जोधपुर.अलवर की बहरोड़ जेल के बाद फलोदी जेल ब्रेक कांड खासा चर्चा में हैं. प्रदेश की कानून व्यवस्था की आंखों में मिर्ची झोंक एक साथ फरार हुए 16 कैदियों की वारदात से लगता है कि खाकी का इकबाल खत्म हो गया है.
फलोदी में 5 अप्रैल को उप कारागृह से 16 कैदी तैनात प्रहरियों के आंखों में मिर्ची और सब्जी डालकर फरार हो गए थे. जिस तरीके से ये सजायाफ्ता कैदी जेल से फरार हुए उससे लगता है कि उन्हें कानून और पकड़ने जाने का डर नहीं है. वहीं कोई अचानक से घटने वाली घटना नहीं थी पूरी तरीके से सुनयोजित साजिश थी क्योंकि बंदियों के भागने के बाद जेल के बाहर पहले से एक स्कॉर्पियो खड़ी थी, जिसमें बैठकर सभी एक साथ फरार हो गए. ऐसे में क्यों इन कैदियों में कानून का डर खत्म हो रहा है? क्या कानून उतने सख्त नहीं हैं जिससे अपराधियों का मनोबल बढ़ रहा है, इसपर ईटीवी भारत से जोधपुर केंद्रीय कारागृह के डीआईजी सुरेंद्र सिंह शेखावत ने बातचीत की. जिसमें उन्होंने सभी सवालों पर विस्तार से बातचीत की.
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कम अवधि की सजा बढ़ाती है अपराधियों का मनोबल
डीआईजी सुरेंद्र सिंह शेखावत कहते हैं कि ज्यादातार जेल तोड़ने कर फरार भागने वाले अपराधी गंभीर अपराध के तहत विचाराधीन या सजायाफ्ता होते हैं क्योंकि उन्हें यह पता होता है कि जिन अपराधों के लिए वह अभी अंडर ट्रायल है या सजा प्राप्त कर चुके हैं, उसकी सजा काफी लंबी होती है. यानी कि उम्र कैद या 10 साल. ऐसी स्थिति में इन अपराधियों को यह लगता है कि अगर हम जेल तोड़कर भागकर वापस अपराध में सक्रिय हो गए तो वापस पकड़े जाने तक तो कुछ दिन तो आराम से निकलेंगे. वापस पकड़े भी गए तो उनकी पुराने अपराधों की सजा के साथ सिर्फ 2 साल की ही सजा बढ़ेगी जो उनके लिए बहुत ज्यादा नहीं होती है.