समस्तीपुर: बिहार के समस्तीपुर जिले के कर्पूरी ग्राम में आज उत्सव का माहौल है. झोपड़ी के लाल जननायक कर्पूरी ठाकुर कर्पूरी ग्राम के रहने वाले थे. आज उनके गांव में जन्म शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है. लेकिन मंगलवार की रात जब यह खबर यहां के लोगों तक पहुंची कि 'जननायक' को भारत रत्न से नवाजा गया है, तो गांव में उत्सव जैसा माहौल हो गया. लोग एक दूसरे को बधाई देने लगे, मिठाइयां बंटने लगी. मानो ऐसा लगा कि कर्पूरी एक बार फिर से जीवित हो गए हों.
बेटे को फोन कर PM मोदी ने दी बधाई : कर्पूरी ठाकुर के परिवार के लोगों में भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. जेडीयू के राज्यसभा सांसद और उनके बेटे रामनाथ ठाकुर ने कहा कि आज बहुत खुशी का दिन है. भारत सरकार ने कर्पूरी ठाकुर को देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' दिया है. इस गांव की तरफ से, पंचायत की तरफ से, बिहारवासियों की तरफ से, पूरे देश के लोगों की तरफ से कृतज्ञता ज्ञापित करते है. उन्होंने कहा कि बुधवार सुबह प्रधानमंत्री मोदी का फोन आया था, उन्होंने बधाई दी.
''36 साल का संघर्ष है, अब जाकर उनके पिता को सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिया जा रहा है. मैंने इस संबंध में पीएम मोदी को चिट्ठी लिखी थी. आज जब उन्हें भारत रत्न मिलने की खबर मिली तो उन्हें काफी खुशी हुई हैं. 27 जनवरी को दिल्ली जा रहा हूं, पीएम मोदी से मुलाकात होगी.'' - रामनाथ ठाकुर, कर्पूरी ठाकुर के बेटे
'भारत रत्न' की खबर सुन नींद से जागा गांव : वहीं, ग्रामीण बताते है कि मंगलवार की रात जब जननायक कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न मिलने की घोषणा की गई, तब रात हो चुकी थी. कर्पूरी ठाकुर के बेटे भी भोजन के बाद सोने के लिए बिस्तर पर जा चुके थे. गांव के लोग भी सोने की तैयारी कर रहे थे. लेकिन जैसे ही उन्हें इस बात की खबर मिली मानो पूरा गांव नींद से जग गया, लोग घरों से बाहर आ गए. एक दूसरे को बधाई देने लगे. गांव के बड़े बुजुर्ग कहते है कि ''बिहार में गरीबों का ऐसा 'जननायक' नहीं हुआ. पीएम मोदी का धन्यवाद जिन्होंने उन्हें भारत रत्न से नवाजा हैं.''
''कर्पूरी ठाकुर यहां के लोगों के दिलों में बसे हैं. मानवता के कल्याण के लिए, आर्थिक विषमता दूर करने के लिए, समतामूलक समाज की स्थापना करने के लिए उन्होंने जो कदम उठाया, उसे हम नहीं भूल सकते हैं. आज समस्तीपुर और बिहार ही नहीं, पूरा भारत कर्पूयीमय हो गया है. सभी लोग उन्हें आदर और सम्मान के साथ याद करते हैं.'' - नंदलाल यादव, बिथान खैराकोट, समस्तीपुर
ऐसे थे कर्पूरी.. 'जाजिम पर नहीं बैठूंगा' : समस्तीपुर जिले के बिथान खैराकोट से कर्पूरी जयंती में पहुंचे ग्रामीण नंदलाल यादव उन दिनों को याद कहते है कि, कर्पूरी ठाकुर ऐसे नेता थे, जो परिवार से पहले जनता के प्रति समर्पित थे. जब से पता चला है कि कर्पूरी जी को भारत रत्न की उपाधि दी गई हैं. हर तरफ उत्सव का माहौल है. आज के नेताओं में नैतिक्ता नहीं है. वो कहते थे कि 'जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई' अर्थात जब तक खुद को दर्द ना हो, तब तक दूसरे के दर्द का अहसास नहीं होता है.
''मेरे यहां कर्पूरी ठाकुर तीन बार आए थे. उनके आने पर जब मैं चौकी (पलंग) पर जाजिम (चादर) डालने लगा तो उन्होंने कहा हटाइये, जनता जब तक जाजिम तक नहीं आएगी, कर्पूरी भी जाजिम तक नहीं बैठेगा. ऐसे थे कर्पूरी ठाकुर.'' - नंदलाल यादव, बिथान खैराकोट, समस्तीपुर
कौन थे कर्पूरी ठाकुर? : कर्पूरी ठाकुर का जन्म बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौंझिया गांव से साल 1924 को हुआ था. आज गांव को 'कर्पूरीग्राम कहा' जाता है. कर्पूरी के पिता एक किसान थे और वो नाई का काम भी करते थे. कर्पूरी ने अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया था. वो जेल भी गए थे. उन्होंने पहली बार में ही विधानसभा चुनाव जीता और उसके बाद कभी नहीं हारे.
न घर-जमीन, न गाड़ी… ऐसे थे कर्पूरी ठाकुर : कर्पूरी ठाकुर को बिहार की सियासत में सामाजिक न्याय की अलख जगाने वाला नेता माना जाता है. राजनीति में इतना लंबा सफ़र बिताने के बाद जब उनकी मृत्यु हुई तो अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक मकान तक उनके नाम नहीं था. ना तो पटना में, ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए.
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