कोटा में रिटायर इंजीनियर कर रहे हैं जैविक आम की खेती कोटा.जिले के कैथून के नजदीक मोतीपुरा गांव में थर्मल प्लांट के रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता ओपी शर्मा ने आम के बगीचा में जैविक खेती कर रहे हैं. इस बगीचे में उनकी अथक परिश्रम के बाद एक्सपोर्ट क्वालिटी के आम उगाए जा रहे हैं. यहां तक कि उनके पास अमेरिकन किस्म टॉमीएटकिंस भी है, जो कि शुगर फ्री आम है. ओपी शर्मा का कहना है कि उनके बगीचे के आम खाने वाले लोग वाह-वाह ही करते हैं और कहते हैं कि शानदार आम यहां पर उगाए गए हैं. इससे मुझे अपार खुशी मिलती है क्योंकि बाजार में मिल रहे रासायनिक खाद और पेस्टिसाइड वाले आम से उनके आम का स्वाद काफी अलग है.
अमेरिकन किस्म टॉमीएटकिंस शुगर फ्री आम है इंजीनियरिंग बैकग्राउंड से आने वाले शर्मा ने एग्रीकल्चर में भी तकनीक और सोशल मीडिया का उपयोग किया है. इस आम के तैयार बगीचे में 1000 पेड़ 10 बीघा एरिया में लगाए हैं. इसके लिए पौधे भी दूसरे राज्यों से हाई क्वालिटी की लेकर आए थे. इस बगीचे में वे अब तक लाखों रुपए लगा चुके हैं. शर्मा वर्तमान में 70 साल के हैं. उन्होंने 36 साल अपनी सेवा राजस्थान के थर्मल प्लांटों में दी है. वहां से वे 60 साल की उम्र में रिटायर हुए थे. जिसके बाद ही वे इस काम में जुट गए. ये सब कुछ वे अपने समय का सदुपयोग करने के लिए कर रहे हैं. शर्मा का कहना है कि जब वे नौकरी कर रहे थे. तब भी उनके पास खेत था, लेकिन तब समय नहीं था और खेत ज्यादातर खाली ही रहते थे या फिर किसी को लीज पर दे देते थे.
रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता ओपी शर्मा अपने बगीचे के आम के साथ यूपी और महाराष्ट्र से लाए थे पौधे :शर्मा का कहना है कि जब वे थर्मल के क्वार्टर में रहते थे. वहां भी उनके बगीचे में आम का पेड़ था. इसलिए आम उनके पसंदीदा शुरू से ही रहे हैं. इसी को देखते हुए उन्होंने अपने क्षेत्र में भी आम का बगीचा लगाने का फैसाल साल 2015 में लिया था. उसी क्रम में वे साल 2016 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के नजदीक स्थित मलिहाबाद गए थे. जहां पर पद्मश्री कलीमुल्लाह से मुलाकात की. जिन्होंने एक ही पेड़ पर ग्राफ्टिंग कर 350 वैरायटी के आम उगाए थे. शर्मा वहां से मल्लिका, लंगड़ा, दशहरी, चौसा और आम्रपाली प्रजाति के पौधे लाए. जिन्हें अपने 5 बीघा के खेत में लगा दिया. यह पौधे काफी अच्छे बढ़ने लगे, तब उन्होंने दूसरे खेत में भी आम लगाने की तैयारी शुरू कर दी.
रोटावेटर को चलाते हुए ओपी शर्मा गलती से आया था टॉमीएटकिंस, शुगर फ्री आम :पहले साल पौधों में अच्छी ग्रोथ होने लगी तब उनका मन खेत में ज्यादा लगने लगा. वह खेत पर ही घंटो बिताने लगे और मजदूरों के साथ खुद भी मेहनत करने लगे. साल 2017 में जैन इरिगेशन जलगांव महाराष्ट्र जाकर शेष वैरायटी के पौधे लेकर आए थे. इनमें केसर व स्वर्णरेखा शामिल है. जिनमें गलती से अमेरिकन वैरायटी टॉमीएटकिंस और तोतापुरी आम के पौधे भी आ गए थे. टॉमीएटकिंस का पता भी शर्मा को मैरून कलर के छिलके वाले आम आने पर लगा. शर्मा का कहना है कि इस प्रजाति के 5 पौधे आए थे, जिनमें से एक ही बचा है और यह शुगर फ्री आम है.
रिटायर्ड अधीक्षण अभियंता ओपी शर्मा का आम का बगीचा 4 साल तक नहीं लिया उत्पादन :शर्मा का कहना है कि उनके बगीचे में दूसरे साल ही पौधों पर फलों के लिए आने वाले फूल आ गए थे, लेकिन पौधों को अच्छा तैयार करने के लिए उन्होंने इन सभी फूलों को तोड़ दिया था. ऐसा क्रम लगातार 4 साल तक चलता रहा. पेड़ जब 5 साल का हो गया, तब उससे पहली बार फल लिए. ऐसे में एक बगीचे से तीसरी और दूसरे बगीचे से दूसरी बार फल लिए गए हैं. वर्तमान में यह पेड़ 4 से 5 फीट के हो गए हैं. यह आम के पेड़ करीब 20-25 फीट तक बढ़ेंगे. उसी के अनुसार ही इन्हें तैयार किया जा रहा है.
सामान्य किसानों से अपग्रेड तकनीक का उपयोग :पूरे खेत में उन्होंने ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाया हुआ है. इसके अलावा इन पौधों के लिए ही छोटा ट्रैक्टर, रोटावेटर और अन्य कई मशीनें भी उन्होंने खरीदी है. जैविक तरीके से तैयार किए गए कीटनाशक को भी वे ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के जरिए ही पौधों में डालते हैं. उनका खेती करने का तरीका सामान्य किसानों से अलग और थोड़ा हाईटेक है. शर्मा का कहना है कि पौधों को बच्चों की तरह पालना पड़ता है. एक एक पौधे की रोजाना मॉनिटरिंग करनी पड़ती है, तभी वे पनपते हैं. उन्होंने जैविक खेती के तरीके भी सोशल मीडिया के जरिए ही सीखे हैं.
किसान टीवी व सोशल मीडिया से सीखा :शर्मा का बगीचा पूरी तरह से ऑर्गेनिक है. उन्होंने पढ़ाई और नौकरी इंजीनियरिंग फील्ड में पूरी की है. वे साल 2013 में सूरतगढ़ थर्मल पावर प्लांट से अधीक्षण अभियंता के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. इसके बाद 3 साल उन्होंने नेत्र चिकित्सक बेटे डॉ. दीपक शर्मा के साथ उनके अस्पताल का ही मैनेजमेंट देखा. जहां उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था. इसलिए उन्होंने आम का बगीचा लगा लिया. इसके लिए वे ज्यादातर समय किसान टीवी या सोशल मीडिया ही चलाते हैं. कोई भी पौधे पर कमी नजर आने पर वे इंटरनेट के जरिए वेबसाइटों पर जाकर समाधान खोजते हैं.
300 क्विंटल तक हो रहा सालाना उत्पादन :शर्मा का कहना है कि वर्तमान में करीब एक पेड़ से लेकर 30 किलो तक आम पैदा हो रहे हैं. पहले साल में यह 20 किलो तक थे अब इनमें लगातार बढ़ोतरी हो रही है. साथ ही मल्लिका किस्म के एक आम का वजन 250 से 500 ग्राम के बीच है. इस किस्म के एक पेड़ पर करीब 50 किलो तक भी आम सालाना आ रहे हैं. केसर आम में यह 40 किलो तक प्रति पेड़ उत्पादन हो जाता है. इसके अनुसार करीब 100 क्विंटल उत्पादन पहले साल में हुआ था. वहीं यह तीसरे साल में बढ़कर अब 300 तक पहुंच गया है. हालांकि जैविक तरीके से उगाए गए आम को भी मंडी में सामान्य आम की तरह कीमत लगा रहे हैं. क्योंकि अभी इनको बेचने के लिए कोई प्लेटफार्म या मंडी उपलब्ध नहीं है.
शर्मा बोले 300 से 500 रुपए किलो हो दाम :शर्मा का कहना है कि इसमें वे लाखों रुपए इन्वेस्ट कर चुके हैं. उन्होंने तो लोगों को अच्छी क्वालिटी के आम जैविक तरीके से उगाकर खिलाने के लिए ही तैयार किए हैं. साथ ही यह मानकर उन्होंने ये शुरुआत की थी कि आम का उत्पादन हो या न हो, लेकिन पर्यावरण जरूर शुद्ध हो जाएगा. उनके खेत के आसपास के तापमान कमी आएगी. वहीं बाजार में भी इन आम के 20 से 30 रुपए प्रति किलो ही मिल रहे हैं, क्योंकि लोग अभी इन आम के फायदों से अनभिज्ञ हैं. सामान्य आम की तरह ही इन्हें मानते हैं, जबकि यह उच्च गुणवत्ता युक्त स्वादिष्ट आम है. उनका कहना है कि अलग किस्म के भी आम हैं. ऐसे में इनका मूल्य 300 से 500 रुपए प्रति किलो अलग-अलग किस्म के अनुसार होना चाहिए.
10 से 12 घंटे रोज करते हैं खेत में मेहनत :शर्मा जवाहर नगर कोटा में रहते हैं, लेकिन उनका खेत कोटा से 15 किलोमीटर दूर कैथून के नजदीक मोतीपुरा गांव में है. उनका रूटीन इस तरह से है कि वह सुबह करीब 8:00 बजे घर से टिफिन लेकर निकल जाते हैं. साथ ही शाम को 7:00 से 8:00 बजे ही वापस लौटते हैं. निराई गुड़ाई से लेकर सभी काम अपनी देखरेख में ही करवाते हैं. यहां तक कि खुद भी वे रोटावेटर को चलाते हैं. हर एक चीज की निगरानी खुद रखते हैं, तब जाकर ही यह बगीचा तैयार हुआ है. उनका कहना है कि कई बार सुरक्षाकर्मी या लेबर नहीं होने पर खेत पर ही उन्हें रुकना पड़ता है. ऐसे में एक 1 महीने तक भी वे खेत पर ही रहे हैं.
केंचुआ खाद से लेकर पौध खुद करते हैं तैयार :शर्मा पहले अपने खेत के लिए जैविक खाद एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी से खरीदते थे. इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी से केंचुए ही खरीद लिए और ग्रीन हाउस बनाकर खाद का निर्माण भी स्वयं ही शुरू कर दिया. जिनमें हजारों किलो खाद वे तैयार कर रहे हैं. इसके अलावा लिक्विड खाद का भी निर्माण वे केंचुए और गोबर के जरिए कर रहे हैं. साथ ही उन्होंने अपने खेत के पौधों के जरिए ही ग्राफ्टिंग करके 800 पौध भी तैयार कर दी है. खेत में लगाए गए कुछ पौधे मर भी गए थे, ऐसे में इन्हीं पौधों से 200 पौधे उन्होंने अपने खेत में भी उगा लिए हैं.