प्रयागराजः इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के आधार में संशोधन की आवश्यकता जताई है. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों के क्रम में हिंदू विवाह अधिनियम में संशोधन पर यह विचार करने का समय है. यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिड़ला और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने की है. कोर्ट ने कहा, “चाहे प्रेम विवाह हो या अरेंज मैरिज, विभिन्न कारक रिश्ते को प्रभावित करते हैं. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि प्रत्येक क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है. प्रेम विवाह की तरह आसानी से होने वाले विवाह (अरेंज मैरिज) भी वैवाहिक विवाद का कारण बन रहे हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है. पक्ष ऐसे रिश्ते को जारी रखने के इच्छुक नहीं हैं.
सेना के डॉक्टर की अपील पर कोर्ट ने की टिप्पणी
यह टिप्पणी खंडपीठ ने एक डॉक्टर द्वारा की गई अपील की सुनवाई करते हुए की, जिसने लगभग 30 वर्षों तक भारतीय सेना में भी सेवा की है. फैमिली कोर्ट ने डॉक्टर को वरिष्ठ डॉक्टर पत्नी को तलाक देने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. दोनों की दूसरी शादी 2007 में हुई थी. 2015 में तलाक के लिए आवेदन करने से छह साल पहले पत्नी ने पति को छोड़ दिया था. क्रूरता के आधार पर तलाक मांगा गया था. फैमिली कोर्ट ने पति की अर्जी स्वीकार नहीं की तो 2019 में हाईकोर्ट में अपील दायर की गई. हाई कोर्ट के समक्ष पति की मुख्य दलील यह थी कि पत्नी लंबे समय से उससे दूर रह रही है और यह मानसिक क्रूरता है.
अपूरणीय विवाह विच्छेद को भी बनाया जाना चाहिए आधार
दलीलों पर विचार करते हुए, कोर्ट ने कहा कि विवाह के अपूरणीय टूटन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा तलाक के आधार के रूप में मान्यता दी गई है. इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवीन कोहली मामले में दिए गए फैसले का उल्लेख किया. खंडपीठ ने कहा, कानून तलाक की मंजूरी के आधारों में एक यह है कि याचिका दायर करने से पहले कम से कम दो साल की निरंतर अवधि के लिए याची ने परित्याग किया हो. कोर्ट ने कहा, यह समझ में नहीं आता है कि जब पार्टियां सालों से और कुछ मामलों में दशकों से अलग-अलग रह रही हैं, तो अपूरणीय टूटने की जमीन को एक आधार के रूप में मान्यता क्यों नहीं दी जा रही है?
पति के पक्ष में तलाक की डिक्री दी
कोर्ट ने आगे कहा, कई मामलों में पक्षों के बीच वैवाहिक जीवन केवल नाममात्र रह जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने लगातार महसूस किया है कि ऐसे अव्यवहारिक वैवाहिक संबंधों को जारी रखना पक्षों पर मानसिक क्रूरता के अलावा कुछ नहीं है. वर्तमान मामले के संदर्भ में अदालत ने कहा कि चूंकि पत्नी काफी लंबे समय से पति से दूर रह रही है और यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि उसे वैवाहिक जीवन जारी रखने में कोई दिलचस्पी नहीं है. यह शादी पूरी तरह टूट गई है. कोर्ट ने कहा कि निश्चित रूप से इस मामले को पति पर 'मानसिक क्रूरता' का मामला माना जाना चाहिए. शादी पूरी तरह से अव्यवहारिक और भावनात्मक रूप से मृत हो गई है. कोर्ट ने अपील मंजूर कर ली और पति के पक्ष में तलाक की डिक्री देते कहा, " तलाक दिया जा सकता है. न्यायालय ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को फैसले की प्रति सचिव, कानून और न्याय मंत्रालय, कानूनी मामलों के विभाग, भारत सरकार और विधि आयोग को भेजने का निर्देश दिया ताकि मामले पर विचार किया जा सके. अपीलार्थी का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता तरूण अग्रवाल एवं पंकज अग्रवाल ने किया.