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वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर होने तक बालिग बच्चा भी मुआवजे का हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट - Hindu Marriage Act

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 26 के तहत एक बालिग बच्चा भी अपनी पढ़ाई पूरी होने और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनने तक गुजारा भत्ता पाने का हकदार है.

दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Aug 1, 2024, 10:21 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एक बालिग बच्चा भी गुजारा भत्ते का तब तक हकदार है जब तक उसकी पढ़ाई चल रही है और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर न बन जाए. ए जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिया है.

कोर्ट ने कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 26 के तहत एक बालिग बच्चा भी अपनी पढ़ाई पूरी होने और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनने तक गुजारा भत्ता पाने का हकदार है. कोर्ट ने कहा कि धारा 26 का लक्ष्य है कि बच्चों को उनकी शिक्षा उपलब्ध कराए. कोर्ट ने कहा कि कोई बच्चा 18 वर्ष का हो जाए, इसका मतलब ये नहीं कि उसकी पढ़ाई पूरी हो चुकी है. आज के प्रतियोगी दौर में 18 साल के बाद पाई गई. शिक्षा ही किसी बच्चे को बेहतर रोजगार का मौका देती है.

दरअसल, पति और पत्नी के बीच चल रहे पारिवारिक विवाद में दोनों ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. फैमिली कोर्ट ने आदेश दिया था कि पति अपनी पत्नी और बच्चे को एक लाख 15 हजार रुपये का हर महीने मुआजवा दे. फैमिली कोर्ट ने पति को निर्देश दिया था कि वो अपने बेटे को 26 वर्ष की उम्र तक हर महीने 35 हजार रुपये दे.

हाईकोर्ट ने कहा कि पति ने अपनी आमदनी को छिपाया और ऐसे में पत्नी की ओर से हर महीने एक लाख 45 हजार रुपये की मांग करना सही है. क्योंकि पत्नी बेरोजगार है. हाईकोर्ट ने पति को एक लाख 45 हजार रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि एक बालिग बच्चा भी गुजारा भत्ते का तब तक हकदार है जब तक उसकी पढ़ाई चल रही है और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर न बन जाए. ए जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिया है.

कोर्ट ने कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 26 के तहत एक बालिग बच्चा भी अपनी पढ़ाई पूरी होने और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर बनने तक गुजारा भत्ता पाने का हकदार है. कोर्ट ने कहा कि धारा 26 का लक्ष्य है कि बच्चों को उनकी शिक्षा उपलब्ध कराए. कोर्ट ने कहा कि कोई बच्चा 18 वर्ष का हो जाए, इसका मतलब ये नहीं कि उसकी पढ़ाई पूरी हो चुकी है. आज के प्रतियोगी दौर में 18 साल के बाद पाई गई. शिक्षा ही किसी बच्चे को बेहतर रोजगार का मौका देती है.

दरअसल, पति और पत्नी के बीच चल रहे पारिवारिक विवाद में दोनों ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. फैमिली कोर्ट ने आदेश दिया था कि पति अपनी पत्नी और बच्चे को एक लाख 15 हजार रुपये का हर महीने मुआजवा दे. फैमिली कोर्ट ने पति को निर्देश दिया था कि वो अपने बेटे को 26 वर्ष की उम्र तक हर महीने 35 हजार रुपये दे.

हाईकोर्ट ने कहा कि पति ने अपनी आमदनी को छिपाया और ऐसे में पत्नी की ओर से हर महीने एक लाख 45 हजार रुपये की मांग करना सही है. क्योंकि पत्नी बेरोजगार है. हाईकोर्ट ने पति को एक लाख 45 हजार रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया.

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