रामनगर: साल 1999 में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच कारगिल युद्ध हुआ था. इस युद्ध में देश के कई जवानों ने अपनी शहादत दी थी. जिसमें उत्तराखंड के 75 जवानों ने भी अपनी शहादत दी थी. आज कारगिल विजय दिवस के मौके पर शहीदों को याद किया जा रहा है. साथ ही वीरांगनाओं को सम्मानित किया गया है.
कारगिल युद्ध में नैनीताल जिले के पांच वीर हुए थे शहीद: हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. यह दिन 'ऑपरेशन विजय' की शौर्य गाथा को बताता है. आज कारगिल दिवस के मौके पर देश के साथ ही प्रदेश भर में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी जा रही है. साथ ही शहीदों की वीरांगनाओं को सम्मानित किया जा रहा है. उत्तराखंड के 75 वीरों ने कारगिल युद्ध में शहादत दी थी. उत्तराखंड के नैनीताल जिले के पांच वीर कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे.
कारगिल में शहीद हुए थे मेजर राजेश अधिकारी: नैनीताल के मेजर राजेश अधिकारी कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. उनकी वीरांगना अब नैनीताल से दिल्ली शिफ्ट हो चुकी हैं. नैनीताल में उनकी भाभी और भैया निवास करते हैं. महावीर चक्र से सम्मानित 28 साल के मेजर राजेश सिंह अधिकारी की कहानी आज भी दिल को छू लेती है. उन्होंने अपने प्रेम से ज्यादा देशभक्ति को अहमियत दी. तोलोलिंग की चोटी जीतने के 13 दिन बाद भारतीय सेना ने उनका शव बरामद किया था.
लांस नायक राम प्रसाद ध्यानी ने भी दी शहादत: वहीं रामनगर के लांस नायक राम प्रसाद ध्यानी भी कारगिल युद्ध के शहीदों में शामिल हैं. रामनगर के पीरूमदारा निवासी लांस नायक राम प्रसाद ध्यानी ने कारगिल युद्ध में वीरता का प्रदर्शन किया था. उन्होंने युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दे दी लेकिन तिरंगे को झुकने नहीं दिया. आज उनके बेटे अजय ध्यानी भी पिता के नक्शे कदमों पर चलकर देश की सेवा कर रहे हैं. अजय के सेना में होने से उनका परिवार और क्षेत्र के लोग काफी गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं.
गढ़वाल राइफल में तैनात थे लांस नायक राम प्रसाद ध्यानी: 17 जुलाई 1971 को पौड़ी जिले के धूमाकोट तहसील के नैनीडांडा ब्लॉक के ग्राम डांडा तोली में जन्मे राम प्रसाद ध्यानी गढ़वाल राइफल में तैनात थे. वे 18 साल के थे, तभी उनका चयन आर्मी में हो गया. उनका विवाह जयंती देवी से हुआ. शहीद के परिवार के अनुसार, कारगिल युद्ध छिड़ते ही उनकी बटालियन ने उन्हें लद्दाख के द्रास बुला लिया. आदेश मिलते ही राम प्रसाद ध्यानी कारगिल युद्ध में चले गए. तब उनकी चार साल की बेटी ज्योति, दो साल का बेटा अंकित और छोटा बेटा अजय एक साल का ही हुआ था.
शहीद राम प्रसाद का बेटा भी हुआ फौज में भर्ती: युद्ध में कई फौजियों की रेडियो पर शहीद होने की खबरें आ रही थीं. जयंती देवी और उनका परिवार भी राम प्रसाद ध्यानी को याद करता था. वो अपने बच्चों को फौज के बारे में जानकारी देती थीं. परिवार के अधिकांश लोग रामनगर के हाथीगडर में रहते थे. पति की मौत की खबर जयंती देवी को मिलने पर वो पूरी तरह से टूट गईं. शहीद राम प्रसाद की पत्नी जयंती देवी ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान 26 जुलाई को लैंसडाउन के दो फौजियों ने घर आकर उन्हें राम प्रसाद ध्यानी के शहीद होने की जानकारी दी. जिसके एक हफ्ते बाद उनके पति का पार्थिव शरीर उनके घर लाया गया. उन्होंने बताया कि उस समय उनके तीनों बच्चे काफी छोटे थे. जिन्हें उन्होंने कड़े संघर्ष से बड़ा किया. बेटी का विवाह दिल्ली में किया. वहीं राम प्रसाद के बेटे भी आज आर्मी में शामिल होकर कारगिल में ही सेवाएं दे रहे हैं.
लांस नायक मोहन सिंह भी हैं कारगिल के वीर शहीद: वहीं तीसरे हल्द्धानी के रहने वाले मोहन सिंह भी कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे. हल्द्धानी के नवाबी रोड घर में उनकी 2 बेटियां हैं. उनकी वीरांगना उमा देवी हैं. लांस नायक मोहन सिंह को मरणोपरांत वीरता के लिए सेना पदक मिला. युद्ध से पहले मोहन सिंह छुट्टी आए थे. तभी कारगिल युद्ध शुरू हो गया. परिवार संग 20 दिन की छुट्टी मनाने के बाद 23 अप्रैल 1999 को नागा रेजीमेंट सेकेंड में लांस नायक मोहन सिंह ड्यूटी के लिए लौट गए थे. शहादत से 16 दिन पहले फोन पर बात होने पर बताया था कि टास्क मिलने के कारण फौज के संग जा रहा हूं. कुछ दिन फोन करना मुश्किल रहेगा. इसलिए चिट्ठी भेजूंगा. उनकी वीरांगना कहती हैं कि मुझे जरा भी अहसास नहीं था कि उनके और मेरे बीच यह आखिरी बातचीत होगी. कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए सात जुलाई की सुबह वह देश के लिए कुर्बान हो गए.
लांस नायक चंदन सिंह ने भी दी कारगिल में शहादत: वहीं चौथे वीर हल्द्वानी के छडेल के लांस नायक चंदन सिंह थे. उनकी वीरांगना अनिता देवी हैं. कारगिल युद्ध में वीरता के लिए इन्हें भी सेना पदक से नवाजा गया. आर्मी एयर डिफेंस में तैनात चंदन सिंह भंडारी को छुट्टी आये 10 दिन ही हुए थे कि सेना से बुलावा आ गया. इसके बाद चंदन सिंह भंडारी के परिवार को उनकी शहादत की ही खबर मिली. शहीद चंदन सिंह अपने पीछे अपने तीन छोटे बच्चे, माता-पिता और पत्नी को छोड़ गए. 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में वीरगति को प्राप्त हुए वीर चंदन सिंह भंडारी मूलरूप से बेतालघाट सिमलखा गांव के रहने वाले थे.
मोहन चंद्र जोशी का कारगिल विजय में योगदान: वहीं कारगिल विजय के पांचवें वीर कालाढूंगी के सिपाही मोहन चंद्र जोशी थे जो अविवाहित थे. वीर मोहन चंद्र जोशी 4 भाइयों में व तीन बहनों में सबसे बड़े थे. आज उनके परिवार में केवल एक भाई योगेश जोशी ही बचे हैं, बाकी की मौत हो चुकी है. मोहन चंद्र जोशी उत्तराखंड के नैनीताल जिले की कालाढूंगी तहसील के गुलजारपुर गांव के निवासी थे. वह भारतीय सेना की नागा रेजिमेंट की 1 बटालियन में सिपाही के पद पर सेवारत थे. कारगिल दिवस पर दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे.
ये भी पढ़ें: