नई दिल्ली: जाकिर हुसैन किसी परिचय के मोहताज नहीं. उनकी तबले की थाप हमेशा दुनिया में कायम रहेगी. उनकी सांसों की कड़ी बीते रविवार को टूट गई. आज सुबह उनके परिवार ने पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन के निधन की पुष्टि की. परिवार के मुताबिक हुसैन इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस से पीड़ित थे. वे पिछले दो हफ्ते से सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में भर्ती थे. हालत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें ICU में एडमिट किया गया था. वहीं उन्होंने आखिरी सांस ली. मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन अपने चाहने वालों के जेहन में हमेशा मौजूद रहेंगे. उनके कुछ चाहने वालों ने 'ETV भारत' के साथ अपनी संवेदना साझा की. आइए जानते हैं, वो क्या बोले ?
मशहूर नृत्यांगना सोनल मान सिंह ने जाकिर हुसैन को बताया रत्न : भारत की मशहूर भारतीय शास्त्रीय नृत्यांगना, भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्य शैली की गुरु सोनल मान सिंह ने बताया कि यह बात वो मानने को तैयार नहीं कि मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन साहब अब इस दुनिया में नहीं रहे. अभी भी उनकी आत्मा हमारे इर्द-गिर्द है और देख रही है कि लोग उनसे कितना प्यार करते हैं? उनसे जुड़ी कई बातें अब सामने आ रही हैं.
सोनल मान सिंह के साथ भी उनकी कई यादें जुड़ी हुई है जिसे उन्होंने विस्तार से बताया. उन्होंने उस्ताद जाकिर हुसैन के साथ 1981 और 1985 के दौरान प्रस्तुतियां दीं. इतना ही नहीं उन्होंने जाकिर हुसैन को बचपन में स्कूल जाते हुए भी देखा. उस दौरान वह अपने पिताजी के साथ तबला वादन करते थे. इस दौरान जाकिर हुसैन से कई बार मुलाकात हुई. उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार बड़े मुकाम को हासिल किया. ऐसा ही एक और किस्सा है पटना में प्रस्तुति का, जहां पर मुझे एक छोटे होटल में रुकने की व्यवस्था थी लेकिन जब मैंने जाकिर हुसैन को फोन किया, तो वह तुरंत आए और मुझे अपने साथ लेकर कर गए. इसके बाद लगातार मिलना जुलना होता रहा.
अमेरिका दौरे की वापसी के बाद जब भी वह दिल्ली आते थे, तो मुलाकात जरूर करते थे. 2012 में जाकिर हुसैन और सोनल मानसिंह को संगीत नाट्य अकादमी के पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इसके बाद हाल ही में फरवरी में जाकिर हुसैन से मिलने का मौका मिला. इसमें विशेष बात यह रही कि वह सम्मान सोनल मानसिंह ने ही जाकिर हुसैन जी को दिया. इस दौरान कुछ ऐसी यादगार बातें हुई जिनका भूल पाना मुश्किल है. सोनल आगे बताती हैं कि एक बार वह मंच पर चढ़ रही थीं, साड़ी को लेकर असहज हुईं तो जाकिर हुसैन भागते हुए आए और मंच पर चढ़ने के लिए सहारा दिया. जाकिर हुसैन एक ऐसे उम्दा कलाकार थे, जो अन्य कलाकारों को आदर देना बखूबी जानते थे. आज की पीढ़ी को जरूरत है कि उनसे इस तरीके के आदर्श सम्मान को करना सीखे. सोनल मानसिंह ने अंत में कहा कि जाकिर हुसैन जैसा उम्दा कलाकार ना दुनिया में था और ना होगा. भगवान उनकी दिव्य आत्मा को शांति दे.
मशहूर तबला वादक राम कुमार मिश्रा ने साझा की यादें: मशहूर तबला वादक राम कुमार मिश्रा ने बताया कि आज सुबह बेहद दुखद समाचार मिला. तबले के मशहूर वादक जाकिर हुसैन हमारे बीच नहीं रहे. राम कुमार मिश्रा ने कहा जाकिर हुसैन का देहांत यानी तबला वादन में एक युग का अंत हो गया. राम कुमार का संबंध न केवल जाकिर हुसैन जी से था, बल्कि उनके परिवार के साथ भी 45 वर्षों का रिश्ता है. इतना ही नहीं उन्होंने जाकिर हुसैन जी के पिता से 1985 में तालीम प्राप्त की थी. वर्तमान में जो तबला वादकों की पहचान है वह जाकिर हुसैन जी की देन है. देशभर में जब भी तबले का नाम आएगा, तो सबसे पहले जाकिर हुसैन को याद किया जाएगा. अपनी बातों के अंत में राम कुमार मिश्रा ने बताया कि 'जाकिर हुसैन इज द रियल उस्ताद का तबला वादन'. भगवान उनकी आत्मा को शांति दे. असलियत में ऐसे लोग कभी मरते नहीं है वह हमेशा अपने हुनर से दुनिया और अपने चाहने वालों के बीच में जिंदा रहते हैं.
बांसुरी वादक प्रवीण घोटखंडे ने मुलाकात को बताया अपना सौभाग्य : मशहूर बांसुरी वादक प्रवीण घोटखंडे ने अपनी भावनाओं को साझा करते हुए बताया कि मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन का देहांत न केवल देश के लिए दुनिया भर के लिए दुखद समाचार है. सदियों में एक बार ही उनके जैसा कलाकार जन्म लेता है. वह अपने आप को सौभाग्यशाली समझते हैं कि उन्होंने जाकिर हुसैन के साथ तबला वादन किया. हर वर्ष ही उनसे मेरी मुलाकात हुआ करती थी. वहां का केवल एक अच्छे तबला वादक बल्कि एक अच्छे इंसान भी थे. वह हमेशा युवा कलाकारों को सपोर्ट करते थे और कुछ नया ज्ञान देते थे. वह हमेशा नए कलाकार को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते थे. हमेशा इंतजार रहता था कि अपनी नई प्रस्तुति में क्या नया बजाएंगे? जिसे देख कर सीखने का मौका मिल पाएगा. भगवान ऐसी दिव्य आत्मा को शांति दे यही प्रार्थना है.
जाकिर हुसैन का जीवन परिचय : बता दें कि जाकिर का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था. उस्ताद जाकिर हुसैन को 1988 में पद्मश्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से नवाजा गया था. उनके पिता का नाम उस्ताद अल्लारक्खा कुरैशी और मां का नाम बावी बेगम था. जाकिर के पिता अल्लारक्खा भी तबला वादक थे. जाकिर हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के माहिम स्थित सेंट माइकल स्कूल से हुई थी.उन्होंने ग्रेजुएशन मुंबई के ही सेंट जेवियर्स कॉलेज से किया था.
जाकिर हुसैन ने कुल 4 ग्रैमी अवॉर्ड जीते : जाकिर हुसैन साहब ने सिर्फ 11 साल की उम्र में अमेरिका में पहला कॉन्सर्ट किया था. 1973 में उन्होंने अपना पहला एल्बम 'लिविंग इन द मटेरियल वर्ल्ड' लॉन्च किया था. हुसैन को 2009 में पहला ग्रैमी अवॉर्ड मिला. 2024 में उन्होंने 3 अलग-अलग एल्बम के लिए 3 ग्रैमी जीते. इस तरह जाकिर हुसैन ने कुल 4 ग्रैमी अवॉर्ड अपने नाम किए.
ये भी पढ़ें :