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अंग्रेज़ों की दुश्मन "बुलबुल",जानिए कौन थी वो महिला जिसे ब्रिटिश हुकूमत ने दी थी फांसी ? - Independence day 2024

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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Aug 14, 2024, 8:09 PM IST

Updated : Aug 14, 2024, 8:28 PM IST

Bulbul the enemy of the British : आज़ाद भारत के पहले ही कई कहानियां है जो अनकही, अनसुनी है. ऐसी ही एक कहानी है हरियाणा के पानीपत के रहने वाली बुलबुल की जिसने अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की और अंग्रेज़ कलेक्टर की हत्या कर डाली थी. इसके बाद अंग्रेज़ों ने बुलबुल को फांसी की सज़ा देते हुए सूली पर चढ़ा दिया था. जानिए पानीपत की बुलबुल की पूरी कहानी.

Bulbul the enemy of the British know who was the woman who was hanged by the British government before independence
वो महिला जिसे ब्रिटिश हुकुमत ने दी थी फांसी (Etv Bharat)
अंग्रेज़ों की दुश्मन "बुलबुल" (Etv Bharat)

पानीपत : 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस का उत्सव है, लेकिन आज अगर हम आज़ाद भारत में सांस ले पा रहे हैं तो इसके पीछे अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की कई कहानियां है. ऐसे ही एक कहानी है बुलबुल नाम की तवायफ की जिसने अंग्रेज़ों के सामने कभी घुटने नहीं टेके और हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गई.

लखनऊ से पानीपत आई थी बुलबुल : 1850 में लखनऊ के पुराने सिया मोहल्ले में पैदा हुई बुलबुल ने पिता मुमताज हसन की मौत के बाद अपनी मां हुस्न बानो और छोटी बहन गुरैया के साथ पानीपत के छोटे इमामबाड़े में आकर बस गई. आज इमामबाड़े वाले इलाके को महाजन गली के नाम से जाना जाता है. बचपन में बुलबुल ने अंग्रेजों के हाथों हिंदू मुसलमानों के साथ हुए अत्याचारों और संघर्षों को देखा जिसने बुलबुल के दिल में अंग्रेज़ों के खिलाफ नफरत के बीज को बो दिया.

तवायफ बन गई बुलबुल : धीरे-धीरे बुलबुल बड़ी होती चली गई. इस बीच पेट की आग और घर की जरूरतों ने बुलबुल की मां को तवायफ बनने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने पानीपत के बाजार में एक छोटा कोठा चलाना शुरु कर दिया. इसके बाद बुलबुल ने अपनी मां की तरह ही तवायफ का पेशा अपना लिया और वो पानीपत की मशहूर तवायफ में शुमार हो गई. उस वक्त बुलबुल के चर्चे ऐसे थे कि लोग दूर-दूर से बुलबुल के दीदार के लिए आया करते थे.

बुलबुल ने अंग्रेज कलेक्टर की हत्या कर डाली : इतिहासकार रमेश पुहाल ने बताया कि बुलबुल को अंग्रेजों से सख्त नफरत थी. सन 1888 में करनाल के अंग्रेज कलेक्टर बुलबुल के कोठे पर जा पहुंचे. उन्होंने बुलबुल को बताया कि वे करनाल के जिला कलेक्टर पीटर स्मिथ जॉन हैं और वे बुलबुल को चाहते हैं. इस दौरान कलेक्टर ने बुलबुल से उन्हें खुश करने की पेशकश की. बुलबुल उनकी मंशा को समझ गई और फिर कोठे पर मौजूद लड़कियों के साथ बुलबुल ने डंडों के साथ कलेक्टर पर हमला कर दिया. इसके बाद उसके हाथ-पांव बांधकर उसे सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया, जिससे कलेक्टर की मौत हो गई. इसके बाद पुलिस वहां पहुंची और बुलबुल को अरेस्ट कर लिया गया.

जज की बात नहीं मान फांसी पर चढ़ गई बुलबुल : पानीपत के रहने वाले लोग उस वक्त वकील पर वकील बुलाते रहे पर कोई भी बुलबुल को इस केस से बाहर नहीं निकाल पाया. 4 वकीलों ने अंग्रेज पुलिस और पुलिस के नकली गवाहों को अदालत में झूठा साबित कर भी दिया. सेशन सज विलियम हडसन ने बुलबुल के वकीलों को कहा कि वे बुलबुल के साथ अकेले में बात करना चाहते हैं. जब बुलबुल ने सेशन जज विलियम हडसन से बात की तो उन्होंने भी बुलबुल को सज़ा माफी देने के लिए एक रात हमबिस्तर होने की बात कही. आग बबूला हुई बुलबुल ने जज को जवाब दिया कि तुम्हारा भी वही हाल होगा, जो कलेक्टर का हुआ था. बुलबुल के जवाब से भड़के अंग्रेज जज ने बुलबुल को 10 मार्च 1889 को मौत की सज़ा सुना दी. लेकिन इसके बाद भी बुलबुल मायूस नहीं हुई. इसके बाद अंग्रेज़ों ने 8 जून 1889 को पानीपत के संजय चौक पर जल्लादों के हाथों बुलबुल को फांसी पर लटका दिया. बुलबुल हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गई.

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अंग्रेज़ों की दुश्मन "बुलबुल" (Etv Bharat)

पानीपत : 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस का उत्सव है, लेकिन आज अगर हम आज़ाद भारत में सांस ले पा रहे हैं तो इसके पीछे अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की कई कहानियां है. ऐसे ही एक कहानी है बुलबुल नाम की तवायफ की जिसने अंग्रेज़ों के सामने कभी घुटने नहीं टेके और हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गई.

लखनऊ से पानीपत आई थी बुलबुल : 1850 में लखनऊ के पुराने सिया मोहल्ले में पैदा हुई बुलबुल ने पिता मुमताज हसन की मौत के बाद अपनी मां हुस्न बानो और छोटी बहन गुरैया के साथ पानीपत के छोटे इमामबाड़े में आकर बस गई. आज इमामबाड़े वाले इलाके को महाजन गली के नाम से जाना जाता है. बचपन में बुलबुल ने अंग्रेजों के हाथों हिंदू मुसलमानों के साथ हुए अत्याचारों और संघर्षों को देखा जिसने बुलबुल के दिल में अंग्रेज़ों के खिलाफ नफरत के बीज को बो दिया.

तवायफ बन गई बुलबुल : धीरे-धीरे बुलबुल बड़ी होती चली गई. इस बीच पेट की आग और घर की जरूरतों ने बुलबुल की मां को तवायफ बनने पर मजबूर कर दिया. उन्होंने पानीपत के बाजार में एक छोटा कोठा चलाना शुरु कर दिया. इसके बाद बुलबुल ने अपनी मां की तरह ही तवायफ का पेशा अपना लिया और वो पानीपत की मशहूर तवायफ में शुमार हो गई. उस वक्त बुलबुल के चर्चे ऐसे थे कि लोग दूर-दूर से बुलबुल के दीदार के लिए आया करते थे.

बुलबुल ने अंग्रेज कलेक्टर की हत्या कर डाली : इतिहासकार रमेश पुहाल ने बताया कि बुलबुल को अंग्रेजों से सख्त नफरत थी. सन 1888 में करनाल के अंग्रेज कलेक्टर बुलबुल के कोठे पर जा पहुंचे. उन्होंने बुलबुल को बताया कि वे करनाल के जिला कलेक्टर पीटर स्मिथ जॉन हैं और वे बुलबुल को चाहते हैं. इस दौरान कलेक्टर ने बुलबुल से उन्हें खुश करने की पेशकश की. बुलबुल उनकी मंशा को समझ गई और फिर कोठे पर मौजूद लड़कियों के साथ बुलबुल ने डंडों के साथ कलेक्टर पर हमला कर दिया. इसके बाद उसके हाथ-पांव बांधकर उसे सीढ़ियों से नीचे फेंक दिया, जिससे कलेक्टर की मौत हो गई. इसके बाद पुलिस वहां पहुंची और बुलबुल को अरेस्ट कर लिया गया.

जज की बात नहीं मान फांसी पर चढ़ गई बुलबुल : पानीपत के रहने वाले लोग उस वक्त वकील पर वकील बुलाते रहे पर कोई भी बुलबुल को इस केस से बाहर नहीं निकाल पाया. 4 वकीलों ने अंग्रेज पुलिस और पुलिस के नकली गवाहों को अदालत में झूठा साबित कर भी दिया. सेशन सज विलियम हडसन ने बुलबुल के वकीलों को कहा कि वे बुलबुल के साथ अकेले में बात करना चाहते हैं. जब बुलबुल ने सेशन जज विलियम हडसन से बात की तो उन्होंने भी बुलबुल को सज़ा माफी देने के लिए एक रात हमबिस्तर होने की बात कही. आग बबूला हुई बुलबुल ने जज को जवाब दिया कि तुम्हारा भी वही हाल होगा, जो कलेक्टर का हुआ था. बुलबुल के जवाब से भड़के अंग्रेज जज ने बुलबुल को 10 मार्च 1889 को मौत की सज़ा सुना दी. लेकिन इसके बाद भी बुलबुल मायूस नहीं हुई. इसके बाद अंग्रेज़ों ने 8 जून 1889 को पानीपत के संजय चौक पर जल्लादों के हाथों बुलबुल को फांसी पर लटका दिया. बुलबुल हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गई.

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Last Updated : Aug 14, 2024, 8:28 PM IST
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