दंतेवाड़ा: आजादी की लड़ाई में बस्तर के आदिवासी वीर बहादुरों ने अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए थे. अंग्रेजों की मिट्टी पलीत करने वाले महान सपूतों को याद करने के लिए भूमकाल दिवस बस्तर में मनाया जा रहा है. दंतेवाड़ा पुलिस लाइन में अमर शहीद वीर गुण्डाधूर को जवानों ने श्रद्धांजलि दी और उनके बलिदान को याद किया. कार्यक्रम में शामिल होने वाले जवानों को बताया गया कि कैसे अमर शहीद गुण्डाधूर ने अपने साथियों के साथ मिलकर देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया. वीर गुण्डाधूर ने जब संघर्ष किया था तो उनका मुकाबला बंदूकों से था लेकिन उन्होने तीन धनुष से अपने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए.
बस्तर के लिए शहीद हुए लोगों को किया याद: बस्तर में लाल आंतक के खात्मे के लिए हजारों लोग अबतक अपनी जान गंवा चुके हैं. सैंकड़ों जवान और ग्रामीणों के खून से बस्तर की धरती लाल हो चुकी है. भूमकाल दिवस के मौके बस्तर के लिए अपनी जान न्योछावर करने वालों को भी भाव भीनी श्रद्धांजलि दी गई. भूमकाल दिवस के आयोजन के माध्यम से लोगों को देश की एकता और अखंडता बनाए रखने का संदेश भी दिया गया.
क्यों मनाते हैं भूमकाल दिवस: जिस वक्त देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी उस वक्त बस्तर में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष का आगाज हो चुका था. बस्तर आदिवासी अपनी जल जंगल और जमीन बचाने के लिए एकजुट होने लगे थे. आदिवासियों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ने के लिए भूमकाल आंदोलन की शुरुआत की. इतिहास के जानकार बताते हैं कि भूमकाल का मतलब अपनी मिट्टी से जुड़ा होना होता है. आदिवासियों ने अपनी जमीन की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति अंग्रेजों से लड़ाई में दी . बस्तर के इन्ही योद्धाओं को याद करने के लिए हर साल भूमकाल दिवस मनाया जाता है. इतिहासकार बताते हैं कि वीर गुण्डाधूर ने आदिवासियों को जमीदारों से बचाने के लिए भी लंबी लड़ाई थी. अंग्रेजों के खिलाफ चलने वाली इस लड़ाई को भूमकाल आंदोलन के नाम से भी पुकार गया.