प्रतापगढ़.जिले के पीपलखूंट उपखंड क्षेत्र के घंटाली में दूर-दूर पर तक आदिवासियों की झोपड़ियां हैं. यहां के आदिवासी समाज का रहन-सहन और उनकी संस्कृति देखने पर पता चलता है कि यहां कई सालों पहले से ही सोशल डिस्टेंसिग समेत ऐसे कई नियमों का पालन हो रहा है, जो इन दिनों कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए जरूरी है.
आदिवासी अंचल प्रतापगढ़ में इनके गांवों में घर कहीं पर भी पास-पास नहीं होते. यहां लोग बरसों से छितराई बस्ती में रहना पसंद करते हैं. प्रतापगढ़ आदिवासी बहुल जिला है. यहां भी काफी क्षेत्रों में आदिवासी परिवार हैं, जो ऊंची टेकरियों पर छितराई बस्ती में रहते हैं.
आदिवासी समाज की संस्कृति में ही सोशल डिस्टेंसिंग रची-बसी है. चाहे एक परिवार में तीन भाई हो, लेकिन तीनों के घर अलग- अलग जगह पर एक-दूजे से पर्याप्त दूरी पर बने होते हैं. इसके पीछे सोच यह रहती है कि भाई हो या रिश्तेदार, दूरी से स्नेह और प्यार बढ़ता है.
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हाथ नहीं मिलाने की परंपरा
ये आदिवासी हाथ मिलाने की बजाय नमस्कार करना ज्यादा उचित समझते हैं. इसके अलावा जय जौहार, जय मालिक, जय गुरु बोलकर अभिवादन भी करते हैं. घर के बाहर चौकी या चबूतरे खास इसी कारण बनाए जाते हैं कि आने वाला मेहमान इन पर बैठे ना कि घर में.
दूर-दूर रहने से नहीं झेलना पड़ता विनाश
आदिवासी अंचल के लोगों की कई सालों से मान्यता है कि अगर घर अलग-अलग जगह और दूरी पर होगा, तो किसी भी बीमारी के संक्रमण से बचा जा सकता है. साथ ही बीमारी के संपर्क में आने के बाद होने वाली मौत को भी टाला जा सकता है.