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आजादी के बाद से इस गांव में नहीं हुआ कोई लड़ाई-झगड़ा, कभी नहीं गए पुलिस थाने, यह है बड़ी वजह - Katkauli Village

Katkauli Village Story: बिहार का ऐसा गांव है जहां के लोग आजादी के बाद से कभी पुलिस थाने नहीं गए. इसका कारण है कि यहां के लोग आपस में कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं करते हैं. इसके पीछे की कहानी इतनी भयावह है कि जानकर रूंह काप जाएंगी. इसके लिए आपको 250 साल पीछे जाना पड़ेगा. हैरान होने की बात नहीं है. ईटीवी भारत आज आपको इसी कहानी से रूबरू कराएगी जिस कारण यहां लोग एक दूसरे से बैर रखना छोड़ दिए और सभी मिलजुलकर रहते हैं. पढ़ें पूरी खबर.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 31, 2024, 6:05 AM IST

बक्सर जिले के कतकौली गांव की कहानी

बक्सरः बिहार के बक्सर शहर से मात्र 7 किलोमीटर दूर एक कतकौली गांव है. इस गांव की खासियत है कि यहां के लोग आजादी के बाद कभी पुलिस थाने नहीं गए और न ही कभी कोर्ट का चक्कर लगाए. यह जानकर हैरानी हो रही है लेकिन यही सच्चाई है. यह वही गांव है जहां 1764 में बक्सर का युद्ध हुआ था. लोगों ने इतना रक्तपात देखा था कि सभी का दिल पसीज गया था. तभी से इस गांव के लोगों ने कसम खाया था कि कभी एक दूसरे से बैर नहीं करना है और मिल जुलकर रहना है. बक्सर पुलिस भी इस गांव में कभी नहीं गई.

250 साल पुरानी युद्ध की कहानीः घटना 250 साल पुरानी है. जाहिर सी बात है कि इतने लंबे समय के बाद उस घटना का सटीक जानकारी कोई नहीं दे सकता है लेकिन अपने पूर्वजों से सुनी-सुनाई बातों पर लोग आज भी अमल करते हैं और एक दूसरे से लड़ाई झगड़े नहीं करते हैं. अपने पूर्वजों से मिली जानकारी के अनुसार स्थानीय लोग बताते हैं कि इस गांव में युद्ध हुआ था जिसकी निशानी आज भी मौजूद है. गांव की धरती खून से लाल हो गई थी.

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अंग्रेज और भातीय सेना में युद्धः 23 अक्टूबर 1764 की बात है. कतकौली गांव के मैदान में ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो, मुगलों और नवाबों की सेनाओं के बीच युद्ध लड़ा गया था. बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउदौला, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजी सेनाओं के बीच जंग हुई थी. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई. पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, बांग्लादेश की दीवानी और राजस्व अधिकार कंपनी के हाथों में चला गया था.

खून से रंग गई थी धरतीः इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों में हिंदू और मुसलमान दोनों थे. युद्ध खत्म होने के बाद चारो ओर लाशें दिखाई दे रही थी. पूरी धरती खून से रंग गई थी. हथियार बिखड़े हुए थे. यह देखकर गांव के लोगों की आंखे फटी की फटी रह गई थी. पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया था. काफी हिम्मत के बाद गांव के लोगों ने मारे गए सैनिकों के शव को उनके मजहब के अनुसार अंतिम संस्कार किए थे.

कुएं में दफन हुए थे सैनिक के शवः स्थानीय लोग बताते हैं कि मुसलमान सैनिक को गांव के बाहर एक विशाल कुएं में दफन किया गया था. हिंदू सैनिकों के शवों को गांव के उत्तर दिशा में 2 किलोमीटर दूर स्थित जीवनदायिनी गंगा में प्रवाहित कर दिया गया था. शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में उस समय एक बरगद का वृक्ष कुएं पर लगाया गया था. आज भी वह कुआं और वृक्ष लोगों युद्ध की खौफनाक याद दिलाती है.

बक्सर जिले के कतकौली गांव का कुआं
बक्सर जिले के कतकौली गांव का कुआं

एक बार पुलिस में मची थी हड़कंपः स्थानीय लोग बताते हैं कि आजादी के समय जब देश का बंटवारा हुआ तो यहां के कुछ मुसलमान पाकिस्तान चले गए. 16 साल पहले ये लोग इसी गांव में पहुंचे थे. जैसे ही पुलिस को इसकी सूचना मिली अलर्ट हो गई थी. आनन-फानन में पुलिस प्रशासन ने गांव के इतिहास को खंगाला तो पता चला था कि इस गांव में हुए बक्सर के युद्ध में इनके भी घर के लोग शहीद हुए थे जो भारतीय सिपाही थे.

एक भी केस दर्ज नहींः आजादी से पहले देश के अलग अलग हिस्से में लड़ाई होती रही. इस खून खराबा को देखकर यहां के लोगों ने फैसला किया कि एक दूसरे से बैर नहीं रखेंगे. यही कारण है कि यहां के लोग आजादी के बाद से आज तक पुलिस थाने नहीं गए और न ही पुलिस इस गांव में आती है. इसकी पुष्टि खुद बक्सर के एसपी मनीष कुमार कहते हैं. उन्होंने कहा कि यहां के लोग काफी समझदार हैं. छोटा-मोटा विवाद आपस में बात से सुलझा लेते हैं.

बक्सर जिले के कतकौली गांव
बक्सर जिले के कतकौली गांव

"उस गांव के मामले थाने तक नहीं पहुंचते हैं ना ही कभी पुलिस को गांव में जाने की जरूरत पड़ी है. वहां के लोग किसी भी मामला को आपस मे ही सुलझा लेते हैं. यह देखने और समझने का विषय है. यह सचाई है कि उस गांव के लोग केस मुकदमा और थाने से दूर हैं. अब तक उस गांव का कोई भी मामला दर्ज नहीं है." -मनीष कुमार, एसपी, बक्सर

नहीं होता है लड़ाई-झगड़ाः शिक्षक नगेन्द्र राम बताते हैं कि यहां रहने वाले हर जाति धर्म के लोग लड़ाई-झगड़े से नफरत करते हैं. आजादी के 76 साल बीत जाने के बाद भी इस गांव में किसी भी व्यक्ति का किसी से कोई विवाद नहीं है. ना तो इस गांव के लोग आज तक कोर्ट कचहरी गए है. हालांकि उन्होंने इस गांव को विकास से परे बताया है. कहा कि सीएम नीतीश कुमार इस गांव में आ चुके हैं लेकिन विकास नहीं आया.

युद्ध के बाद अंग्रेजों के द्वारा बनायी गई जीत की निशानी
युद्ध के बाद अंग्रेजों के द्वारा बनायी गई जीत की निशानी

"मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस गांव में आ चुके हैं. गांव के लोग एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को ये संदेश देते हैं कि लड़ाई-झगड़े या किसी विवाद से दूर रहना है. खेती किसानी करके लोग अपना जीवन यापन करते है. इस गांव के अधिकांश युवा विदेशों में रहकर काम करते हैं. यदी इस गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाता तो रोजगार की संभावनाएं बढ़ती" -नगेन्द्र राम शिक्षक

300 के करीब गांव में आबादीः इस गांव की आबादी 300 के करीब है. यहां के कई युवा देश विदेश में नौकरी करते हैं लेकिन विकास की रफ्तार बहुत कम है. हालांकि गांव के कई युवा डॉक्टर इंजीनियर बनकर देश-विदेश में सेवा दे रहे हैं. लोगों ने सरकार से इस गांव में विकास करने की मांग की है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां के खेती और पोल्ट्री फार्म से अपना जीवन यापन करते हैं. पुलिस थाना के बारे में कहते हैं कि यहां विवाद होता भी है तो आपस में बात कर सुलझा लेते हैं.

बक्सर जिले के कतकौली गांव में युद्ध की निशानी
बक्सर जिले के कतकौली गांव में युद्ध की निशानी

"हमलोग मिलजुलकर रहते हैं. गांव में किसी से कोई विवाद हो भी गया तो ग्रामीण बैठकर सुलझाते हैं. यह गांव भी तरकी के रास्ते पर चल रहा है. यहां के बच्चे भी डॉक्टर इंजीनियर बन रहे हैं. गांव के बाहर पोल्ट्री फार्म चलाकर जीवन यापन करते हैं." -वसीम खान, ग्रामीण

पर्यटन स्थल बनाने की मांगः स्थानीय लोगों ने सीएम नीतीश कुमार से गांव को पर्यटन स्थल के रूप में बदलने की मांग की है. यहां के लोगों का कहना है कि यह ऐतिहासिक गांव है. अगर यहां पर्यटक घूमने आते हैं तो गांव के लोगों को काफी रोजगार मिलेगा जिससे गांव का विकास होगा.

यह भी पढ़ेंः बिहार का सबसे बड़ा जेल ब्रेक कांड, क्या हुआ था 13 नवंबर 2005 की रात? आखिर जहानाबाद जेल पर हमले की क्या थी कहानी?

बक्सर जिले के कतकौली गांव की कहानी

बक्सरः बिहार के बक्सर शहर से मात्र 7 किलोमीटर दूर एक कतकौली गांव है. इस गांव की खासियत है कि यहां के लोग आजादी के बाद कभी पुलिस थाने नहीं गए और न ही कभी कोर्ट का चक्कर लगाए. यह जानकर हैरानी हो रही है लेकिन यही सच्चाई है. यह वही गांव है जहां 1764 में बक्सर का युद्ध हुआ था. लोगों ने इतना रक्तपात देखा था कि सभी का दिल पसीज गया था. तभी से इस गांव के लोगों ने कसम खाया था कि कभी एक दूसरे से बैर नहीं करना है और मिल जुलकर रहना है. बक्सर पुलिस भी इस गांव में कभी नहीं गई.

250 साल पुरानी युद्ध की कहानीः घटना 250 साल पुरानी है. जाहिर सी बात है कि इतने लंबे समय के बाद उस घटना का सटीक जानकारी कोई नहीं दे सकता है लेकिन अपने पूर्वजों से सुनी-सुनाई बातों पर लोग आज भी अमल करते हैं और एक दूसरे से लड़ाई झगड़े नहीं करते हैं. अपने पूर्वजों से मिली जानकारी के अनुसार स्थानीय लोग बताते हैं कि इस गांव में युद्ध हुआ था जिसकी निशानी आज भी मौजूद है. गांव की धरती खून से लाल हो गई थी.

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अंग्रेज और भातीय सेना में युद्धः 23 अक्टूबर 1764 की बात है. कतकौली गांव के मैदान में ईस्ट इंडिया कंपनी के हेक्टर मुनरो, मुगलों और नवाबों की सेनाओं के बीच युद्ध लड़ा गया था. बंगाल के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउदौला, मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेना और अंग्रेजी सेनाओं के बीच जंग हुई थी. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई. पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, बांग्लादेश की दीवानी और राजस्व अधिकार कंपनी के हाथों में चला गया था.

खून से रंग गई थी धरतीः इस युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों में हिंदू और मुसलमान दोनों थे. युद्ध खत्म होने के बाद चारो ओर लाशें दिखाई दे रही थी. पूरी धरती खून से रंग गई थी. हथियार बिखड़े हुए थे. यह देखकर गांव के लोगों की आंखे फटी की फटी रह गई थी. पूरे गांव में सन्नाटा पसर गया था. काफी हिम्मत के बाद गांव के लोगों ने मारे गए सैनिकों के शव को उनके मजहब के अनुसार अंतिम संस्कार किए थे.

कुएं में दफन हुए थे सैनिक के शवः स्थानीय लोग बताते हैं कि मुसलमान सैनिक को गांव के बाहर एक विशाल कुएं में दफन किया गया था. हिंदू सैनिकों के शवों को गांव के उत्तर दिशा में 2 किलोमीटर दूर स्थित जीवनदायिनी गंगा में प्रवाहित कर दिया गया था. शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में उस समय एक बरगद का वृक्ष कुएं पर लगाया गया था. आज भी वह कुआं और वृक्ष लोगों युद्ध की खौफनाक याद दिलाती है.

बक्सर जिले के कतकौली गांव का कुआं
बक्सर जिले के कतकौली गांव का कुआं

एक बार पुलिस में मची थी हड़कंपः स्थानीय लोग बताते हैं कि आजादी के समय जब देश का बंटवारा हुआ तो यहां के कुछ मुसलमान पाकिस्तान चले गए. 16 साल पहले ये लोग इसी गांव में पहुंचे थे. जैसे ही पुलिस को इसकी सूचना मिली अलर्ट हो गई थी. आनन-फानन में पुलिस प्रशासन ने गांव के इतिहास को खंगाला तो पता चला था कि इस गांव में हुए बक्सर के युद्ध में इनके भी घर के लोग शहीद हुए थे जो भारतीय सिपाही थे.

एक भी केस दर्ज नहींः आजादी से पहले देश के अलग अलग हिस्से में लड़ाई होती रही. इस खून खराबा को देखकर यहां के लोगों ने फैसला किया कि एक दूसरे से बैर नहीं रखेंगे. यही कारण है कि यहां के लोग आजादी के बाद से आज तक पुलिस थाने नहीं गए और न ही पुलिस इस गांव में आती है. इसकी पुष्टि खुद बक्सर के एसपी मनीष कुमार कहते हैं. उन्होंने कहा कि यहां के लोग काफी समझदार हैं. छोटा-मोटा विवाद आपस में बात से सुलझा लेते हैं.

बक्सर जिले के कतकौली गांव
बक्सर जिले के कतकौली गांव

"उस गांव के मामले थाने तक नहीं पहुंचते हैं ना ही कभी पुलिस को गांव में जाने की जरूरत पड़ी है. वहां के लोग किसी भी मामला को आपस मे ही सुलझा लेते हैं. यह देखने और समझने का विषय है. यह सचाई है कि उस गांव के लोग केस मुकदमा और थाने से दूर हैं. अब तक उस गांव का कोई भी मामला दर्ज नहीं है." -मनीष कुमार, एसपी, बक्सर

नहीं होता है लड़ाई-झगड़ाः शिक्षक नगेन्द्र राम बताते हैं कि यहां रहने वाले हर जाति धर्म के लोग लड़ाई-झगड़े से नफरत करते हैं. आजादी के 76 साल बीत जाने के बाद भी इस गांव में किसी भी व्यक्ति का किसी से कोई विवाद नहीं है. ना तो इस गांव के लोग आज तक कोर्ट कचहरी गए है. हालांकि उन्होंने इस गांव को विकास से परे बताया है. कहा कि सीएम नीतीश कुमार इस गांव में आ चुके हैं लेकिन विकास नहीं आया.

युद्ध के बाद अंग्रेजों के द्वारा बनायी गई जीत की निशानी
युद्ध के बाद अंग्रेजों के द्वारा बनायी गई जीत की निशानी

"मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस गांव में आ चुके हैं. गांव के लोग एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी को ये संदेश देते हैं कि लड़ाई-झगड़े या किसी विवाद से दूर रहना है. खेती किसानी करके लोग अपना जीवन यापन करते है. इस गांव के अधिकांश युवा विदेशों में रहकर काम करते हैं. यदी इस गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाता तो रोजगार की संभावनाएं बढ़ती" -नगेन्द्र राम शिक्षक

300 के करीब गांव में आबादीः इस गांव की आबादी 300 के करीब है. यहां के कई युवा देश विदेश में नौकरी करते हैं लेकिन विकास की रफ्तार बहुत कम है. हालांकि गांव के कई युवा डॉक्टर इंजीनियर बनकर देश-विदेश में सेवा दे रहे हैं. लोगों ने सरकार से इस गांव में विकास करने की मांग की है. स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां के खेती और पोल्ट्री फार्म से अपना जीवन यापन करते हैं. पुलिस थाना के बारे में कहते हैं कि यहां विवाद होता भी है तो आपस में बात कर सुलझा लेते हैं.

बक्सर जिले के कतकौली गांव में युद्ध की निशानी
बक्सर जिले के कतकौली गांव में युद्ध की निशानी

"हमलोग मिलजुलकर रहते हैं. गांव में किसी से कोई विवाद हो भी गया तो ग्रामीण बैठकर सुलझाते हैं. यह गांव भी तरकी के रास्ते पर चल रहा है. यहां के बच्चे भी डॉक्टर इंजीनियर बन रहे हैं. गांव के बाहर पोल्ट्री फार्म चलाकर जीवन यापन करते हैं." -वसीम खान, ग्रामीण

पर्यटन स्थल बनाने की मांगः स्थानीय लोगों ने सीएम नीतीश कुमार से गांव को पर्यटन स्थल के रूप में बदलने की मांग की है. यहां के लोगों का कहना है कि यह ऐतिहासिक गांव है. अगर यहां पर्यटक घूमने आते हैं तो गांव के लोगों को काफी रोजगार मिलेगा जिससे गांव का विकास होगा.

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