नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आठ राज्यों और उनके हाई कोर्ट से अपीलीय अदालतों द्वारा दिए गए स्टे आदेशों के 'आपराधिक मुकदमों की गति पर प्रतिकूल प्रभाव'के संबंध में स्वत:संज्ञान लिया और मामले पर जवाब मांगा.
भारत के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने हाल ही में आपराधिक मुकदमों पर स्टे ऑर्डरों के प्रतिकूल प्रभाव के मुद्दे पर 8 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा पारित एक आदेश का स्वत: संज्ञान लिया.
स्टे दिए जाने के सवाल पर पीठ ने कहा कि संबंधित हाई कोर्ट छह सप्ताह के भीतर अपने जवाब दाखिल कर सकते हैं. पीठ ने 17 मार्च 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह के दौरान सुनवाई निर्धारित की.
8 हाई कोर्ट से मांगा जवाब
इसके साथ ही महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, पश्चिम बंगाल, केरल और मिजोरम को अपने जवाब दाखिल करने होंगे क्योंकि उन्होंने अपने क्षेत्र के भीतर मामलों की जांच के लिए सीबीआई को सामान्य सहमति वापस ले ली है. पीठ ने आगे आदेश दिया कि सीबीआई द्वारा दायर हलफनामे की एक कॉपी संबंधित राज्यों के स्थायी वकील को दी जाए.
सीबीआई की याचिका पर सुनवाई
नवंबर 2021 में सीबीआई द्वारा दायर एक याचिका पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपीलीय अदालतों द्वारा दिए गए स्टे ऑर्डर और इसके प्रतिकूल प्रभाव के मुद्दे को उठाया था. अदालत ने 8 नवंबर, 2021 के अपने आदेश में कहा, "हम अपीलीय अदालतों द्वारा दिए गए स्टे ऑर्डर और इस प्रकार मुकदमे की गति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने को लेकर चिंतित हैं, जबकि इस अदालत ने ऐसे स्टे देने के लिए मानदंड निर्धारित किए हैं."
मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखें जाएं विचार
कोर्ट ने कहा, "इसलिए हम यह उचित समझते हैं कि इस पहलू को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष उनके विचार और उचित आदेश के लिए रखा जाना चाहिए, क्योंकि इसका वर्तमान मामले से कोई सीधा संबंध नहीं हो सकता है."
यह मुद्दा तब सामने आया जब सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सीबीआई की अपील 542 दिनों की देरी के बाद दायर की गई थी. इससे पहले कोर्ट ने सीबीआई से कहा गया था कि वह अपनी अभियोजन इकाई को मजबूत करने के लिए उठाए जाने वाले कदमों, बाधाओं और एजेंसी द्वारा जांचे गए मामलों में दोषसिद्धि दर के बारे में रिकॉर्ड पर लाए.
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