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भूजल से विषैले पदार्थों को कैसे खत्म किया जा सकता है, भारतीय वैज्ञानिकों ने निकाला यह तरीका - Make water pure

IISc Develops Novel Process : पानी को कैसे शुद्ध किया जाए और उससे विषैले आर्सेनिक पदार्थों को किस तरह से निकाला जाए, इसके लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है. पढ़ें पूरी खबर.

IISc Develops Novel Process
भूजल से विषैले पदार्थों को जानिए कैसे खत्म किया जा सकता है (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 13, 2024, 5:33 PM IST

बेंगलुरु : आज कल ज्यादातर बीमारियां हमारे शरीर में साफ पानी नहीं पीने की वजह से उत्पन्न हो रही है. शहर के लोग तो फिर भी महंगे फिल्टर वाटर पी भी लेते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा समस्या ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को उठानी पड़ती है. बता दें, देश के अलग-अलग इलाकों के भूजल में जहरीले आर्सेनिक और फ्लोराइड की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसे देखते हुए बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) के वैज्ञानिकों ने एक अनोखी और काफी कारगर टेक्नोलॉजी विकसित की है.

IISC के वैज्ञानिकों ने भूजल (Groundwater) में स्थित आर्सेनिक जैसे हेवी मेटल पोल्यूटेंट (भारी धातु प्रदूषकों) को छानने के लिए एक नया मेथड डेवलप किया है. वैज्ञानिकों ने कहा कि यह मेथड पर्यावरण के अनुकूल नीति के साथ काम करता है. भारत के 223 जिलों में आर्सेनिक का स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय मानक संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से बहुत ज्यादा है. भूजल में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा के कारण मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य पर इसका बहुत बुरा असर पड़ रहा है. अगर वक्त रहते इसके लेवल को बढ़ने से नहीं रोका गया, तो इसका मनुष्यों और पशुओं और पेड़-पौधों स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.

वैसे तो, आर्सेनिक को छानकर शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की तकनीकें भी आज उपलब्ध हैं. लेकिन यहां इस नए मेथड की मुख्य बात यह है कि भूजल से जो आर्सेनिक को निकला जाता उसे दोबारा जमीन में नहीं दफनाया जाता है. बल्कि उसे छानने की प्रक्रिया के साथ ही कुछ देशी उपाए के साथ नष्ट कर दिया जाता है.

दरअसल, पानी से अलग किए जाने के बाद इन जहरीले पदार्थ का निपटान कहां किया जाए, इसे फिर से पर्यावरण में जाने से कैसे रोका जाए, आज के दौर में यह बड़ा सवाल है. लेकिन नए तकनीक ने इस परेशानी का समाधान कर दिया है. तकनीक के माध्यम से फिल्टर किए गए आर्सेनिक को अब जमीन में नहीं गाड़ा जा रहा है. आईआईएससी के वैज्ञानिकों ने इस समस्या का निदान किया कर दिया है.

उन्होंने जो विधि विकसित की है, वह पर्यावरण के अनुकूल तरीके से लीच्ड आर्सेनिक से छुटकारा पाने के लिए उपयोगी है. इस विधि में तीन चरण हैं. प्रक्रिया के पहले चरण में दूषित पानी को चिटोसन-आधारित सोखने वाले पदार्थ के एक बेड या लेअर से गुजारा जाता है, जिसमें लोहा और एल्यूमीनियम यौगिक होते हैं. यह लेअर इलेक्ट्रोस्टैटिक बलों के माध्यम से अकार्बनिक आर्सेनिक को पकड़ लेता है. विशेष रूप से, सोखने वाले पदार्थ के बेड को पुनर्जीवित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले क्षारीय वॉश को सिस्टम के भीतर ही रीसाइकिल किया जाता है

इसमें कहा गया है कि दूसरे चरण में, एक झिल्ली प्रक्रिया क्षारीय वॉश समाधान से आर्सेनिक को अलग करती है, अगले चरण के लिए विषाक्त धातु को केंद्रित करती है. वहीं, तीसरा और अंतिम चरण बायोरेमेडिएशन का उपयोग करता है, जहां गाय के गोबर में मौजूद सूक्ष्मजीव अत्यधिक विषैले अकार्बनिक आर्सेनिक को मिथाइलेशन के माध्यम से कम हानिकारक कार्बनिक रूपों में परिवर्तित करते हैं.

वैज्ञानिकों के अनुसार, औसतन, ये कार्बनिक प्रजातियां भूजल में मौजूद अकार्बनिक रूप से लगभग 50 गुना कम विषाक्त होती हैं. वहीं, कार्बनिक आर्सेनिक युक्त शेष गोबर की गंदगी को लैंडफिल में सुरक्षित रूप से निपटाया जा सकता है. इस प्रणाली को इकट्ठा करना और संचालित करना आसान है.

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बेंगलुरु : आज कल ज्यादातर बीमारियां हमारे शरीर में साफ पानी नहीं पीने की वजह से उत्पन्न हो रही है. शहर के लोग तो फिर भी महंगे फिल्टर वाटर पी भी लेते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा समस्या ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को उठानी पड़ती है. बता दें, देश के अलग-अलग इलाकों के भूजल में जहरीले आर्सेनिक और फ्लोराइड की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसे देखते हुए बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) के वैज्ञानिकों ने एक अनोखी और काफी कारगर टेक्नोलॉजी विकसित की है.

IISC के वैज्ञानिकों ने भूजल (Groundwater) में स्थित आर्सेनिक जैसे हेवी मेटल पोल्यूटेंट (भारी धातु प्रदूषकों) को छानने के लिए एक नया मेथड डेवलप किया है. वैज्ञानिकों ने कहा कि यह मेथड पर्यावरण के अनुकूल नीति के साथ काम करता है. भारत के 223 जिलों में आर्सेनिक का स्तर 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन और भारतीय मानक संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से बहुत ज्यादा है. भूजल में आर्सेनिक की बढ़ती मात्रा के कारण मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य पर इसका बहुत बुरा असर पड़ रहा है. अगर वक्त रहते इसके लेवल को बढ़ने से नहीं रोका गया, तो इसका मनुष्यों और पशुओं और पेड़-पौधों स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.

वैसे तो, आर्सेनिक को छानकर शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की तकनीकें भी आज उपलब्ध हैं. लेकिन यहां इस नए मेथड की मुख्य बात यह है कि भूजल से जो आर्सेनिक को निकला जाता उसे दोबारा जमीन में नहीं दफनाया जाता है. बल्कि उसे छानने की प्रक्रिया के साथ ही कुछ देशी उपाए के साथ नष्ट कर दिया जाता है.

दरअसल, पानी से अलग किए जाने के बाद इन जहरीले पदार्थ का निपटान कहां किया जाए, इसे फिर से पर्यावरण में जाने से कैसे रोका जाए, आज के दौर में यह बड़ा सवाल है. लेकिन नए तकनीक ने इस परेशानी का समाधान कर दिया है. तकनीक के माध्यम से फिल्टर किए गए आर्सेनिक को अब जमीन में नहीं गाड़ा जा रहा है. आईआईएससी के वैज्ञानिकों ने इस समस्या का निदान किया कर दिया है.

उन्होंने जो विधि विकसित की है, वह पर्यावरण के अनुकूल तरीके से लीच्ड आर्सेनिक से छुटकारा पाने के लिए उपयोगी है. इस विधि में तीन चरण हैं. प्रक्रिया के पहले चरण में दूषित पानी को चिटोसन-आधारित सोखने वाले पदार्थ के एक बेड या लेअर से गुजारा जाता है, जिसमें लोहा और एल्यूमीनियम यौगिक होते हैं. यह लेअर इलेक्ट्रोस्टैटिक बलों के माध्यम से अकार्बनिक आर्सेनिक को पकड़ लेता है. विशेष रूप से, सोखने वाले पदार्थ के बेड को पुनर्जीवित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले क्षारीय वॉश को सिस्टम के भीतर ही रीसाइकिल किया जाता है

इसमें कहा गया है कि दूसरे चरण में, एक झिल्ली प्रक्रिया क्षारीय वॉश समाधान से आर्सेनिक को अलग करती है, अगले चरण के लिए विषाक्त धातु को केंद्रित करती है. वहीं, तीसरा और अंतिम चरण बायोरेमेडिएशन का उपयोग करता है, जहां गाय के गोबर में मौजूद सूक्ष्मजीव अत्यधिक विषैले अकार्बनिक आर्सेनिक को मिथाइलेशन के माध्यम से कम हानिकारक कार्बनिक रूपों में परिवर्तित करते हैं.

वैज्ञानिकों के अनुसार, औसतन, ये कार्बनिक प्रजातियां भूजल में मौजूद अकार्बनिक रूप से लगभग 50 गुना कम विषाक्त होती हैं. वहीं, कार्बनिक आर्सेनिक युक्त शेष गोबर की गंदगी को लैंडफिल में सुरक्षित रूप से निपटाया जा सकता है. इस प्रणाली को इकट्ठा करना और संचालित करना आसान है.

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