग कर रहे हैं.

26 अगस्त को गृह मंत्रालय के पांच नए जिलों की घोषणा और हाल ही में बजट में कटौती पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "पांच नए जिलों की घोषणा एक स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि यह हमारे बिखरे हुए क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है. यह कदम प्रशासन को लोगों के करीब लाएगा, जिससे बेहतर पहुंच और शासन सुनिश्चित होगा. हाल ही में बजट में कटौती को लेकर मेरा मानना ​​है कि यह कटौती इसलिए हुई क्योंकि यूटी प्रशासन आवंटित धन का पूरा उपयोग करने में असमर्थ था. आम तौर पर, बजट घटने के बजाय बढ़ता है. विशेष रूप से हिल काउंसिल के लिए कैपेक्स बजट में लगभग 110 करोड़ रुपये की कटौती अनुचित है. गृह मंत्रालय के साथ हमारी पिछली चर्चाओं के दौरान, इन निधियों को बहाल करने के बारे में विचार-विमर्श हुआ था."

अपने साक्षात्कार में उन्होंने कहा, "अभी आशावादी या निराश महसूस करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि बातचीत अभी भी जारी है. चार सूत्री एजेंडे के सबसे महत्वपूर्ण बिंदु- राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत समावेश- अनसुलझे हैं. ये महत्वपूर्ण मुद्दे हैं और इनके समाधान के बाद ही हम आकलन कर सकते हैं कि वार्ता सफल रही या नहीं।.बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार क्या पेशकश करती है. हमें उम्मीद है कि इस बार सरकार खुले दिल से सुनेगी और लद्दाख के लोगों की वास्तविक मांगों और आकांक्षाओं को पूरा करेगी.हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम इन लक्ष्यों के समर्थन में एकजुट हैं."

उन्होंने आगे कहा, "हमारी रणनीति के हिस्से के रूप में हमने चार सूत्री एजेंडे पर स्पष्ट ध्यान केंद्रित करते हुए वार्ता के पहले दौर की शुरुआत की और इस बात पर जोर दिया कि चर्चाओं की पूरी सीरीज इसी के इर्द-गिर्द केंद्रित होनी चाहिए. हमें उम्मीद है कि आगामी बैठकों में इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की जाएगी. हम सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए तैयार हैं."

यह भी पढ़ें- हम क्या 'लॉलीपॉप' खाएंगे? ममता बनर्जी ने बांग्लादेशी नेताओं पर कसा तंज, लोगों से की बड़ी अपील

लद्दाख: लेह एपेक्स बॉडी के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजय लकरूक ने खुलासा किया कि गृह मंत्रालय (MHA) ने लद्दाख के लिए तीन प्रमुख फैसले लिए हैं. इनमें सरकारी नौकरियों में लद्दाखियों के लिए 95 फीसदी आरक्षण, लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों (LAHDCs) में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण और भोटी और उर्दू को राज्य की भाषा के रूप में मान्यता देना शामिल है.

उन्होंने ईटीवी भारत से नौकरियों में 95 फीसदी आरक्षण पर चर्चा की. उन्होंने समझाया, "इसमें से 80 प्रतिशत जॉब्स लद्दाख की अनुसूचित जनजातियों के लिए रजिर्व होंगी, 10 प्रतिशत लद्दाख के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए, 4 फीसदी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) और नियंत्रण रेखा (एलओसी) के साथ रहने वाले निवासियों के लिए और 1 पर्सेंट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होंगी.

उन्होंने आगे कहा, "लद्दाख के लिए एक अलग लोक सेवा आयोग की स्थापना के बारे में फिलहाल कोई स्पष्टता नहीं है. हमें उम्मीद है कि 15 जनवरी को होने वाली आगामी चर्चाएं अधिक जानकारी प्रदान करेंगी और स्थायी समाधान की दिशा में काम करेंगी."

चेरिंग दोरजे लकरूक ने कहा, "हालांकि यह चार सूत्री एजेंडे का हिस्सा नहीं है, लेकिन लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषदों में महिलाओं के लिए आरक्षण एक महत्वपूर्ण कदम है. लद्दाख में महिलाओं की नीति और निर्णय लेने में सीमित भागीदारी रही है, जो एक उल्लेखनीय अंतर रहा है."

उन्होंने आगे कहा कि पंचायतों में महिलाओं के लिए पहले से ही 33 प्रतिशत आरक्षण है.पहाड़ी परिषदों में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण था. अतीत में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की अनुपस्थिति शासन और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी की कमी को उजागर करती है. यह नया विकास निस्संदेह लद्दाख की महिलाओं के लिए अच्छी खबर है.

भोटी और उर्दू को राज्य भाषा के रूप में नामित करने के निर्णय के बारे में उन्होंने कहा, "लेह जिले में, भोटी को राज्य भाषा के रूप में मान्यता देने की मांग लंबे समय से चली आ रही है.खासकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने के बाद. इससे पहले जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्य में भोटी को कुछ मान्यता प्राप्त थी. यह भाषा हिमालय क्षेत्र में थोड़े बहुत बदलावों के साथ अरुणाचल प्रदेश तक बोली जाती है. इसके अलावा, संविधान की 8वीं अनुसूची में भोटी को शामिल करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा."

लद्दाख में राजनीति के बदलते स्वरूप पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "इससे पहले, लद्दाख के पास जम्मू-कश्मीर विधानसभा में चार निर्वाचित विधायक और दो एमएलसी थे और कैबिनेट में भी हमारा प्रतिनिधित्व था. पूर्ववर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में निर्णय लेने में हमारी भूमिका भी होती थी. हालांकि, बिना विधानसभा के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद, हमें लगता है कि हमारा प्रतिनिधित्व खो गया है. यही कारण है कि हम राज्य का दर्जा मांग रहे हैं, ताकि हम लद्दाखियों की जरूरतों के हिसाब से कानून बना सकें."

उन्होंने कहा कि इस विधायी शक्ति की कमी को गहराई से महसूस किया जा रहा है. वर्तमान में हमारे पास केवल एक सांसद है, जबकि हमारी आबादी कम है, लद्दाख का विशाल भौगोलिक विस्तार एक सांसद के लिए पूरे क्षेत्र का प्रभावी ढंग से प्रतिनिधित्व करना चुनौतीपूर्ण बनाता है. यही कारण है कि, हमारे चार-सूत्री एजेंडे के हिस्से के रूप में, हम बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जिले के लिए दो सांसदों की मांग कर रहे हैं.

26 अगस्त को गृह मंत्रालय के पांच नए जिलों की घोषणा और हाल ही में बजट में कटौती पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, "पांच नए जिलों की घोषणा एक स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि यह हमारे बिखरे हुए क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण है. यह कदम प्रशासन को लोगों के करीब लाएगा, जिससे बेहतर पहुंच और शासन सुनिश्चित होगा. हाल ही में बजट में कटौती को लेकर मेरा मानना ​​है कि यह कटौती इसलिए हुई क्योंकि यूटी प्रशासन आवंटित धन का पूरा उपयोग करने में असमर्थ था. आम तौर पर, बजट घटने के बजाय बढ़ता है. विशेष रूप से हिल काउंसिल के लिए कैपेक्स बजट में लगभग 110 करोड़ रुपये की कटौती अनुचित है. गृह मंत्रालय के साथ हमारी पिछली चर्चाओं के दौरान, इन निधियों को बहाल करने के बारे में विचार-विमर्श हुआ था."

अपने साक्षात्कार में उन्होंने कहा, "अभी आशावादी या निराश महसूस करना जल्दबाजी होगी, क्योंकि बातचीत अभी भी जारी है. चार सूत्री एजेंडे के सबसे महत्वपूर्ण बिंदु- राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत समावेश- अनसुलझे हैं. ये महत्वपूर्ण मुद्दे हैं और इनके समाधान के बाद ही हम आकलन कर सकते हैं कि वार्ता सफल रही या नहीं।.बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार क्या पेशकश करती है. हमें उम्मीद है कि इस बार सरकार खुले दिल से सुनेगी और लद्दाख के लोगों की वास्तविक मांगों और आकांक्षाओं को पूरा करेगी.हमने यह स्पष्ट कर दिया है कि हम इन लक्ष्यों के समर्थन में एकजुट हैं."

उन्होंने आगे कहा, "हमारी रणनीति के हिस्से के रूप में हमने चार सूत्री एजेंडे पर स्पष्ट ध्यान केंद्रित करते हुए वार्ता के पहले दौर की शुरुआत की और इस बात पर जोर दिया कि चर्चाओं की पूरी सीरीज इसी के इर्द-गिर्द केंद्रित होनी चाहिए. हमें उम्मीद है कि आगामी बैठकों में इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विस्तार से चर्चा की जाएगी. हम सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए तैयार हैं."

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