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बदरीनाथ धाम के आसपास इन जगहों पर जाना न करें मिस, कम बजट में बन जाएगा यादगार टूर - badrinath dham - BADRINATH DHAM

12 मई को भगवान बदरी विशाल के कपाट खुलने जा रहे है. यदि आप भी बदरीनाथ धाम जा रहे है या फिर भविष्य में जाने का प्लान है तो ये इस खबर को जरूर पढ़ें... क्योंकि ईटीवी भारत आपको बदरीनाथ धाम के आसपास और रास्ते में पड़ने वाली उन जगहों के बारे में बताएंगे, जिनके बारे में बहुत कम लोग जानते है, लेकिन आप इन जंगहों पर जाना न भूले. इस खबर को पढ़ने के बाद आपको कम बजट में बेहतरीन टूर हो जाएगा.

badrinath dham
फाइल फोटो (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : May 9, 2024, 5:07 PM IST

Updated : May 10, 2024, 3:14 PM IST

देहरादून: गंगोत्री-यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही दस मई को उत्तराखंड चारधाम यात्रा की विधिवत शुरुआत हो जाएगी. आखिर में 12 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलेगे. देश के चार धामों में से बदरीनाथ धाम भी है. बदरीनाथ धाम को मुक्ति का धाम भी कहा जाता है. यदि आप भी इस साल बदरीनाथ धाम की यात्रा पर आ रहे है तो इस खबर को जरूर पढ़ें. क्योंकि हम आपको इस खबर में बदरीनाथ धाम की यात्रा और उसके आसपास के अन्य पर्यटक स्थलों की पूरी जानकारी देगे.

धार्मिक मान्यता के अनुसार उत्तराखंड चारधाम यात्रा की शुरुआत सबसे पहले यमुनोत्री धाम से करनी चाहिए. यमुनोत्री धाम के बाद गंगोत्री धाम के दर्शन किए जाते है. इसके बाद केदारनाथ धाम जाया जाता है. आखिर में बदरीनाथ धाम में भगवान बदरी विशाल के दर्शन करने के बाद उत्तराखंड की चारधाम यात्रा पूरी होती है.

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बदरीनाथ धाम (फाइल फोटो) (@BKTC_UK)

अब आपको बदरीनाथ धाम के महत्व के बारे में बताते है. बदरीनाथ धाम को लेकर कहा जाता है कि यहां भगवान बदरी विशाल के दर्शन मात्र से ही मानव को मुक्ति प्राप्त होती है. बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु की नारायण के रूप में पूजा होती है. बदरीनाथ धाम में बड़ी संख्या में लोग पिंडदान के लिए भी पहुंचते हैं.

नौंवी शताब्दी में हुआ था मंदिर का निर्माण: बदरीनाथ धाम समुद्र तल से करीब 10200 फीट की ऊंचाई पर है, जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है. बदरीनाथ धाम में साल के 6 महीने तो बर्फ ही जमी रहती है. यहां सिर्फ साल में 6 महीने भगवान बदरी विशाल के दर्शन होते है. इस मंदिर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी. यहां पर भगवान विष्णु की नारायण रूप में पूजा होती है. 814 से लेकर 820 तक बदरीनाथ मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य रहे और तब उन्होंने बदरीनाथ धाम में केरल के नंबुदिरी ब्राह्मण को यहां पर मंदिर का मुख्य पुजारी बनाया था, जिसकी प्रथा आज तक चली आ रही है.

कैसे पहुंचे बदरीनाथ धाम: बदरीनाथ धाम सीधे तौर पर सड़क मार्ग से ही जुड़ा हुआ है. बदरीनाथ धाम के सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और हवाई अड्डा देहरादून का जौलीग्राड एयरपोर्ट है. दोनों ही जगह से बदरीनाथ धाम की दूरी करीब 300 किमी है. पहाड़ी रास्ता होने के कारण ये सफर आपका करीब 10 से 12 घंटे में पूरा होगा. ऋषिकेश से आपको बस और टैक्सी दोनों ही बदरीनाथ धाम के लिए मिल जाएगी. इसके अलावा आप हरिद्वार से भी टैक्सी ले सकते है. हरिद्वार से ऋषिकेश की दूरी 20 से 25 किमी ही है.

इसके अलावा आप देहरादून के सहस्त्रधारा हेलीपैड से हेलीकॉप्टर की बुकिंग कराकर भी सीधे बदरीनाथ धाम जा सकते है, लेकिन इसकी इंक्वारी आपको अपने टूर ऑपरेटर से पहले ही करनी पड़ेगी.

Devprayag Sangam
देवप्रयाग संगम (फाइल फोटो) (ईटीवी भारत)

देवप्रयाग संगम: ऋषिकेश या हरिद्वार से आपको किराए पर गाड़ी रोजाना के लिए करीब 5 हजार में में मिल जाएगी. वहीं बड़ी गाड़ी का खर्चा करीब 8 से 9000 हजार रुपए आएगा. ऋषिकेश से चलने के बाद सबसे पहले देवप्रयाग आता है. यहीं पर अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है.

इस संगम स्थल के बाद इस नदी का नाम गंगा हो जाता है. दोनों नदियों की धारा यहां अलग-अलग रंगों में साफ दिखती है. देवप्रयाग संगम के बारे में कहा जाता है कि भगवान राम ने भी यहीं पर अपने पितरों को दर्पण किया था. यहां पर रुककर आप कुछ देर मां गंगा के संगम स्थल पर बिता सकते हैं

धारी देवी: देवप्रयाग संगम के बाद आप माता धारी देवी के दर्शन कर सकते है. माता धारी देवी का मंदिर ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर ही स्थित है. माता धारी देवी को चारधाम की रक्षक भी कहा जाता है. देवप्रयाग संगम से धारी देवी मंदिर के लिए करीब एक घंटे का समय लग सकता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार चारधाम यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की माता धारी देवी के मंदिर में जरूर माथा टेकना चाहिए. कहा जाता है कि इस मंदिर में मां धारी देवी स्वयंभू है.

फाइल फोटो
धारी देवी मंदिर (फाइल फोटो) (ईटीवी भारत)

धारी देवी मंदिर के बाद एक और धार्मिक स्थल है, जिसका इतिहास भी पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है, वो स्थान है कर्णप्रयाग. कर्णप्रयाग में अलकनंदा और पिंडर नदी का संगम होता है. इस जगह पर महाभारत काल का मंदिर भी है. इसके बाद आप सीधे बदरीनाथ धाम जा सकते है. हालांकि इससे पहले आप रात्रि विश्राम जोशीमठ में भी कर सकते है. जोशीमठ में आपको दो से तीन हजार रुपए के बीच अच्छे कमरे मिल जाएगा. जोशीमठ से बदरीनाथ धाम की दूरी करीब 45 किमी है, जहां के लिए आपको दो से ढाई घंटे लग जाएगे.

तप्त कुंड
तप्त कुंड (फाइल फोटो) (सोर्स-सोशल मीडिया)

तप्त कुंड: बदरीनाथ धाम में दर्शन करने से पहले आप तप्त कुंड में स्नान कर सकते है. यहां गर्म पानी का झरना है, जो बदरीनाथ मंदिर और अलकनंदा नदी के बीच स्थित है. तप्त कुंड की खास बात ये है कि सर्दियों में जब बदरीनाथ धाम में कडाके की ठंड पड़ती है और यहां तापमान माइन्स में चला जाता है, तब भी तप्त कुंड का पानी बेहद गर्म रहता है. भगवान बदरी विशाल के दर्शन करने के बाद आप बदरीनाथ धाम के आसपास के क्षेत्र में धूम सकते है.

व्यास गुफा
व्यास गुफा (फाइल फोटो) (@BKTC_UK)

विष्णु के चरण की शिला और वसुंधरा फॉल जाना ना भूले: बदरीनाथ धाम के बाद आप विष्णु के चरण की शिला और वसुंधरा फॉल जाना ना भूले. बदरीनाथ धाम से करीब तीन किमी दूर नारायण पर्वत विष्णु चरण पादुका के दर्शन कर सकते हैं. यहां के बारे में मान्यता है कि यह पैरों के निशान किसी और के नहीं भगवान विष्णु के ही हैं. यहां पर दर्शन करने से असाध्याय रोगों से मुक्ति मिलती है. शाम को पांच बजे तक ही यहां जाने की अनुमित मिलती है.

देश का पहला गांव: इसके अलावा आप बदरीनाथ धाम से करीब 6 किमी दूर माणा गांव में भी घूम सकते है. माणा गांव को देश की पहला गांव कहा जाता है. यहां पर आप चाय की चुस्की और मैगी का मजा ले सकते है. माणा गांव में सरस्वती नदी के तट पर व्यास गुफा है. व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर ऋषि व्यास ने भगवान गणेश की मदद से महाभारत महाकाव्य की रजना की थी. व्यास गुफा के बाप आप वसुंधरा फॉल भी जा सकते है.

badrinath
भारत का पहला गांव माणा, जिसे पहले भारत का आखिर गांव कहा जाता था. (फाइल फोटो) (ईटीवी भारत)

वसुंधरा फॉल: वसुंधरा फॉल की खुबसूरती आपका मन मोह लेगी. करीब 400 फीट की ऊंचाई से गिरने वाले वसुंधरा फॉल की जलधारा मोतियों जैसे लगती है. बदरीनाथ जाने वाले बहुत की कम लोगों को इस पवित्र जल धारा के बारे पता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार यहीं पर पंच पांडव में सहदेव ने अपने प्राम त्यागे थे.

फूलों की घाटी: बदरीनाथ से लौटते समय आप फूलों की घाटी भी घूम सकते है. फूलों की घाटी जोशीमठ और बदरीनाथ धाम के बीच में गोविंदघाट के पास स्थित है. गोविंदघाट से फूलों की घाटी जाने के लिए आपको करीब 13 किमी का पैदल ट्रेक करना पड़ेगा, उसके बाद पर्यटक करीब तीन किमी लंबी और आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं.

Flower Vally
फूलों की घाटी (फाइल फोटो) (सीएम पुष्कर सिंह धामी के X अकाउंट से)

काम की बात: उत्तराखंड की चारधाम यात्रा पर आने से पहले एक बात का विशेष ध्यान रखें, वो है रजिस्ट्रेशन. चारधाम यात्रा पर आने से पहले आपको अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. रजिस्ट्रेशन आप घर बैठे ही ऑनलाइन भी करवा सकते है. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए आपको registrationandtourisht.uk.gov.in पर जाना होगा. इसके अलावा ऋषिकेश और हरिद्वार पहुंचकर भी श्रद्धालु ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन करा सकते है.

दिल्ली से हरिद्वार की दूरी करीब 206 और ऋषिकेश की 230 किमी है. ऋषिकेश से देवप्रयाग तक आपको 74 किलोमीटर का सफर तय करने में 2 घंटे का वक्त लग जाएगा. साथ ही श्रीनगर से रुद्रप्रयाग 33 किलोमीटर आप 2 घंटे में पहुंच जाएंगे रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ धाम पहुंचने में आपको लगभग 4 घंटे का वक्त लग जाता है. पहाड़ी इलाकों में मौसम देखकर ही यात्रा करें.

पढ़ें--

देहरादून: गंगोत्री-यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही दस मई को उत्तराखंड चारधाम यात्रा की विधिवत शुरुआत हो जाएगी. आखिर में 12 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खुलेगे. देश के चार धामों में से बदरीनाथ धाम भी है. बदरीनाथ धाम को मुक्ति का धाम भी कहा जाता है. यदि आप भी इस साल बदरीनाथ धाम की यात्रा पर आ रहे है तो इस खबर को जरूर पढ़ें. क्योंकि हम आपको इस खबर में बदरीनाथ धाम की यात्रा और उसके आसपास के अन्य पर्यटक स्थलों की पूरी जानकारी देगे.

धार्मिक मान्यता के अनुसार उत्तराखंड चारधाम यात्रा की शुरुआत सबसे पहले यमुनोत्री धाम से करनी चाहिए. यमुनोत्री धाम के बाद गंगोत्री धाम के दर्शन किए जाते है. इसके बाद केदारनाथ धाम जाया जाता है. आखिर में बदरीनाथ धाम में भगवान बदरी विशाल के दर्शन करने के बाद उत्तराखंड की चारधाम यात्रा पूरी होती है.

badrinath-dham
बदरीनाथ धाम (फाइल फोटो) (@BKTC_UK)

अब आपको बदरीनाथ धाम के महत्व के बारे में बताते है. बदरीनाथ धाम को लेकर कहा जाता है कि यहां भगवान बदरी विशाल के दर्शन मात्र से ही मानव को मुक्ति प्राप्त होती है. बदरीनाथ धाम में भगवान विष्णु की नारायण के रूप में पूजा होती है. बदरीनाथ धाम में बड़ी संख्या में लोग पिंडदान के लिए भी पहुंचते हैं.

नौंवी शताब्दी में हुआ था मंदिर का निर्माण: बदरीनाथ धाम समुद्र तल से करीब 10200 फीट की ऊंचाई पर है, जो उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है. बदरीनाथ धाम में साल के 6 महीने तो बर्फ ही जमी रहती है. यहां सिर्फ साल में 6 महीने भगवान बदरी विशाल के दर्शन होते है. इस मंदिर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था. इस मंदिर की स्थापना आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी. यहां पर भगवान विष्णु की नारायण रूप में पूजा होती है. 814 से लेकर 820 तक बदरीनाथ मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य रहे और तब उन्होंने बदरीनाथ धाम में केरल के नंबुदिरी ब्राह्मण को यहां पर मंदिर का मुख्य पुजारी बनाया था, जिसकी प्रथा आज तक चली आ रही है.

कैसे पहुंचे बदरीनाथ धाम: बदरीनाथ धाम सीधे तौर पर सड़क मार्ग से ही जुड़ा हुआ है. बदरीनाथ धाम के सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और हवाई अड्डा देहरादून का जौलीग्राड एयरपोर्ट है. दोनों ही जगह से बदरीनाथ धाम की दूरी करीब 300 किमी है. पहाड़ी रास्ता होने के कारण ये सफर आपका करीब 10 से 12 घंटे में पूरा होगा. ऋषिकेश से आपको बस और टैक्सी दोनों ही बदरीनाथ धाम के लिए मिल जाएगी. इसके अलावा आप हरिद्वार से भी टैक्सी ले सकते है. हरिद्वार से ऋषिकेश की दूरी 20 से 25 किमी ही है.

इसके अलावा आप देहरादून के सहस्त्रधारा हेलीपैड से हेलीकॉप्टर की बुकिंग कराकर भी सीधे बदरीनाथ धाम जा सकते है, लेकिन इसकी इंक्वारी आपको अपने टूर ऑपरेटर से पहले ही करनी पड़ेगी.

Devprayag Sangam
देवप्रयाग संगम (फाइल फोटो) (ईटीवी भारत)

देवप्रयाग संगम: ऋषिकेश या हरिद्वार से आपको किराए पर गाड़ी रोजाना के लिए करीब 5 हजार में में मिल जाएगी. वहीं बड़ी गाड़ी का खर्चा करीब 8 से 9000 हजार रुपए आएगा. ऋषिकेश से चलने के बाद सबसे पहले देवप्रयाग आता है. यहीं पर अलकनंदा और भागीरथी का संगम होता है.

इस संगम स्थल के बाद इस नदी का नाम गंगा हो जाता है. दोनों नदियों की धारा यहां अलग-अलग रंगों में साफ दिखती है. देवप्रयाग संगम के बारे में कहा जाता है कि भगवान राम ने भी यहीं पर अपने पितरों को दर्पण किया था. यहां पर रुककर आप कुछ देर मां गंगा के संगम स्थल पर बिता सकते हैं

धारी देवी: देवप्रयाग संगम के बाद आप माता धारी देवी के दर्शन कर सकते है. माता धारी देवी का मंदिर ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे पर ही स्थित है. माता धारी देवी को चारधाम की रक्षक भी कहा जाता है. देवप्रयाग संगम से धारी देवी मंदिर के लिए करीब एक घंटे का समय लग सकता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार चारधाम यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं की माता धारी देवी के मंदिर में जरूर माथा टेकना चाहिए. कहा जाता है कि इस मंदिर में मां धारी देवी स्वयंभू है.

फाइल फोटो
धारी देवी मंदिर (फाइल फोटो) (ईटीवी भारत)

धारी देवी मंदिर के बाद एक और धार्मिक स्थल है, जिसका इतिहास भी पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ है, वो स्थान है कर्णप्रयाग. कर्णप्रयाग में अलकनंदा और पिंडर नदी का संगम होता है. इस जगह पर महाभारत काल का मंदिर भी है. इसके बाद आप सीधे बदरीनाथ धाम जा सकते है. हालांकि इससे पहले आप रात्रि विश्राम जोशीमठ में भी कर सकते है. जोशीमठ में आपको दो से तीन हजार रुपए के बीच अच्छे कमरे मिल जाएगा. जोशीमठ से बदरीनाथ धाम की दूरी करीब 45 किमी है, जहां के लिए आपको दो से ढाई घंटे लग जाएगे.

तप्त कुंड
तप्त कुंड (फाइल फोटो) (सोर्स-सोशल मीडिया)

तप्त कुंड: बदरीनाथ धाम में दर्शन करने से पहले आप तप्त कुंड में स्नान कर सकते है. यहां गर्म पानी का झरना है, जो बदरीनाथ मंदिर और अलकनंदा नदी के बीच स्थित है. तप्त कुंड की खास बात ये है कि सर्दियों में जब बदरीनाथ धाम में कडाके की ठंड पड़ती है और यहां तापमान माइन्स में चला जाता है, तब भी तप्त कुंड का पानी बेहद गर्म रहता है. भगवान बदरी विशाल के दर्शन करने के बाद आप बदरीनाथ धाम के आसपास के क्षेत्र में धूम सकते है.

व्यास गुफा
व्यास गुफा (फाइल फोटो) (@BKTC_UK)

विष्णु के चरण की शिला और वसुंधरा फॉल जाना ना भूले: बदरीनाथ धाम के बाद आप विष्णु के चरण की शिला और वसुंधरा फॉल जाना ना भूले. बदरीनाथ धाम से करीब तीन किमी दूर नारायण पर्वत विष्णु चरण पादुका के दर्शन कर सकते हैं. यहां के बारे में मान्यता है कि यह पैरों के निशान किसी और के नहीं भगवान विष्णु के ही हैं. यहां पर दर्शन करने से असाध्याय रोगों से मुक्ति मिलती है. शाम को पांच बजे तक ही यहां जाने की अनुमित मिलती है.

देश का पहला गांव: इसके अलावा आप बदरीनाथ धाम से करीब 6 किमी दूर माणा गांव में भी घूम सकते है. माणा गांव को देश की पहला गांव कहा जाता है. यहां पर आप चाय की चुस्की और मैगी का मजा ले सकते है. माणा गांव में सरस्वती नदी के तट पर व्यास गुफा है. व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर ऋषि व्यास ने भगवान गणेश की मदद से महाभारत महाकाव्य की रजना की थी. व्यास गुफा के बाप आप वसुंधरा फॉल भी जा सकते है.

badrinath
भारत का पहला गांव माणा, जिसे पहले भारत का आखिर गांव कहा जाता था. (फाइल फोटो) (ईटीवी भारत)

वसुंधरा फॉल: वसुंधरा फॉल की खुबसूरती आपका मन मोह लेगी. करीब 400 फीट की ऊंचाई से गिरने वाले वसुंधरा फॉल की जलधारा मोतियों जैसे लगती है. बदरीनाथ जाने वाले बहुत की कम लोगों को इस पवित्र जल धारा के बारे पता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार यहीं पर पंच पांडव में सहदेव ने अपने प्राम त्यागे थे.

फूलों की घाटी: बदरीनाथ से लौटते समय आप फूलों की घाटी भी घूम सकते है. फूलों की घाटी जोशीमठ और बदरीनाथ धाम के बीच में गोविंदघाट के पास स्थित है. गोविंदघाट से फूलों की घाटी जाने के लिए आपको करीब 13 किमी का पैदल ट्रेक करना पड़ेगा, उसके बाद पर्यटक करीब तीन किमी लंबी और आधा किमी चौड़ी फूलों की घाटी में घूम सकते हैं.

Flower Vally
फूलों की घाटी (फाइल फोटो) (सीएम पुष्कर सिंह धामी के X अकाउंट से)

काम की बात: उत्तराखंड की चारधाम यात्रा पर आने से पहले एक बात का विशेष ध्यान रखें, वो है रजिस्ट्रेशन. चारधाम यात्रा पर आने से पहले आपको अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. रजिस्ट्रेशन आप घर बैठे ही ऑनलाइन भी करवा सकते है. ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए आपको registrationandtourisht.uk.gov.in पर जाना होगा. इसके अलावा ऋषिकेश और हरिद्वार पहुंचकर भी श्रद्धालु ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन करा सकते है.

दिल्ली से हरिद्वार की दूरी करीब 206 और ऋषिकेश की 230 किमी है. ऋषिकेश से देवप्रयाग तक आपको 74 किलोमीटर का सफर तय करने में 2 घंटे का वक्त लग जाएगा. साथ ही श्रीनगर से रुद्रप्रयाग 33 किलोमीटर आप 2 घंटे में पहुंच जाएंगे रुद्रप्रयाग से बद्रीनाथ धाम पहुंचने में आपको लगभग 4 घंटे का वक्त लग जाता है. पहाड़ी इलाकों में मौसम देखकर ही यात्रा करें.

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Last Updated : May 10, 2024, 3:14 PM IST
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