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क्या आदिवासियों के बीच पकड़ हो रही कमजोर? जानिए झारखंड में BJP का एक्शन प्लान! - BJP Jharkhand Politics

BJP Jharkhand Politics: कई राज्यों के चुनाव होने वाले हैं और उनमें से कई राज्य ऐसे भी हैं जहां बीजेपी को लोकसभा चुनाव में बढ़िया सीटें नही मिली है और बड़ा झटका लगा है इस डेंट को दूर करने में पार्टी अभी से जुट गई है. इनमें सबसे पहले चुनाव हैं झारखंड में, जहां भाजपा को ऐसा लग रहा है की उनकी पकड़ आदिवासियों के बीच कमजोर होती जा रही है और इसे लेकर पार्टी नई रणनीति तैयार कर रही है. इस विषय पर ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट...

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फोटो (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jul 9, 2024, 7:51 PM IST

Updated : Jul 9, 2024, 8:03 PM IST

नई दिल्ली: झारखंड में आई लोकसभा की सीटों ने वहां के विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की मुश्किलें जरूर बढ़ा दिन है,यही नहीं पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को एसटी के लिए सुरक्षित 28 सीटों में मात्र 2 सीटों पर ही जीत नसीब हुई. लोकसभा चुनाव के बाद से ही पार्टी के आला नेता झारखंड पर लगातार मंथन कर रहे हैं,यदि आंकड़े देखें तो झारखंड की कुल आबादी में से 26 फीसदी आबादी आदिवासियों की है और वोट बैंक में मुसलमान भी अच्छा प्रभुत्व रखते हैं. जिनकी संख्या कुल आबादी की करीब 14 फीसदी हैं. अब विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा वहां संगठन को मजबूत कर आदिवासी वोट बैंक पर अपना प्रभाव डालना चाहती है. क्योंकि मुस्लिम वोट उन्हे वोट डालेंगे नहीं, ये भाजपा को पहले से ही पता है.

झारखंड में बीजेपी की रणनीति
राज्य में लगभग 50 फीसदी संख्या ओबीसी भी है. यही वजह है कि पार्टी इस वोट बैंक पर डोरे डालने के लिए भी नई रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी अब राज्य की 50 फीसदी से अधिक ओबीसी और करीब 14 फीसदी दलितों को भी लेकर कई कार्यक्रम तैयार कर रही है और इसे साधने की रणनीति बना रही है. इसके लिए भाजपा ने राज्य में बड़े ओबीसी चेहरे और मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह को चुनाव प्रभारी बनाया गया है जो लगातार झारखंड के अलग अलग राज्यों का दौरा कर रहे हैं.सूत्रों की माने तो रांची में एक कार्यक्रम के दौरान राज्य के पार्टी अध्यक्ष समेत तमाम पदाधिकारियों को रात दिन जनता जुड़े कार्यक्रमों में जाने और जी जान से पार्टी के हित में कार्य करने के निर्देश भी दिए गए हैं.

आदिवासी, दलित,ओबीसी को साधने की कोशिश
गौरतलब है कि, राज्य में मौजूद संगठन के पदाधिकारी समय समय पर बंटे हुए भी नजर आ रहे थे और जितनी मेहनत और एकजुटता दिखनी चाहिए थी वो नजर नहीं आ रही थी. अब चुनाव प्रभारी के इस बयान के बाद सूत्रों की माने तो अध्यक्ष समेत तमाम पदाधिकारी पार्टी के काम में दिन रात जुट गए हैं. खुद शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के ओबीसी और दलित कार्यकर्ताओं के घर जाकर भोजन भी किया. जिसके माध्यम से पार्टी सबसे बड़े वोटबैंक OBC और दलित वोटरों को साधने की कोशिशों में जुटी दिख रही है .

बीजेपी के कद्दावर नेताओं को मिली जिम्मेदारी
वहीं, राज्य में सह प्रभारी भाजपा ने असम के मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता हिमंत बिस्वा सरमा को बनाया है. जिन्होंने राज्य में बीजेपी के बड़े आदिवासी चेहरों से घर जाकर मुलाकात भी की. सूत्रों की माने तो पार्टी की रणनीति राज्य के बड़े आदिवासी नेताओं को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारने की भी है ताकि आदिवासी वोटरों में पैठ बनाई जा सके. इसके साथ ही पार्टी ने विधानसभा की चुनावी तैयारियों में बीजेपी के मुख्यमंत्रियों, बड़े मंत्रियों और अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों को जिम्मा भी दिया है दिया है. मसलन ओडिशा से सटे इस राज्य के कोल्हान क्षेत्र में आदिवासियों के बीच ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन माझी को प्रचार का जिम्मा सौंपा गया है. साथ ही संथाल परगना में भी मोहन माझी संथाल आदिवासियों के बीच जायेंगे. मोहन माझी खुद संथाल आदिवासी हैं. संथाल परगना में 18 और कोल्हान क्षेत्र में 14 विधानसभा की सीटें हैं.छत्तीसगढ़ से सटे क्षेत्रों और दक्षिणी छोटा नागपुर के इलाकों के आदिवासियों को साधने की जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु देव साय को दी गई है.

हेमंत सोरेने मजबूत होकर लौटै
उसी तरह यूपी से सटे जिले ,पलामू और उसके आस पास के क्षेत्रों में जहां बांग्लादेश से आए बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठिए भी हैं जिसकी वजह से इन क्षेत्रों का डेमोग्राफी कुछ बदल चुका है उनमें यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरे और चुनाव प्रचार करवाए जायेंगे. इसी तरह लोकसभा चुनाव के परिणाम पर हुए मंथन के बाद सूत्रों की माने तो बीजेपी को लगता है कि हेमंत सोरेन जेल से राजनीतिक तौर पर और मजबूत होकर लौटें है. कहीं वो आदिवासी वोट बैंक की सहानुभूति ना ले जाएं इसकी काट के तौर पर पार्टी राज्य सरकार में हुए अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के मामलों की लिस्ट बना रही है. झारखंड को भाजपा लिटमस पेपर की तरह ले रही है क्योंकि झारखंड के परिणाम का असर अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा पर भी डालेगा.

बीजेपी की आगे की रणनीति
हालांकि, पार्टी को मालूम है की झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ बीजेपी का भ्रष्टाचार का मुद्दा ज्यादा असर नही डाल पाया ,इसलिए नेगेटिव नैरेटिव सेट करने से भी पार्टी परहेज करेगी. लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें 11 से घट कर 8 हो गई. वहीं, जेएमएम की सीट 1 से बढ़कर 3 हो गई. बीजेपी झारखंड की आदिवासियों के लिए सुरक्षित सभी सीटें हार गई. कांग्रेस और जेएमएम ने सुरक्षित सभी 5 सीटें जीत ली है.और इसे ध्यान में रखते हुए ही भाजपा ने अभिंसे कमर कस ली हैं और विधानसभा की तैयारियों में नेताओं को युद्ध स्तर पर लग जाने की हिदायत दी गई है.

ये भी पढ़ें: ईटीवी भारत से खास बातचीत में बोले गडकरी- झारखंड में फिर बनेगी भाजपा सरकार

नई दिल्ली: झारखंड में आई लोकसभा की सीटों ने वहां के विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की मुश्किलें जरूर बढ़ा दिन है,यही नहीं पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को एसटी के लिए सुरक्षित 28 सीटों में मात्र 2 सीटों पर ही जीत नसीब हुई. लोकसभा चुनाव के बाद से ही पार्टी के आला नेता झारखंड पर लगातार मंथन कर रहे हैं,यदि आंकड़े देखें तो झारखंड की कुल आबादी में से 26 फीसदी आबादी आदिवासियों की है और वोट बैंक में मुसलमान भी अच्छा प्रभुत्व रखते हैं. जिनकी संख्या कुल आबादी की करीब 14 फीसदी हैं. अब विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा वहां संगठन को मजबूत कर आदिवासी वोट बैंक पर अपना प्रभाव डालना चाहती है. क्योंकि मुस्लिम वोट उन्हे वोट डालेंगे नहीं, ये भाजपा को पहले से ही पता है.

झारखंड में बीजेपी की रणनीति
राज्य में लगभग 50 फीसदी संख्या ओबीसी भी है. यही वजह है कि पार्टी इस वोट बैंक पर डोरे डालने के लिए भी नई रणनीति पर काम कर रही है. बीजेपी अब राज्य की 50 फीसदी से अधिक ओबीसी और करीब 14 फीसदी दलितों को भी लेकर कई कार्यक्रम तैयार कर रही है और इसे साधने की रणनीति बना रही है. इसके लिए भाजपा ने राज्य में बड़े ओबीसी चेहरे और मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह को चुनाव प्रभारी बनाया गया है जो लगातार झारखंड के अलग अलग राज्यों का दौरा कर रहे हैं.सूत्रों की माने तो रांची में एक कार्यक्रम के दौरान राज्य के पार्टी अध्यक्ष समेत तमाम पदाधिकारियों को रात दिन जनता जुड़े कार्यक्रमों में जाने और जी जान से पार्टी के हित में कार्य करने के निर्देश भी दिए गए हैं.

आदिवासी, दलित,ओबीसी को साधने की कोशिश
गौरतलब है कि, राज्य में मौजूद संगठन के पदाधिकारी समय समय पर बंटे हुए भी नजर आ रहे थे और जितनी मेहनत और एकजुटता दिखनी चाहिए थी वो नजर नहीं आ रही थी. अब चुनाव प्रभारी के इस बयान के बाद सूत्रों की माने तो अध्यक्ष समेत तमाम पदाधिकारी पार्टी के काम में दिन रात जुट गए हैं. खुद शिवराज सिंह चौहान ने राज्य के ओबीसी और दलित कार्यकर्ताओं के घर जाकर भोजन भी किया. जिसके माध्यम से पार्टी सबसे बड़े वोटबैंक OBC और दलित वोटरों को साधने की कोशिशों में जुटी दिख रही है .

बीजेपी के कद्दावर नेताओं को मिली जिम्मेदारी
वहीं, राज्य में सह प्रभारी भाजपा ने असम के मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता हिमंत बिस्वा सरमा को बनाया है. जिन्होंने राज्य में बीजेपी के बड़े आदिवासी चेहरों से घर जाकर मुलाकात भी की. सूत्रों की माने तो पार्टी की रणनीति राज्य के बड़े आदिवासी नेताओं को विधानसभा के चुनावी मैदान में उतारने की भी है ताकि आदिवासी वोटरों में पैठ बनाई जा सके. इसके साथ ही पार्टी ने विधानसभा की चुनावी तैयारियों में बीजेपी के मुख्यमंत्रियों, बड़े मंत्रियों और अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों को जिम्मा भी दिया है दिया है. मसलन ओडिशा से सटे इस राज्य के कोल्हान क्षेत्र में आदिवासियों के बीच ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन माझी को प्रचार का जिम्मा सौंपा गया है. साथ ही संथाल परगना में भी मोहन माझी संथाल आदिवासियों के बीच जायेंगे. मोहन माझी खुद संथाल आदिवासी हैं. संथाल परगना में 18 और कोल्हान क्षेत्र में 14 विधानसभा की सीटें हैं.छत्तीसगढ़ से सटे क्षेत्रों और दक्षिणी छोटा नागपुर के इलाकों के आदिवासियों को साधने की जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ के सीएम विष्णु देव साय को दी गई है.

हेमंत सोरेने मजबूत होकर लौटै
उसी तरह यूपी से सटे जिले ,पलामू और उसके आस पास के क्षेत्रों में जहां बांग्लादेश से आए बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठिए भी हैं जिसकी वजह से इन क्षेत्रों का डेमोग्राफी कुछ बदल चुका है उनमें यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दौरे और चुनाव प्रचार करवाए जायेंगे. इसी तरह लोकसभा चुनाव के परिणाम पर हुए मंथन के बाद सूत्रों की माने तो बीजेपी को लगता है कि हेमंत सोरेन जेल से राजनीतिक तौर पर और मजबूत होकर लौटें है. कहीं वो आदिवासी वोट बैंक की सहानुभूति ना ले जाएं इसकी काट के तौर पर पार्टी राज्य सरकार में हुए अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के मामलों की लिस्ट बना रही है. झारखंड को भाजपा लिटमस पेपर की तरह ले रही है क्योंकि झारखंड के परिणाम का असर अगले साल होने वाले बिहार विधानसभा पर भी डालेगा.

बीजेपी की आगे की रणनीति
हालांकि, पार्टी को मालूम है की झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ बीजेपी का भ्रष्टाचार का मुद्दा ज्यादा असर नही डाल पाया ,इसलिए नेगेटिव नैरेटिव सेट करने से भी पार्टी परहेज करेगी. लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें 11 से घट कर 8 हो गई. वहीं, जेएमएम की सीट 1 से बढ़कर 3 हो गई. बीजेपी झारखंड की आदिवासियों के लिए सुरक्षित सभी सीटें हार गई. कांग्रेस और जेएमएम ने सुरक्षित सभी 5 सीटें जीत ली है.और इसे ध्यान में रखते हुए ही भाजपा ने अभिंसे कमर कस ली हैं और विधानसभा की तैयारियों में नेताओं को युद्ध स्तर पर लग जाने की हिदायत दी गई है.

ये भी पढ़ें: ईटीवी भारत से खास बातचीत में बोले गडकरी- झारखंड में फिर बनेगी भाजपा सरकार

Last Updated : Jul 9, 2024, 8:03 PM IST
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