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सीकर: 189 श्रमिकों को भेजा गांव, बच्चों को भी नहीं खिलाया खाना, मजदूर भी रहे भूखे - lockdown

देश में फैले कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन में कई मजदूर भूखे प्यासे ही अपने घरों की ओर निकल रहे हैं. जिसको देखते हुए सरकार ने भी आदेश दिया है कि मजदूरों को बसों या ट्रेन से उनके घर पहुंचाया जाए और उनके लिए खाने की उचित व्यवस्था भी की जाए. वहीं, सीकर के श्रीमाधोपुर में मजदूरों के लिए 10 बसें लगाई गई. जिसमें उनके खाने-पीने की भी व्यवस्था नहीं की गई.

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189 श्रमिकों को बिना खाना खिलाए ही किया रवाना

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Published : May 18, 2020, 12:07 AM IST

श्रीमाधोपुर (सीकर). जिले के श्रीमाधोपुर उपखण्ड से उत्तर प्रदेश के 189 प्रवासी श्रमिकों को रविवार को 6 बसों से उत्तर प्रदेश भेजा गया. उपखण्ड अधिकारी लक्ष्मीकांत गुप्ता ने बताया कि सरकार की ओर से प्रवासियों का अपने-अपने गांव भेजने के निर्देशों पर जिन श्रमिकों ने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करवाया था. उनके लिए 10 बसे लगाई गई थी.

श्रमिकों को बिना खान खिलाए ही किया बस से रवाना

बता दें कि सभी श्रमिकों को सुबह राउमावि में बुलाया गया था. यहां 176 श्रमिक श्रीमाधोपुर के और 13 पलसाना के कुल 22 बच्चों सहित 189 श्रमिकों की स्क्रीनिंग करने के बाद श्रीमाधोपुर आगार की 6 बसों ने उत्तर प्रदेश के लिए रवाना किया गया है. इस मौके पर तहसीलदार महिपाल सिंह राजावत, बीसीएमओ डॉक्टर जे.पी. सैनी, चिकित्सा टीम, नगर पालिका टीम उपस्थित थी. गावं जाने की आस में 20 किलोमिटर पैदल चले श्रमिक श्रमिकों को बसों से गांव भेजने की सूचना पर परसरामपुरा रींगस स्थित खटूश्यामजी औद्योगिक क्षैत्र के 20 श्रमिक बच्चों और सामन की गठरी लेकर पैदल ही श्रीमाधोपुर पहुंचे.

189 श्रमिकों को बिना खाना खिलाए ही किया रवाना

चाय पिलाकर ही कर दिया रवाना-

श्रमिकों को बसों से 11 बजे करीब चाय और बिस्किट खिलाकर बसों से रवाना किया गया. जबकि सरकार ने श्रमिकों को रवाना होने वाले स्थान से खाना खिलाकर रवाना करने के निर्देश थे. श्रमिकों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भूख से बिलबिलाते रहे पर किसी का दिल नहीं पसीजा. वहीं स्क्रीनिंग के नाम पर करीब दो घण्टे तक तपतपाती धूप में बैठाए रखा. वहां टेंट भी नहीं लगाया गया.

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श्रमिक हाथरस के सद्दाम ने कहा कि यहां सरकार की कोई व्यवस्था नहीं है. फिर भी मन में इतना संतोष है कि बस किसी तरह घर पहुंच जाए. फर्रूखाबाद जिले के सलीम ने कहा कि उनके साथ छोटे-छोटे बच्चे हैं. इनके लिए दूध की भी व्यवस्था नहीं है. बाहर भी दुकाने बंद हैं पर मन में संतोष है कि बस कैसे भी गांव पहुंच जाए. इसी आस को लेकर भूखे प्यासे भी चले जाए.

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