शिमला: देश के किसी भी फल की दुकान में जाएंगे तो वहां सेब जरूर मौजूद होगा और बहुत हद तक उम्मीद है कि वो सेब या तो हिमाचल से आया होगा या फिर हिमाचल एप्पल के नाम बिक रहा होगा. हिमाचल की कई पहचानों में से एक सेब भी है. प्रदेश की एक बड़ी आबादी सेब उत्पादन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है. लेकिन इस साल सेब सीजन कुछ फीका रहने की उम्मीद है. सेब कैसे है हिमाचल की आर्थिकी का अहम हिस्सा और इस बार क्यों कम हुआ उत्पादन ? ये जानने से पहले आपको हिमाचल के सेब के बारे में कुछ और बातें बताते हैं.
हिमाचल में सेब सीजन
हिमाचल में सेब की पैदावार होती है और देशभर में उत्पादन के मामले में जम्मू-कश्मीर के बाद हिमाचल का नंबर आता है. ज्यादातर लोगों को लगता है सेब का उत्पादन पूरे हिमाचल में होता है. लेकिन हिमाचल के बाहर बहुत कम लोग ये बात जानते हैं कि सेब उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा सिर्फ और सिर्फ शिमला जिले पर निर्भर करता है. इसके अलावा कुल्लू, चंबा, किन्नौर, लाहौल स्पीति, मंडी, सोलन जैसे जिलों में भी सेब का उत्पादन होता है. हिमाचल में जून से शुरू होने वाला सेब सीजन नवंबर लगते ही समाप्ति की ओर है, लेकिन इस बार के सेब सीजन में न सेब पर और न ही बागवानों के चेहरे पर वो लाली नजर आई. इस बार बागवानों को निराशा ही हाथ लगी है
20 नवंबर तक सेब सीजन पूरी तरह से खत्म हो जाएगा. प्रदेश सहित देश की विभिन्न मंडियों में 30 अक्टूबर तक इस बार यूनिवर्सल कार्टन में 2,07,58,027 पेटियां भेजी जा चुकी हैं. ऐसे में प्रदेश में इस साल लगाए गए अनुमान से सेब उत्पादन कम रहने के आसार नजर आ रहे हैं. बागवानी विभाग ने इस साल सेब उत्पादन 2.91 करोड़ पेटियों का अनुमान लगाया है. इस तरह से अभी तक मंडियों में अनुमान से करीब 84 लाख पेटियां मंडियों में कम पहुंची है. अब केवल किन्नौर सहित जिला शिमला में बहुत अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में सेब सीजन अंतिम चरण में चल रहा है. ऐसे में प्रदेश में सेब सीजन अनुमान से कम रहने के आसार दिख रहे हैं. हालांकि सेब का वास्तविक आंकड़ा सेब सीजन समाप्त होने पर ही सामने आएगा, लेकिन पिछले सालों के मुकाबले इस साल सेब का उत्पादन कम ही है. बागवानी विशेषज्ञ एसपी भारद्वाज ने कहा कि, 'बागवानों को तो नुकसान हुआ है, साथ ही प्रदेश की जीडीपी को भी नुकसान होता है.'
सेब पर पड़ी मौसम की मार
छोटे पहाड़ी राज्य में मौसम में लगातार हो रहे बदलाव का असर सेब के उत्पादन पर दिख रहा है. देशभर में फल राज्य के नाम से विख्यात हिमाचल में पहले सर्दियों के मौसम में अच्छी बारिश और बर्फबारी नहीं हुई, जिससे सेब के लिए जरूरी चिलिंग आवर्स पूरे नहीं हो पाए. इसके बाद फ्लावरिंग के समय मौसम खराब रहा और तापमान में उतार चढ़ाव के चलते फ्रूट सेटिंग प्रभावित हुई. वहीं, गर्मियों में समय पर बारिश न होने के कराण सेब का साइज और क्वालिटी पर भी असर पड़ा है, जिसका असर सेब का उत्पादन पर पड़ा है. हालांकि सेब का वास्तविक आंकड़ा सेब सीजन समाप्त होने पर ही सामने आएगा.
करसोग के बागवान रमेश कुमार का कहना है कि, 'मौसम के कारण सेब का उत्पादन कम हुआ है. इससे उनको आर्थिक नुकसान हुआ है. इसके कारण सेब के बगीचे में दवाइयों, खाद, मजदूरों, तुड़ान का खर्च और मंडी तक सेब पहुंचाने के लिए आने वाली परिवहन लागत भी पूरी नहीं हुई है, हिमाचल में सेब उत्पादन कम होने का असर भी बाजार पर कुछ सालों से पड़ना बंद हो गया है, क्योंकि विदेश से आयात सेब डिमांड को पूरा कर देता है'
इस बार सेब का उत्पादन
प्रदेश भर में सेब पैदा करने वाले जिलों से प्राप्त हुई रिपोर्ट के मुताबिक इस बार 2,91,42,800 पेटियां सेब उत्पादन रहने का अनुमान लगाया गया है. इसमें सबसे अधिक सेब जिला शिमला में होने की संभवना है, क्योंकि प्रदेश में सबसे ज्यदा सेब इसी जिले में होता है, जबकि सबसे कम ऊना में 50 पेटी सेब का अनुमान है. नीचे दिए गए आंकड़ों में समझें कि हिमाचल के किस जिले में कितनी सेब की पेटियां होने का अनुमान लगाया गया था.
अभी मंडियों में पहुंची इतनी पेटियां
हिमाचल में सेब सीजन समाप्ति की ओर है. अब केवल किन्नौर सहित कुछेक बहुत ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही सेब सीजन अंतिम चरण में चल रहा है. बागवानी विभाग के मुताबिक, 'प्रदेश सहित देश की विभिन्न मंडियों में 30 अक्टूबर तक 2,07,58,027 पेटियां सेब की पहुंची हैं. इसमें प्रदेश में स्थित विभिन्न मंडियों में 1,17,35,985 पेटियां और बाहरी राज्यों की मंडियों में 99,22,042 पेटियां सेब पहुंचा है. ये सेब यूनिवर्सल कार्टन में 20 किलो की पैकिंग में मंडियों में भेजा गया है. ऐसे में अगर पेटियों के हिसाब से देखा जाए तो पिछले साल के मुकाबले में अभी तक 28,99,725 अधिक पेटियां मंडियों में पहुंची है. वहीं साल 2023 में 30 अक्टूबर तक मंडियों में 1,78,58,302 पेटियां सेब पहुंच चुका था. जो 24 किलो पैकिंग में भेजी गई थी. उस दौरान प्रदेश की विभिन्न मंडियों में 88,80,862 और बाहरी राज्यों की मंडियों में 89,77,440 पेटियां सेब पहुंचा था.
13,439 मीट्रिक टन कम सेब
प्रदेश में अगर मीट्रिक टन के हिसाब से सेब उत्पादन देखा जाए तो अब तक मंडियों में 4,15,160 मीट्रिक टन सेब प्रदेश सहित देश की विभिन्न मंडियों में भेजा जा चुका हैं. जो पिछले साल की तुलना में 13,439 मीट्रिक टन कम है. वहीं साल 2023 में 30 अक्टूबर तक 4,28,599 मीट्रिक टन सेब मंडियों में पहुंचा था. अब सोच रहें होंगे कि सेब की पेटियों का उत्पादन बढ़ा है तो सेब का उत्पादन कम कैसे हुआ? ये सारा खेल यूनिवर्सल कार्टन के कारण हुआ है.
यूनिवर्सल कार्टन में बिक रहा सेब
पहले हिमाचल में टेलिस्कोपिक कार्टन में सेब बिकता था, लेकिन इस बार से पूरे हिमाचल का सेब यूनिवर्सल कार्टन में ही बिकना शुरू हुआ है.टेलीस्कोपिक कार्टन में मनमर्जी की पैकिंग कर सकते थे, क्योंकि इसमें आउटर और इनर दो कार्टन होते हैं. अगर आउटर कार्टन को इनर कार्टन से ऊपर उठाया जाए तो, इसमें 30 किलो तक का सेब आ सकता था, लेकिन इस साल पहली बार पूरे हिमाचल में यूनिवर्सल कार्टन में सेब बेचा गया है. इस यूनिवर्सल कार्टन में सिर्फ 20 किलो सेब ही भरा जा सकता है. इसलिए उत्पादन पेटियों में तो बढ़ा है, लेकिन टन के हिसाब से कम हुआ है.
टेलीस्कोपिक कार्टन को बंद करने की मांग
टेलीस्कोपिक कार्टन को बंद करने की मांग सेब विक्रेता इसलिए कर रहे थे, ताकि इस तरह का विकल्प ही न रहे कि जिससे बॉक्स में ज्यादा सेब डाला जा सके. हालांकि, यह बागवानों पर निर्भर करता है कि वो इस कार्टन में 20 से लेकर 35 किलो तक सेब पैक कर सकते हैं, लेकिन इस कार्टन के प्रचलित होने से बागवानों से निर्धारित मात्रा में ज्यादा सेब लिया जाता रहा है, यही नहीं मंडियों में ज्यादा वजन वाले सेब की डिमांड खरीददार करते हैं, जो कि अभी तक होता भी आया है. यूनिवर्सल कार्टन में 27-28 किलो सेब वाली पेटी के भी उतने ही दाम मिलते थे और अब 20 किलो यूनिवर्सल कार्टन वाली पेटी के भी बागवानों को उतने ही दाम मिल रहे हैं. कुल मिलाकर बागवानों से यूनिवर्सल कार्टन में अधिक सेब नहीं लिया जा सकता.
5 हजार करोड़ की आर्थिकी
हिमाचल में सेब आर्थिकी 5 हजार करोड़ की हैं. प्रदेश में कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जुलाई महीने में सेब सीजन शुरू होता है, जो 20 नवंबर तक चलता है. प्रदेश में सभी 12 जिलों शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मंडी, चंबा, सिरमौर, लाहौल स्पीति, कांगड़ा, सोलन, बिलासपुर, हमीरपुर और ऊना में सेब हो रहा है, लेकिन सबसे अधिक सेब उत्पादन जिला शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मंडी, चंबा, सिरमौर, सोलन जिले में होता हैं. हिमाचल का सेब देशभर में मिठास के लिए जाना जाता हैं. यहां से दिल्ली, मुंबई, मद्रास, कलकत्ता, अहमदाबाद, चंडीगढ़ आदि बड़े शहरों की मंडियों में भेजा जाता है.
साल | उत्पादन (पेटियां) |
2010 | 5.11 करोड़ |
2011 | 1.38 करोड़ |
2012 | 1.84 करोड़ |
2013 | 3.69 करोड़ |
2014 | 2.80 करोड़ |
2015 | 3.88 करोड़ |
2016 | 2.40 करोड़ |
2017 | 2.08 करोड़ |
2018 | 1.65 करोड़ |
2019 | 3.24 करोड़ |
2020 | 2.40 करोड़ |
2021 | 3.5 करोड़ |
2022 | 3.36 करोड़ |
2023 | 2.11 करोड़ |
मौसम की मार से घटा उत्पादन
जिला शिमला के बखौल गांव के प्रगतिशील बागवान संजीव चौहान ने बताया, 'मौसम की मार से इस बार सेब उत्पादन कम है.उनका कहना है कि मौसम की वजह से इस बार 70 फीसदी सेब डी ग्रेड की श्रेणी का है.जिसके बागवानों को मंडियों में बहुत कम रेट मिले हैं.सिर्फ 30 फीसदी सेब अच्छी गुणवत्ता का है, जो मंडियों में 3 हजार रुपए से अधिक बिका हैं.मंडियों में 15 अगस्त तक की सेब के रेट अच्छे रहे.इसके बाद मंडियों में दाम एक दम से गिर गए थे. अगस्त महीने में 20 किलो की सेब की पेटी 3000 हजार रुपये तक में बिकी थी, लेकिन 15 अगस्त के बाद सेब दाम कुछ कम हुए थे. साथ ही उपभोक्ताओं को सेब हाई रेट पर मिल रहा था.'
बागवानी विभाग के संयुक्त निदेशक हेमचंद का कहना है कि, 'प्रदेश में 20 नवंबर तक सेब सीजन समाप्त हो जाता है. 30 अक्टूबर तक मंडियों में सेब की 2.07 करोड़ पेटियां भेजी जा चुकी हैं.'
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