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गाय के घी के कारण बदल गई इस गांव की किस्मत, नोटों की हो रही बरसात! जानें किसने बढ़ाया मदद का हाथ - GHEE TRANSFORMED KUMMARIGUDEM

तेलंगाना का एक ऐसा गांव है जहां लोग अपने घरों में गाय रखते हैं.

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तेलंगाना के हनुमाकोंडा का एक गांव जहां लोगों ने बदली किस्मत (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 18, 2024, 8:00 PM IST

हनुमाकोंडा: तेलंगाना के हनुमाकोंडा जिले के एक छोटे से गांव, कुम्मारिगुडेम को राज्य के एक आदर्श गांव में बदल दिया गया है. इस गांव के हर घर में एक गाय आपको देखने को जरूर मिल जाएंगी. वैसे भी गाय को कई धर्मों में पवित्र माना गया है. वहीं, जब बाहर से आए लोग इस गांव में पहुंचते हैं तो उन्हें दूध की प्राकृतिक सुगंध का एहसास होता है. घर के दालान (बरामदा) से गाय के घी की खुशबू आती है, जो लोगों की आत्मा और मन को तरोताजा कर देती है.

2014 में यहां के किसान साधारण खेती करते थे. इसलिए उन्हें बहुत कम आय होती थी. बदलाव की शुरुआत स्थानीय किसान मरुपका कोटी से हुई, जिन्होंने लागत कम करने और आय बढ़ाने के लिए जैविक खेती को अपनाया. कहते हैं कि, कुम्मारिगुडेम गांव दूसरों को कर्ज से मुक्त होने के लिए डेयरी फार्मिंग में नवाचार करने के लिए प्रेरित कर रहा है. यहां हर घर में कम से कम एक गाय होने के कारण, यह गांव अब धन और समृद्धि से भरा एक संपन्न समुदाय बन गया है.

संघर्षशील किसानों से सफल उद्यमी तक
कृषि से जुड़े प्रशिक्षित लोगों ने उन्हें जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ. वर्षों के संघर्ष के बाद, कोटी ने डॉ. सर्जना रमेश, कूरापति वेंकटनारायण और एक जर्मन परोपकारी मोनिका रिटरिंग से मदद मांगी और गांव में सतत डेयरी फार्मिंग की शुरुआत की.

मदद का हाथ
पुट्टापर्थी साईबाबा की भक्त और जर्मन नागरिक, रिटरिंग ने किसान आत्महत्या के शिकार परिवारों की मदद करना शुरू किया. शुरुआत में, उन्होंने 30 परिवारों को एक-एक गाय दी, जिससे उन्हें दूध बेचकर कमाई शुरू करने में मदद मिली. अगले चरण में, उन्होंने दूध संग्रह और घी बनाने की मशीनें लगाईं, जिससे उत्पादों और आय में वृद्धि हुई.

डेयरी बूम के साथ वित्तीय परिवर्तन
वर्तमान में, गांव में 60 परिवारों के पास लगभग 200 गायें हैं, जो हर महीने 50 किलो घी बनाती हैं, जिसमें से 25 किलो अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे विदेशी देशों को निर्यात किया जाता है. एक ग्रामीण ने कहा कि, बचा हुआ घी हनुमाकोंडा, वारंगल और हैदराबाद में आयुर्वेदिक डॉक्टरों को बेचा जाता है.

किसान मरुपका कोटी ने कहा कि, उनके परिवार की आय 3 हजार रुपये प्रति माह थी, लेकिन अब गाय पालने के बाद यह बढ़कर 8 हजार रुपये प्रति माह हो गई है. इससे उनकी वित्तीय समस्याएं हल हो गईं. अब वे बिना किसी कर्ज के अपने दो बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा, हमारे जैसे कई परिवार आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं.

गुणवत्तापूर्ण उत्पाद
इसके अलावा, जैविक खेती में गांव की सफलता और गाय के दूध से बने गुणवत्तायुक्त उत्पादों ने अन्य लोगों को भी इस पेशे को अपनाने के लिए प्रेरित किया है क्योंकि उनका एक लीटर दूध 120 रुपये में बिकता है, जबकि शुद्ध घी 4 हजार रुपये प्रति किलोग्राम मिलता है. कुमारीगुडेम की सफलता टिकाऊ कृषि पद्धतियों और ग्रामीण विकास का एक प्रेरक उदाहरण है.

ये भी पढ़ें: UPI से पेमेंट करने वालों को क्यों नहीं मिला बजाज हाउससिंग फाइनेंस का IPO? नेटबैंकिंग वालों की चमकी किस्मत

हनुमाकोंडा: तेलंगाना के हनुमाकोंडा जिले के एक छोटे से गांव, कुम्मारिगुडेम को राज्य के एक आदर्श गांव में बदल दिया गया है. इस गांव के हर घर में एक गाय आपको देखने को जरूर मिल जाएंगी. वैसे भी गाय को कई धर्मों में पवित्र माना गया है. वहीं, जब बाहर से आए लोग इस गांव में पहुंचते हैं तो उन्हें दूध की प्राकृतिक सुगंध का एहसास होता है. घर के दालान (बरामदा) से गाय के घी की खुशबू आती है, जो लोगों की आत्मा और मन को तरोताजा कर देती है.

2014 में यहां के किसान साधारण खेती करते थे. इसलिए उन्हें बहुत कम आय होती थी. बदलाव की शुरुआत स्थानीय किसान मरुपका कोटी से हुई, जिन्होंने लागत कम करने और आय बढ़ाने के लिए जैविक खेती को अपनाया. कहते हैं कि, कुम्मारिगुडेम गांव दूसरों को कर्ज से मुक्त होने के लिए डेयरी फार्मिंग में नवाचार करने के लिए प्रेरित कर रहा है. यहां हर घर में कम से कम एक गाय होने के कारण, यह गांव अब धन और समृद्धि से भरा एक संपन्न समुदाय बन गया है.

संघर्षशील किसानों से सफल उद्यमी तक
कृषि से जुड़े प्रशिक्षित लोगों ने उन्हें जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ. वर्षों के संघर्ष के बाद, कोटी ने डॉ. सर्जना रमेश, कूरापति वेंकटनारायण और एक जर्मन परोपकारी मोनिका रिटरिंग से मदद मांगी और गांव में सतत डेयरी फार्मिंग की शुरुआत की.

मदद का हाथ
पुट्टापर्थी साईबाबा की भक्त और जर्मन नागरिक, रिटरिंग ने किसान आत्महत्या के शिकार परिवारों की मदद करना शुरू किया. शुरुआत में, उन्होंने 30 परिवारों को एक-एक गाय दी, जिससे उन्हें दूध बेचकर कमाई शुरू करने में मदद मिली. अगले चरण में, उन्होंने दूध संग्रह और घी बनाने की मशीनें लगाईं, जिससे उत्पादों और आय में वृद्धि हुई.

डेयरी बूम के साथ वित्तीय परिवर्तन
वर्तमान में, गांव में 60 परिवारों के पास लगभग 200 गायें हैं, जो हर महीने 50 किलो घी बनाती हैं, जिसमें से 25 किलो अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे विदेशी देशों को निर्यात किया जाता है. एक ग्रामीण ने कहा कि, बचा हुआ घी हनुमाकोंडा, वारंगल और हैदराबाद में आयुर्वेदिक डॉक्टरों को बेचा जाता है.

किसान मरुपका कोटी ने कहा कि, उनके परिवार की आय 3 हजार रुपये प्रति माह थी, लेकिन अब गाय पालने के बाद यह बढ़कर 8 हजार रुपये प्रति माह हो गई है. इससे उनकी वित्तीय समस्याएं हल हो गईं. अब वे बिना किसी कर्ज के अपने दो बच्चों को पढ़ा रहे हैं. उन्होंने कहा, हमारे जैसे कई परिवार आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं.

गुणवत्तापूर्ण उत्पाद
इसके अलावा, जैविक खेती में गांव की सफलता और गाय के दूध से बने गुणवत्तायुक्त उत्पादों ने अन्य लोगों को भी इस पेशे को अपनाने के लिए प्रेरित किया है क्योंकि उनका एक लीटर दूध 120 रुपये में बिकता है, जबकि शुद्ध घी 4 हजार रुपये प्रति किलोग्राम मिलता है. कुमारीगुडेम की सफलता टिकाऊ कृषि पद्धतियों और ग्रामीण विकास का एक प्रेरक उदाहरण है.

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