भोपाल (विश्वास चतुर्वेदी): राजधानी में 40 साल पहले यूनियन कार्बाइड कारखाने में जहरीली गैस का रिसाव होने के कारण 20 हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी और करीब पौने 6 लाख प्रभावित हुए थे. इस घटना को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में साल 1945 में हुए न्यूक्लियर अटैक की तरह देखा जाता है. जिसमें दोनों ही शहरों में करीब 3 लाख लोग मारे गए और लाखों लोग कैंसर समेत अन्य जन्मजात बीमारियों के शिकार हो गए. इसी तरह भोपाल में भी साल 1984 में विश्व का सबसे बड़ा औद्योगिक हादसा हुआ. अब 40 साल बाद इस जगह को सिटी फारेस्ट और हिरोशिमा की तर्ज पर स्मारक के रूप में विकसित करने की योजना पर काम चल रहा है.
'पहले मिट्टी की होगी जांच, फिर शुरू होगा काम'
गैस राहत एवं पुनर्वास विभाग के सहायक संचालक स्वतंत्र कुमार सिंह ने बताया कि "फैक्ट्री में हादसे के बाद बचे हुए रासायनिक कचरे को सरकार के अथक प्रयासों के बाद पीथमपुर में जलाने के लिए भेज दिया गया है. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में रखे जहरीले कचरे के साथ ही आसपास की मिट्टी भी भेजी गई है. अब एक बार फिर यहां की जमीन और धूल की लैब में जांच कराई जाएगी. जिससे पता चल सके, कि ये मिट्टी भी जहरीली तो नहीं है. इसके बाद सरकार की योजना यहां बृहद पौधरोपण करने की है. जिससे पुराने शहर में ऑक्सीजन का मेगा जोन बन सके. इसके साथ ही यूका फैक्ट्री में कन्वेंशन सेंटर, ऑडिटोरियम बनाने के साथ इसे स्मारक के रूप में विकसित किया जाएगा."
4 साल पहले भी बनी थी डीपीआर
बता दें कि 4 साल पहले तत्कालीन गैस राहत मंत्री विश्वास सारंग ने खाली पड़ी जमीन पर जापान के हिरोशिमा मेमोरियल की तर्ज पर पीस मेमोरियल बनाने का सुझाव दिया था. उस समय 65 एकड़ में फैली फैक्ट्री को री-डिजाइन करने के लिए करीब 370 करोड़ रुपये की डीपीआर तैयार की गई थी. यहां रिसर्च एंड डेवलपमेंट यूनिट, ओपन थिएटर, कम्युनिटी हाल का प्रस्ताव भी था. लेकिन उस समय यहां रखे हुए 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे की वजह से यह योजना मूर्त रूप नहीं ले सकी. अब यहां से रासायनिक कचरा हटने के बाद एक बार फिर यहां स्मारक और सिटी फारेस्ट बनाने पर चर्चा शुरू हो हुई है.
'यहां जंगल बनाने से होंगे 2 फायदे'
पर्यावरणविद डॉ सुभाष सी पांडे ने बताया कि "यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री परिसर में रिसर्च एंड डेवलपमेंट यूनिट और खाली जमीन पर सघन वन रोपण कार्यक्रम चलाना चाहिए. यदि यहां सरकार स्मारक और सिटी फारेस्ट बनाती है, तो यह गैस त्रासदी में मरने वालों के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी. क्योंकि यह जमीन अब लाखों लोगों की सासों की नई पनाहगाह बन सकेगा. यहां जंगल बनने से दो तरफा फायदा होगा. पहला कई ऐसी प्रजाति के पेड़ होते हैं जो जमीन के अंदर के कीटनाशक और प्रदूषण को अवशोषित करते हैं. इससे जमीन के अंदर बचा प्रदूषण खत्म होगा. इससे पुराने शहर का प्रदूषण कम होगा."
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वायु गुणवत्ता की भी हो रही मॉनिटरिंग
गैस राहत विभाग के अधिकारियों ने बताया कि यूका परिसर के 3 स्थानों पर वायु गुणवत्ता की मॉनिटरिंग के लिए उपकरण लगाए हैं. इनसे पीएम 10 और पीएम 2.5 के साथ नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड आदि की जांच की जा रही है. वहीं कचरा जिस स्थान पर रखा है, उस इलाके की धूल भी कचरे के साथ जाएगी. यदि कहीं कचरा गिरा है तो उस जगह की मिट्टी को भी पीथमपुर ले जाया जाएगा. इस मिट्टी और धूल की भी टेस्टिंग होगी.