नई दिल्ली : मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण विस्थापित हुए लोगों की संपत्तियों की सुरक्षा के संबंध में अदालत के आदेश का कथित तौर पर पालन न करने पर अवमानना कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया. शीर्ष कोर्ट ने कहा कि उसे भावनाओं में बहने के बजाय कानून के अनुसार काम करना होगा.
याचिकाकर्ताओं ने मामले में मणिपुर के मुख्य सचिव को प्रतिवादी बनाया था. मणिपुर का प्रतिनिधित्व करने वाली अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की अगुवाई वाली अवकाश पीठ के समक्ष कहा कि राज्य और केंद्र दोनों सरकारें जनता की चिंताओं को दूर करने के लिए सब कुछ कर रही हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अवमानना का कोई मामला नहीं बनता है. भाटी ने जोर देकर कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मामले को गर्म रखने का प्रयास किया जा रहा है और राज्य सरकार इस मुद्दे पर अद्यतन स्थिति रिपोर्ट दाखिल कर सकती है.
पीठ में न्यायमूर्ति पंकज मिथल भी शामिल थे. बेंच ने याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से सवाल किया, 'आपके अनुसार कौन अवमानना कर रहा है.' वकील ने जवाब दिया कि मुख्य सचिव और अन्य. और कहा कि उनके मुवक्किल मणिपुर से बाहर रह रहे हैं और इंफाल के आसपास कहीं भी जाने की स्थिति में नहीं हैं. इस पर बेंच ने कहा कि 'इसका मतलब यह नहीं कि मुख्य सचिव के खिलाफ नोटिस जारी किया जाए.'
भाटी ने पीठ के समक्ष कहा कि मणिपुर अभी भी असहज शांति की स्थिति में है और इस बात पर जोर दिया कि राज्य अपने नागरिकों और उनकी संपत्तियों की रक्षा करने के लिए बाध्य है.
वकील ने तर्क दिया कि पुलिस की मौजूदगी में उनकी संपत्तियों को लूट लिया गया है और अदालत से उनके दावों के संबंध में रिकॉर्ड वीडियो लाने को कहा. भाटी ने कहा कि अनर्गल आरोप लगाए जा रहे हैं. पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि मणिपुर के मुख्य सचिव सहित उत्तरदाताओं के खिलाफ अवमानना का मामला बनता है.
'अधिकारी संपत्तियों की रक्षा करने के लिए बाध्य' : पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता कानून के तहत उपलब्ध समाधान का सहारा ले सकते हैं और कहा कि अधिकारी संपत्तियों की रक्षा करने के लिए बाध्य हैं. बेंच ने कहा कि 'अधिकारियों पर इस तरह दबाव न बनाएं.' बेंच ने कहा कि 'आपके और आपकी संपत्तियों के प्रति सभी सहानुभूतियों की रक्षा की जानी चाहिए लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हमें उत्तरदाताओं को अवमानना नोटिस जारी करना होगा.'
पीठ से कोई राहत नहीं मिलने पर याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि अदालत आज जो संदेश गया है उसे देख सकती है. बेंच ने कहा कि 'हमें कानून के मुताबिक चलना होगा. हम भावनाओं पर नहीं चल सकते.'
पीठ ने यह आदेश उस याचिका पर पारित किया जिसमें दावा किया गया था कि उत्तरदाताओं ने जातीय संघर्ष के दौरान विस्थापित लोगों की संपत्तियों की सुरक्षा पर पिछले साल 25 सितंबर के आदेश की अवमानना की थी.