कपिल जैन ने क्या कहा, सुनिए... कोटा.जिले के बनियानी गांव निवासी पदम कुमार जैन पैतृक भूमि पर खेती करते थे, जिसमें वे परंपरागत फसलों के जरिए ही खेती कर रहे थे. लेकिन उनके बेटे कपिल जैन ने एमबीए के बाद लाखों के पैकेज को छोड़ अब प्रोग्रेसिव फार्मिंग के जरिए गुलाब और स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की है. जिससे लाखों की आमदनी भी हो रही है. महज 10 बीघा खेती में ही सालाना करीब 12 से 15 लाख रुपये की आमदनी हो रही है. कपिल ने खेती भी अपने ही प्लांट को मदद करने के लिए शुरू की थी, जिसमें शुरुआत महज 3 बीघा से की थी. यह बढ़कर धीरे-धीरे अब 10 बीघा पर हो गई है.
कपिल ने अपने प्लांट और खेती के लिए करीब 20 लाख का इन्वेस्टमेंट भी अब तक कर दिया. कपिल ने यह भी दावा किया है कि उन्होंने पूरा पैसा इसी से मुनाफा कमा कर निकाल लिया. आदि कैपिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और ऐसैट्स भी उनके तैयार हो गई है. कपिल का खुद का कहना है कि उनका लक्ष्य नौकरी छोड़कर खेती करना नहीं था. उनका लक्ष्य स्टार्टअप को खड़ा करना था, लेकिन उसके लिए खेती करना जरूरी हो गया. ऐसे में उन्होंने खेती भी शुरू की और एमबीए ग्रैजुएट होने के बावजूद उन्होंने खेती के गुण पढ़कर ही सीखे हैं. आज वे एक प्रगतिशील किसान भी बन गए हैं.
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गांव से स्कूलिंग, पुणे से एमबीए फिर मुंबई में जॉब और वापस आकर कोटा में खेती : कपिल जैन का कहना है कि उन्होंने प्रारंभिक से दसवीं तक शिक्षा गांव बनियानी के स्कूल में ही ली. इसके बाद वे परिवार के साथ कोटा शिफ्ट हो गए. यहां पर वह महावीर नगर प्रथम में रहते हैं. उन्होंने जयपुर के कॉमर्स कॉलेज से उन्होंने ग्रेजुएशन की. साल 2008 में एमबीए महाराष्ट्र के पुणे से पूरा किया और उसके बाद मुंबई की एक कंपनी के साथ जुड़कर काम करने लगे. जब साल 2018 में उन्होंने नौकरी छोड़ी तब एक बड़ी पेंट कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर के अच्छे पद थे और उनका सालाना पैकेज भी करीब 17 लाख रुपये से ज्यादा का हो गया था. हालांकि, कुछ अपना अलग करने की जिद उनके मन में थी. इसीलिए वे लगातार प्रयासरत थे.
साइंटिस्ट चाचा से मिली सलाह, फिर शुरू किया ट्रायल : कपिल के चाचा डॉ. डीसी जैन काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) के लखनऊ स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड ऑटोमिक प्लांट (सीमैप) में कार्यरत थे. कपिल ने चाचा से कई बार अपनी कुछ अलग करने की इच्छा जाहिर की थी. इसीलिए उन्होंने गुलाब जल और ऑयल के प्लांट के बारे में कपिल को सलाह दी. कपिल ने साल 2018 में अपनी जॉब छोड़कर कोटा पहुंचे और बूंदी जिले के तालेड़ा इलाके के गुलाब उत्पादन कर रहे किसानों को साथ लेकर ट्रायल शुरू किया, जिसकी टेस्टिंग भी सीमैप लखनऊ में करवाई गई. गवर्नमेंट फंडिंग के जरिए उन्होंने मशीन डालने के लिए भी प्लान बनाया, लेकिन 1 साल तक भी स्वीकृति नहीं मिली.
पहले फैक्ट्री किराए पर लेकर शुरू किया, लेकिन नुकसान हुआ : कपिल का कहना है कि इस ट्रायल में सफलता और अच्छे रिजल्ट के बाद कोटा में फैक्ट्री किराए पर लेकर करीब 6 लाख का इन्वेस्टमेंट कर प्लांट डाला. इसमें अच्छा माल प्रोडक्शन होने लगा, लेकिन बाद में किसानों ने कच्चा माल देने से इनकार कर दिया. ज्यादातर किसान मंडी में ही माल बेचना उचित समझ रहे थे, क्योंकि वहां पर व्यापारी से उधारी मिलना व भाव कम ज्यादा होने पर फायदा मिलना कारण था. कई किसानों से सीधा माल खरीदने के बावजूद भी वह देने को तैयार नहीं थे. त्योहारों या फिर सीजन के समय गुलाब की कीमत 10 से 20 गुना बढ़ जाती है. ऐसे में किसान मंडी में व्यापारी से भी संबंध खराब नहीं करना चाह रहे थे. ऐसे में क्वालिटी का माल भी नहीं मिल पा रहा था और अच्छा प्रोडक्ट तैयार नहीं होने से नुकसान होने लगा. किसानों के माल नहीं देने के चलते कपिल ने अपने ही कैथून के बनियानी स्थित खेत पर ड्रिप और अन्य खर्चे कर करीब 3 बीघा में साल 2019 में फसल शुरू की. प्लांट को खेत पर शिफ्ट कर दिया, इससे अच्छी क्वालिटी का गुलाब होने के चलते प्रोडक्ट में भी कोई दिक्कत नहीं आई.
कोविड-19 लॉकडाउन से बंद हो गया सिस्टम, फिर बदला पैटर्न : कपिल का कहना है कि उनके इस स्टार्टअप ने 4 साल में ही कई उतार-चढ़ाव देखे हैं. साल 2020 मार्च में कोविड-19 के पहले लॉकडाउन में सप्लाई पूरी तरह से बंद हो गई. रोज वाटर और ऑयल का उत्पादन व कर रहे थे, लेकिन कोई खरीदने को तैयार नहीं था. गुलाब की फसल भी हो रही थी, लेकिन वह सूखकर खराब होने लगा. इसी के चलते उन्होंने फिर अपना सिस्टम बदला और गुलाब की पत्तियों को सुखाने के बाद बेचने का काम शुरू किया. ट्रायल के लिए पहले छोटा ड्रायर खरीदा और उससे सफलता मिलने पर बड़े चार ड्रायर मंगवाए गए, जिनका 6 लाख का खर्च हुआ. कपिल का कहना है कि सर्दी और बारिश के दिनों में गुलाब की पत्तियों को सुखाने की भी समस्या का निजात हो गया है, क्योंकि यह ड्रायर पोली शीट के अंदर लगे है. गुलाब की पत्तियों को सुखाकर वह प्रोसेसिंग कर रहे हैं. उसमें खुशबू और महक भी अच्छी रहती है, उसका कलर भी नहीं जाता. क्योंकि ड्रायर के लिए उन्होंने पोली शीट लगाई हुई है. यह यूवी प्रोटेक्ट शीट होने से धूप में सुखाने से होने वाले कलर फैट और धूल मिट्टी का खतरा रहता है. ऐसे में इसका फूड ग्रेड की सामग्री होने से काफी उपयोग हो रहा है.
सबसे ज्यादा डिमांड महाराष्ट्र और साउथ से : गुलाब की पत्तियों की ज्यादातर खपत मिठाई और चाय के लिए साउथ में हो रही है. कपिल का कहना है कि रोज वाटर और आयल का उपयोग इत्र, परफ्यूम, स्प्रे, डिओडरेंट, पावडर, कॉस्मेटिक, पर्सनल केयर, कार परफ्यूम, रूम फ्रेशनर सहित कई जगह पर होता है. सूखी पत्तियों का उपयोग चाय और स्वीट्स में होता है. रोज टी की काफी डिमांड है, जिसकी सर्वाधिक खपत महाराष्ट्र और कर्नाटक में हो रही है. उनका कहना है कि उनका ज्यादातर माल हैदराबाद, बेंगलुरु, मुंबई, भिवंडी, इंदौर, जयपुर, नोएडा, गुड़गांव, चंडीगढ़, हरिद्वार, अमृतसर व लुधियाना जा रहा है.
स्ट्रॉबेरी में भी किया स्ट्रगल, पहले साल में आधी फसल हो गई खराब : कपिल जैन में स्ट्रॉबेरी की फसल उगाने में भी काफी स्ट्रगल किया है. उन्होंने स्ट्रॉबेरी की फसल इसलिए उगाई, क्योंकि कई दिनों गुलाब की फसल में उत्पादन नहीं होता है, तब लेबर फ्री बैठी रहती है. इसी लिए कैश क्रॉप्स स्ट्रॉबेरी को अक्टूबर 2021 में करीब एक लाख रुपए की लागत से 12 हजार पौधे मंगा कर शुरू किया, जिन्हें एक बीघा में उगाया गया। इसमें से आधे पौधे खराब हो गए थे. इसके बाद भी उन्होंने मेहनत जारी रखी, लेकिन जब स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करीब 2800 किलो हुआ, जिसका बाजार में मूल्य उन्हें 2.8 लाख रुपये मिला. जबकि इस पर खर्चा उनका करीब पैकेजिंग के 1 लाख और 60 हजार की लेबर मिलाकर करीब डेढ़ लाख रुपये के आसपास हुआ था. ऐसे में उन्हें महज 30 हजार का ही फायदा हुआ. कपिल का कहना है कि आधे पौधे मर जाने पर भी नुकसान नहीं हुआ. ऐसे में उन्होंने अगले साल फिर इसका उत्पादन किया.
स्ट्रॉबेरी से एक बीघा में ढाई लाख की इनकम : कपिल ने दावा किया है कि वह कोटा जिले के पहले किसान है जो कि स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. उनका कहना है कि कॉस्ट निकालने के लिए ही स्टोबेरी की खेती उन्होंने शुरू की थी. साल 2022 में उन्होंने 12 हजार पौधे ही लगाए और जिनसे 4600 किलो स्ट्रॉबेरी का उत्पादन किया गया है, जिसका बाजार में उन्होंने करीब साढ़े 4 लाख रुपये मिला. इसके बाद बचे हुए छोटे और वेस्टेज स्ट्रॉबेरी को उन्होंने ड्रायर के जरिए सुखाकर बेच दिया. यह फ्लेवर आइसक्रीम, ब्रेड रोल, जैम और फूड ग्रेड में उपयोग आएगी. इससे भी उन्हें करीब 50 हजार रुपए का फायदा हुआ है. ऐसे में कुल मिलाकर इस बार उनका खर्चा ढाई लाख और मुनाफा भी इतना ही बैठा. स्ट्रॉबेरी की खेती अक्टूबर में शुरू होकर मार्च में खत्म हो जाती है. ऐसे में अब उन्होंने स्ट्रॉबेरी की जगह हाइब्रिड टमाटर लगा दिए हैं, जिनसे भी लेबर का खर्चा निकल जाएगा.
इन्वेस्टमेंट का पूरा पैसा निकला, लगातार हो रहा फायदा : हर महीने करीब 300 किलो गुलाबजल और करीब 300 किलो के आसपास ही सूखी पत्तियां गुलाब की एकत्रित हो जाती हैं, जिनसे सबकुछ का खर्चा निकालने के बाद करीब एक लाख के आसपास की आय हो रही है. हालांकि, उन्होंने कहा कि अभी गुलाब ऑयल से उन्हें मुनाफा कम हो रहा है, क्योंकि उसकी क्वांटिटी काफी कम है. उसके लिए भी वे लगातार प्रयासरत हैं. दूसरी तरफ स्ट्रॉबेरी से उन्हें करीब ढाई लाख रुपये सालाना की आमदनी हो रही है. कपिल का खुद का मानना है कि नौकरी के पैकेज के मुकाबले नहीं पहुंच पाए हैं, लेकिन उन्होंने जो इन्वेस्टमेंट किया था, वह पूरा निकल गया है. उनका कैपिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार हो गया है, जिससे कि आगे ज्यादा आमदनी की उम्मीद है. हालांकि, उन्होंने करीब एक दर्जन लोगों को रोजगार इसके चलते दिया है. सभी उनके गांव के आसपास के निवासी हैं.