हैदराबाद: तेलंगाना के हैदराबाद की रहने वाली हरिका ने अकेले ही बाइक पर दुनिया की सबसे ऊंची मोटरेबल सड़कों में से एक लद्दाख के चुनौतीपूर्ण उमलिंगला दर्रे को पार करके एक उल्लेखनीय मील का पत्थर स्थापित किया है. यह उपलब्धि न केवल उनकी साहसिक भावना को उजागर करती है, बल्कि आत्मविश्वास और दृढ़ता की शक्ति को भी रेखांकित करती है.
बचपन से ही हरिका का सपना उमलिंगला तक पहुंचना रहा है. उन्होंने अपने ख्वाब को पूरा करने लिए क्षेत्र की खतरनाक भूमि और चुनौती भरे मौसम के बावजूद अपने अभियान की सावधानीपूर्वक योजना बनाई. वह अटूट आत्मविश्वास के साथ चुनौती स्वीकार की और बर्फीले तूफानों और चुनौतीपूर्ण परिदृश्य को पार करते हुए समुद्र तल से 19,000 फीट की ऊंचाई तक पहुंचीं.
नेल्लोर में हुआ जन्म
नेल्लोर जिले में जन्मीं और हैदराबाद में पली-बढ़ी हरिका की एडवेंचरर बनने की यात्रा बहुत कम उम्र में ही शुरू हो गई थी. इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्होंने पारंपरिक नौकरी करने के बजाय, एक्यूपंक्चर (समाज सेवा) के प्रति अपने जुनून को बढ़ाने का फैसला किया और एनजीओ के माध्यम से समाज सेवा में जुट गईं. उनके परोपकारी प्रयासों में चेन्नई बाढ़ के दौरान स्वयंसेवा करना और कोविड-19 महामारी के दौरान कर्नाटक में लोगों की मदद करना शामिल है.
सावधानी बरतने पर जोर
उमलिंगला दर्रे तक की यात्रा करने वाली हरिका ऐसा करने वाली पहली महिला हैं. अपनी उपलब्धि को लेकर उनका कहना है कि वह सावधानीपूर्वक योजना बनाने और पर्याप्त सावधानी बरतने के महत्व पर जोर देती हैं. उनका मानना है कि डर को कभी भी किसी के सपनों की खोज में बाधा नहीं बनना चाहिए.
उल्लेखनीय है कि उमलिंगला दर्रा अपने अप्रत्याशित मौसम और माइनस 10 से माइनस 25 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान के लिए कुख्यात है. हरिका के लिए यहां पहुंचना एक कठिन चुनौती थी. फिर भी उसकी साहस भरी भावना और दृढ़ संकल्प ने उसे इन बाधाओं को पार करने और गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने में सक्षम बनाया.
समाज सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं हरिका
हरिका की कहानी इस कहावत को सही साबित करती है कि दृढ़ इच्छाशक्ति से कुछ भी हासिल किया जा सकता है. एडवेंचर स्पोर्ट्स के अलावा, वह समाज सेवा के लिए प्रतिबद्ध हैं और उनका लक्ष्य वैश्विक स्तर पर नए डेस्टिनेशन की तलाश जारी रखना है.
भविष्य में वह अंतरराष्ट्रीय यात्राएं करना चाहती हैं, हरिका जीवन के प्रति अपने अभिनव दृष्टिकोण से प्रेरणा देती रहती हैं. उनकी यात्रा सशक्तिकरण की एक किरण है और यह याद दिलाती है कि चाहे भौगोलिक हो या सामाजिक, सीमाओं को साहस और दृढ़ संकल्प के साथ पार किया जा सकता है.
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