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'लव जिहाद' पर यूपी कोर्ट की टिप्पणी के खिलाफ याचिका पर SC ने कहा, 'सनसनीखेज बनाने का प्रयास' - SC LOVE JIHAD

सुप्रीम कोर्ट ने 'लव जिहाद' से जुड़े मामले में यूपी कोर्ट की टिप्पणी को एक व्यक्ति द्वारा 'सनसनीखेज' बनाने के प्रयास को गंभीरता से लिया.

SC
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
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By Sumit Saxena

Published : Jan 2, 2025, 2:02 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश के बरेली की एक अदालत द्वारा 'लव जिहाद' से जुड़े एक मामले में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ कथित तौर पर की गई टिप्पणियों को 'सनसनीखेज' बनाने का प्रयास करने वाले एक व्यक्ति की कड़ी आलोचना की.

यह मामला न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ के समक्ष आया. पीठ ने वकील से पूछा, 'आप कौन हैं और इस मामले से आपका क्या संबंध है.' साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ता अनस के मामले में अधिकार क्षेत्र के बारे में भी पूछा.

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में साक्ष्य के आधार पर की गई टिप्पणियों को हटाया नहीं जा सकता. पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि यह मामले को सनसनीखेज बनाने का प्रयास है, जो सही नहीं है और वकील से पूछा कि क्या वह वास्तव में अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर विचार कर सकते हैं.

पीठ ने कहा, 'आप बस व्यस्त हैं और आपका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है. यदि साक्ष्य के आधार पर कुछ टिप्पणियां की गई हैं तो क्या हम उन्हें हटा सकते हैं?' दलीलें सुनने के बाद पीठ ने वकील से पूछा कि क्या वह याचिका वापस लेने के लिए तैयार हैं या फिर वह इसे खारिज कर देगी. मामले को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया गया.

पिछले साल अक्टूबर में बरेली की एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने 'लव जिहाद' शब्द की व्याख्या करते हुए मुस्लिम समुदाय पर कुछ टिप्पणियां की थी. ये टिप्पणियां एक मुस्लिम व्यक्ति को 'पूरी जिंदगी' जेल में रहने की सजा सुनाते हुए की गई थी. हालांकि महिला कथित तौर पर अपने बयान से मुकर गई थी. महिला के बयान के आधार पर रेप और अन्य अपराधों का मामला दर्ज किया गया. महिला ने दावा किया कि वह आरोपी से एक कोचिंग सेंटर में मिली थी और उसने खुद को आनंद कुमार बताया था, लेकिन शादी के बाद पता चला कि वह आलिम नाम का एक मुस्लिम है.

ये भी पढ़ें- ससुराल वालों का केवल क्रूरता का बयान IPC की धारा 498-ए के तहत अपराध नहीं

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश के बरेली की एक अदालत द्वारा 'लव जिहाद' से जुड़े एक मामले में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ कथित तौर पर की गई टिप्पणियों को 'सनसनीखेज' बनाने का प्रयास करने वाले एक व्यक्ति की कड़ी आलोचना की.

यह मामला न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ के समक्ष आया. पीठ ने वकील से पूछा, 'आप कौन हैं और इस मामले से आपका क्या संबंध है.' साथ ही पीठ ने याचिकाकर्ता अनस के मामले में अधिकार क्षेत्र के बारे में भी पूछा.

शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में साक्ष्य के आधार पर की गई टिप्पणियों को हटाया नहीं जा सकता. पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि यह मामले को सनसनीखेज बनाने का प्रयास है, जो सही नहीं है और वकील से पूछा कि क्या वह वास्तव में अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका पर विचार कर सकते हैं.

पीठ ने कहा, 'आप बस व्यस्त हैं और आपका कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है. यदि साक्ष्य के आधार पर कुछ टिप्पणियां की गई हैं तो क्या हम उन्हें हटा सकते हैं?' दलीलें सुनने के बाद पीठ ने वकील से पूछा कि क्या वह याचिका वापस लेने के लिए तैयार हैं या फिर वह इसे खारिज कर देगी. मामले को वापस लिया हुआ मानकर खारिज कर दिया गया.

पिछले साल अक्टूबर में बरेली की एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट ने 'लव जिहाद' शब्द की व्याख्या करते हुए मुस्लिम समुदाय पर कुछ टिप्पणियां की थी. ये टिप्पणियां एक मुस्लिम व्यक्ति को 'पूरी जिंदगी' जेल में रहने की सजा सुनाते हुए की गई थी. हालांकि महिला कथित तौर पर अपने बयान से मुकर गई थी. महिला के बयान के आधार पर रेप और अन्य अपराधों का मामला दर्ज किया गया. महिला ने दावा किया कि वह आरोपी से एक कोचिंग सेंटर में मिली थी और उसने खुद को आनंद कुमार बताया था, लेकिन शादी के बाद पता चला कि वह आलिम नाम का एक मुस्लिम है.

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