भोपाल. मानव विकास को लेकर सालों से खोज चलती आ रही है. आदि मानव काल के इतिहास से जुड़े सैकड़ों प्रमाण मध्यप्रदेश के भोपाल और कई स्थानों पर मौजूद हैं, जो यह बताते हैं कि मध्यप्रदेश के जंगलों में तकरीबन 10 हजार सालों से इंसानों का वजूद रहा है. विश्व धरोहर स्थानों में शामिल भीमबेटका (Bhimbetika) में पाई गई रॉक पेंटिंग की उम्र करीबन दस हजार साल मानी जाती है, लेकिन यहां नए सिरे से मानव इतिहास की खोज की जा रही है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (archaeological survey of India) की टीम अब यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि यहां इंसानों की मौजूदगी कितने हजार साल पुरानी है. इसमें करीबन 1 साल का वक्त लगेगा।
13 पुरातत्वविदों की टीम कर रही अध्ययन
विश्व धरोहर साइट भीमबेटिका में अध्ययन के लिए एक नई साइट को चुना गया है. इसे सेक्टर नंबर बी-9 नाम दिया गया है. इस अध्ययन की जिम्मेदारी भोपाल सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् मनोज कुमार कुर्मी को दी गई है. उनके नेतृत्व में 13 पुरातत्वविदों (archaeologist) की टीम एब्सोल्यूट डेटिंग कर रही है. मनोज कहते हैं, 'कार्बन डेटिंग से यह तो पता लगाया जा चुका है कि शैलाश्रय पर पेंटिंग की उम्र 10 हजार साल पुरानी है, यानी 10 हजार साल पहले यहां इंसानों ने यह पेंटिंग बनाई थी, लेकिन यह पता नहीं लगाया जा सका कि इंसानों की गतिविधियां कितने हजार सालों से यहां थी.
10 हजार साल से भी ज्यादा वक्ते से थीं इंसानी गतिविधि?
मनोज आगे कहते हैं, इंसानों की गतिविधियां कितने हजार सालों से यहां थी यही इस अध्ययन के माध्यम से पता लगाने की कोशिश की जा रही है. इसके लिए एब्सोल्यूट डेटिंग की जा रही है. इसमें माइक्रो कंटूरिंग, ले आउटिंग, फोटोग्राफी और स्क्रिप्टिंग की जाती है. इसके बाद यहां मिलने वाले नमूनों को लैब भेजा जाएगा. एब्सोल्यूट डेटिंग (Absolute dating) के दौरान यह सावधानी रखी जाती है कि नमूनों पर प्रकाश न पड़े. इसके लिए कई उपकरणों का उपयोग किया जाता है. यही वजह है कि इस अध्ययन में काफी वक्त लगता है.
54 करोड़ साल पहले बने शैलाश्रय
भोपाल से सटे रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका शैलाश्रय की खोज दुनिया के जाने-माने पुरातत्वविद् विष्णु श्रीधर वाकणकर ने साल 1957 में की थी. शैलाश्रय यानी पत्थरों की ऐसी गुफा जिसमें मानव रुकते आए हैं. भीमबेटका में ऐसे 750 शैलाश्रय ज्ञात हैं. एएसआई के भोपाल सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् मनोज कहते हैं, 'इन शैल आश्रयों का निर्माण 54 करोड़ साल पहले हुआ था, उस वक्त पृथ्वी पर इंसान नहीं हुआ करते थे, बाद में इंसानों ने यहां अपना आश्रय बनाया. जानेमाने पुरातत्वविद डॉ. नारायण व्यास कहते हैं कि इन शैलाश्रय में इंसानों के रहने के कई प्रमाण हैं. आदिमानव यहां रूके और उनके द्वारा यहां कई रॉक पेंटिंग बनाई गईं, जिनकी उम्र कार्बन डेटिंग में 10 हजार साल तक आंकी गई है. साल 2003 में यूनेस्कों ने इसे विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया है.
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घने जंगल के बीच है चट्टानी गुफाएं
भीमबेटका नाम महाभारत से लिया गया है. किंवदंतियों में कहा जाता है कि पांडव अपने निर्वासन के दौरान यहां रूके थे. पांडवों में भीम की कदकाठी सबसे बड़ी थी और यहां के विशाल शैलाश्रय को देख इसे भीमबेटका नाम दे दिया गया. भीमबेटका यानी भीम के बैठने का स्थान.