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बिहार में 150 साल पुराने पेड़ का रहस्य जान हो जाएंगे हैरान, जंगल की तरह देता है दिखाई - 150 year old tree in Gopalganj

150 YEAR OLD TREE IN GOPALGANJ: गोपालगंज में एक वटवृक्ष का पेड़ लगभग 150 साल पुराना है और आज जंगल का रूप ले चुका है. इसकी 200 शाखाएं हैं. सबसे खास बात यह है कि इस वटवृक्ष के आस-पास का तापमान अन्य जगहों की तुलना में 5 से 6 डिग्री कम रहता है. पढ़ें पूरी खबर.

गोपालगंज में 150 साल पुराना पेड़
गोपालगंज में 150 साल पुराना पेड़ (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jun 10, 2024, 7:13 PM IST

150 साल पुराने पेड़ का रहस्य (ETV Bharat)

गोपालगंज: जिले के बैकुंठपुर प्रखंड के राजापट्टी स्थित सोनासती देवी मंदिर के पास एक विशाल वटवृक्ष कौतूहल का विषय बना हुआ है. क्योंकि इस अकेले एक पेड़ ने आज पूरे जंगल का रूप ले लिया है, जिसकी 2 सौ शाखाएं फैली हुई हैं. बताया जाता है कि कभी यहां अंग्रेज नील की खेती किया करते थे जिसके बाद उसने बरगद का पेड़ लगाया था जो आज एक जंगल का रूप ले लिया है.

गोपालगंज में 150 साल पुराना पेड़: दरअसल पूरा विश्व इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से परेशान हैं और लोग पेड़, पर्यावरण संरक्षण को लेकर विचार कर रहे हैं. वहीं जिले में एक ऐसा पेड़ है जिसकी 200 तना ने पूरे एरिया को एक जंगल के आकार दे दिया है. इतना ही नहीं इस पेड़ की एक अनोखी कहानी और खुबिया भी हैं. जो अपने आप में खास है.

कहां है विशाल वटवृक्ष: बता दें कि जिला मुख्यालय गोपालगंज से 60 किलोमीटर दूर स्थित सोनासती देवी मंदिर के पास मौजूद इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था, जो अब दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती. लेकिन यह विशाल वट वृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है.

गोपालगंज में 150 साल पुराना पेड़
गोपालगंज में 150 साल पुराना पेड़ (ETV Bharat)

तापमान 5 से 6 डिग्री कम: कोठी में नील हे साहब के साथ उनकी पत्नी हेलेन भी रहती थी. आसपास की महिलाएं यहां सोनासती मइया की पूजा करने आती थी. हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था, ताकि पूजा-पाठ हो और मजदूरों को छाया मिल सके. इस पेड़ की खासियत यह है कि इस पेड़ के बीच में और नीचे तापमान अन्य जगहों से 5 से 6 डिग्री कम रहता है.

जमीन में मोटी जड़ें: गर्मी के दिनों में चलने वाली लू और गर्म हवाएं भी इसकी छाया में पहुंच कर ठंडी हो जाती हैं. इस पेड़ की शाखाएं एक-दूसरे से गूंथकर जमीन में अपनी मोटी जड़ें जमा चुकी हैं. जड़ों के लिहाज से यहां सिर्फ एक पेड़ की वजह से जंगल जैसा नजारा दिखता है.

'सोखती है 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड': जानकारों के मानें तो इस वट वृक्ष की मोटी जड़ें 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड सोखती हैं. ये शाखाएं अपने आप में कार्बन सोखने के लिए फिल्टर का काम करती है. इस संदर्भ में पर्यावरणविद डॉ संजय पांडेय ने बताया कि इस पेड़ का साइंटिफिक कारण भी है. बरगद या पीपल के पेड़ सूर्य की किरणों से प्रकाश संस्लेशन की क्रिया कर कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन प्रदान करते हैं.

"वायुमंडल में कार्बन की अधिकता के कारण भी तापमान की फिलिंग्स ज्यादा होती है. बड़े पेड़ वायुमंडल से कार्बन को अवशोषित कर लेते हैं. जितनी विशालता इस पेड़ की है, यह एक साल में करीब 260 टन से ज्यादा कार्बन अवशोषित करने की क्षमता रखता है. कल करखाने के कारण यहा का एयर क्वालिटी इंडेक्स करीब 240 है. लेकिन इस विशाल वट वृक्ष के पास गूगल से एक्यूआई लेवल की माप लें तो काफी कम मिलेगा."-डॉ संजय पांडेय, पर्यावरणविद

सोखती है 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड
सोखती है 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड (ETV Bharat)

पर्यावरणविद की राय: बॉटनी के व्याख्याता और पर्यावरणविद मनोज कुमार सिंह ने बताया कि इसे अक्षय वट कहते हैं. इसका बॉटेनिकल नाम- फिक्स रीलिजोसा है. इसकी फेमली- मोरसिया है. इसकी शाखाएं 50 से 60 किलोग्राम कार्बन-डाईऑक्साइड सोखती हैं.

"अधिक मात्रा में कार्बन अवशोषित करने के चलते यह ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है. यही कारण है कि जब बाहर का तापमान 40 से 42 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो इसकी छाया में पारा 35 से 36 डिग्री रहता है."- मनोज कुमार सिंह,पर्यावरणविद

'अंग्रेजों के जमाने का पेड़': वहीं हमीदपुर गांव निवासी 70 वर्षीय विंदेश्वरी राय ने बताया कि हम लोगों के जन्म के पहले का यह पेड़ है. अंग्रेजों के जमाने में यह पेड़ लगाया गया था जो एक बीघा में था. धीरे धीरे यहां अतिक्रमण होता गया और इसका दायरा कम हो गया.

पूजा पाठ होता है. यहां काफी ठंढक महसूस होती है. एक पेड़ से सौ डेढ़ सौ पेड़ हो गया है. बरसात के मौसम में यहां घना जंगल हो जाता है. यहां से निकलने के लिए जगह नहीं मिल पाती है.- विंदेश्वरी राय, स्थानीय

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150 साल पुराने पेड़ का रहस्य (ETV Bharat)

गोपालगंज: जिले के बैकुंठपुर प्रखंड के राजापट्टी स्थित सोनासती देवी मंदिर के पास एक विशाल वटवृक्ष कौतूहल का विषय बना हुआ है. क्योंकि इस अकेले एक पेड़ ने आज पूरे जंगल का रूप ले लिया है, जिसकी 2 सौ शाखाएं फैली हुई हैं. बताया जाता है कि कभी यहां अंग्रेज नील की खेती किया करते थे जिसके बाद उसने बरगद का पेड़ लगाया था जो आज एक जंगल का रूप ले लिया है.

गोपालगंज में 150 साल पुराना पेड़: दरअसल पूरा विश्व इन दिनों ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से परेशान हैं और लोग पेड़, पर्यावरण संरक्षण को लेकर विचार कर रहे हैं. वहीं जिले में एक ऐसा पेड़ है जिसकी 200 तना ने पूरे एरिया को एक जंगल के आकार दे दिया है. इतना ही नहीं इस पेड़ की एक अनोखी कहानी और खुबिया भी हैं. जो अपने आप में खास है.

कहां है विशाल वटवृक्ष: बता दें कि जिला मुख्यालय गोपालगंज से 60 किलोमीटर दूर स्थित सोनासती देवी मंदिर के पास मौजूद इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था, जो अब दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती. लेकिन यह विशाल वट वृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है.

गोपालगंज में 150 साल पुराना पेड़
गोपालगंज में 150 साल पुराना पेड़ (ETV Bharat)

तापमान 5 से 6 डिग्री कम: कोठी में नील हे साहब के साथ उनकी पत्नी हेलेन भी रहती थी. आसपास की महिलाएं यहां सोनासती मइया की पूजा करने आती थी. हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था, ताकि पूजा-पाठ हो और मजदूरों को छाया मिल सके. इस पेड़ की खासियत यह है कि इस पेड़ के बीच में और नीचे तापमान अन्य जगहों से 5 से 6 डिग्री कम रहता है.

जमीन में मोटी जड़ें: गर्मी के दिनों में चलने वाली लू और गर्म हवाएं भी इसकी छाया में पहुंच कर ठंडी हो जाती हैं. इस पेड़ की शाखाएं एक-दूसरे से गूंथकर जमीन में अपनी मोटी जड़ें जमा चुकी हैं. जड़ों के लिहाज से यहां सिर्फ एक पेड़ की वजह से जंगल जैसा नजारा दिखता है.

'सोखती है 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड': जानकारों के मानें तो इस वट वृक्ष की मोटी जड़ें 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड सोखती हैं. ये शाखाएं अपने आप में कार्बन सोखने के लिए फिल्टर का काम करती है. इस संदर्भ में पर्यावरणविद डॉ संजय पांडेय ने बताया कि इस पेड़ का साइंटिफिक कारण भी है. बरगद या पीपल के पेड़ सूर्य की किरणों से प्रकाश संस्लेशन की क्रिया कर कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित कर ऑक्सीजन प्रदान करते हैं.

"वायुमंडल में कार्बन की अधिकता के कारण भी तापमान की फिलिंग्स ज्यादा होती है. बड़े पेड़ वायुमंडल से कार्बन को अवशोषित कर लेते हैं. जितनी विशालता इस पेड़ की है, यह एक साल में करीब 260 टन से ज्यादा कार्बन अवशोषित करने की क्षमता रखता है. कल करखाने के कारण यहा का एयर क्वालिटी इंडेक्स करीब 240 है. लेकिन इस विशाल वट वृक्ष के पास गूगल से एक्यूआई लेवल की माप लें तो काफी कम मिलेगा."-डॉ संजय पांडेय, पर्यावरणविद

सोखती है 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड
सोखती है 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड (ETV Bharat)

पर्यावरणविद की राय: बॉटनी के व्याख्याता और पर्यावरणविद मनोज कुमार सिंह ने बताया कि इसे अक्षय वट कहते हैं. इसका बॉटेनिकल नाम- फिक्स रीलिजोसा है. इसकी फेमली- मोरसिया है. इसकी शाखाएं 50 से 60 किलोग्राम कार्बन-डाईऑक्साइड सोखती हैं.

"अधिक मात्रा में कार्बन अवशोषित करने के चलते यह ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है. यही कारण है कि जब बाहर का तापमान 40 से 42 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो इसकी छाया में पारा 35 से 36 डिग्री रहता है."- मनोज कुमार सिंह,पर्यावरणविद

'अंग्रेजों के जमाने का पेड़': वहीं हमीदपुर गांव निवासी 70 वर्षीय विंदेश्वरी राय ने बताया कि हम लोगों के जन्म के पहले का यह पेड़ है. अंग्रेजों के जमाने में यह पेड़ लगाया गया था जो एक बीघा में था. धीरे धीरे यहां अतिक्रमण होता गया और इसका दायरा कम हो गया.

पूजा पाठ होता है. यहां काफी ठंढक महसूस होती है. एक पेड़ से सौ डेढ़ सौ पेड़ हो गया है. बरसात के मौसम में यहां घना जंगल हो जाता है. यहां से निकलने के लिए जगह नहीं मिल पाती है.- विंदेश्वरी राय, स्थानीय

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