जोधपुर का मेहरानगढ़ किला जियोलॉजिकल साइट जोधपुर.कई साल पुराने जोधपुर शहर की पहचान मेहरानगढ़ किले से होती है. यह किला जिस पहाड़ी पर बना है, उसकी चट्टानें 75 करोड़ साल पुरानी हैं. अब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) इनका संरक्षण करेगा. जीएसआई के मुताबिक राजस्थान में 13 ऐसे जियोलॉजिकल साइट्स हैं, इनमें दो जोधपुर में हैं. इनमें से एक मेहरानगढ़ का किला है. माना जाता है कि यहां मालानी आग्नेय सुइट, भारतीय उपमहाद्वीप के प्रीकैम्ब्रियन युग की अंतिम अम्लीय ज्वालामुखीय घटना का प्रमाण है.
जीएसआई जयपुर के निदेशक राजीव राही बताते हैं कि आमजन को यह पता चलना जरूरी है कि उनके आस पास जो जियोलॉजिकल साइट्स हैं, वह सरंचना अतुलनीय है. लोग इसके बारे में जानें और उनका संरक्षण करें. 55 करोड़ साल पहले ज्वालामुखी विस्फोट से आग्नेय चट्टाने बनीं थी. 20 करोड़ साल तक इस पर कोई डिपोजिशन नहीं हुआ, लेकिन इसके बाद मारवाड़ सैंड स्टोन का डिपोजिशन हुआ है. आग्येनय चट्टान पर तलछटी चट्टानें जम गई. यह बहुत अद्भूत भूगर्भीय प्रक्रिया होती है. दुनिया में ऐसे साइट्स बहुत कम हैं.
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20 करोड़ साल विषम विन्यास :उन्होंने दावा किया कि मालानी आग्नेय चट्टानों का निर्माण आज से 75 करोड़ वर्ष पहले हुआ था, जबकि मारवाड़ समूह की चट्टानों का निर्माण 55 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था. बीच का यह 20 करोड़ साल, भूविज्ञान की भाषा में विषम विन्यास कहलाता है. सरल शब्दों में कहें तो 20 करोड़ साल के इस समय में जोधपुर क्षेत्र में किसी भी प्रकार की चट्टानों का निर्माण नहीं हुआ था. मालानी आग्नेय चट्टानों और मारवाड़ समूह की चट्टानों का संपर्क इसलिए भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि राजस्थान में मारवाड़ समूह की चट्टानों में सर्वप्रथम प्रारंभीक जीवन की उत्पत्ति के प्रणाम मिलते हैं.
मेहरानगढ़ किला, जिस पहाड़ी पर स्थित हो वो 75 करोड़ साल पुराना है वेल्डेड टफ से स्तंभाकार संरचनाओं का निर्माण :राजीव राही का कहना है कि वेल्डेड टफ आग्नेय चट्टान का एक रूप है. ये शहर से आगे बढ़ते समय मेहरानगढ़ किले से पहले सड़क के दाईं ओर लगभग 100 मीटर की दूरी पर है. वेल्डेड टफ ज्वालामुखीय राख से बनते हैं. टफ मुख्यतः ग्लासी, क्वार्ट्ज और फेल्डस्पार से बने होते हैं. ठंडा होने पर उनमें एक जोड़ विकसित हो जाता है, जिससे स्तंभाकार संरचनाओं का निर्माण होता है. डॉ. शिव सिंह राठौड़ का कहना है कि जोधपुर में बिना जानकारी लोग इनको तोड़कर निर्माण के उपयोग ले लेते हैं, जबकि यह पृथ्वी की उत्पति से जुड़ी गहन जानकारी देती है.
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साइंटिफिकल टूरिज्म प्रमोट होगा :आरपीएससी के पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष और जियो टूरिज्म के जानकर डॉ. शिवसिंह राठौड़ ने बताया कि जोधपुर में अभी विरासत स्थल, संस्कृति से जुड़ा पर्यटन है. जबकि जियोलॉजिकल साइट्स भी टूरिज्म की बड़ी जगह हो सकती है. देश भर में 90 साइट्स मौजूद हैं, उन पर साइंटिफिक और एजुकेशन टूरिज्म को प्रमोट किया जा सकता है. इसका प्रयास किया जा रहा है. जोधपुर में मेहरानगढ़ और उमेद सागर के आस पास ऐसी सरंचनाएं हैं. इनका संरक्षण और प्रचार-प्रसार होगा तो लोग इनसे जुड़ेंगे.
दुनिया में 195 जियोपार्क, भारत में शून्य :दुनिया भर में जियोलोजिल संरचनाओं का संरक्षण किया जाता है. भूगर्भीय घटनाओं से उत्पन्न चट्टानों की जानकारी देने के लिए विश्व के 48 देशों में 195 जियोपार्क बन चुके हैं, जहां साइंटिफिकल और एजूकेशनल टूरिज्म चल रहा है. फिलहाल भारत में एक भी जियोपार्क नहीं बना है. केंद्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन हाल ही में जारी कर देश की 90 साइट्स को संरक्षित करने का काम जीएसआई को दिया है, जो भविष्य में जियो पार्क की कवायद की शुरुआत है.
शुरू हुआ सरंक्षण का काम :आजादी के अमृत महोत्सव के तहत जीएसआई ने सोमवार को मेहरानगढ़ के आसपास मौजूद इन चट्टानों की जानकारी प्रदर्शित करते हुए सूचना पट्ट लगाए और लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम भी आयोजित किए हैं. जीएसआई के उपमहानिदेशक ने बताया कि स्कूली बच्चों को इस महत्वपूर्ण जगहों की जानकारी दी गई, जिससे उनकी रूचि बढ़े. इस मौके पर तिरंगा रैली भी आयोजित की गई.