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कृषि गाइडेंस: कोरोना गाइड लाइन का पालन के साथ कृषि कार्य करते हुए देश की उन्नति में मददगार बनें कृषक

कोरोना संक्रमण के बीच किसानों से कोरोना गाइड लाइन की पालना करते हुए कृषि कार्य करते हुए देश की उन्नति में सहयोग करने की अपील की गई है. इसके लिए कृषि विभाग ने एग्रो-एडवाईजरी जारी की है.

खेती के लिए एग्रो-एडवाईजरी जारी

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Published : May 18, 2021, 10:58 PM IST

झुंझुनू.वर्तमान समय में पूरे देश के साथ-साथ राजस्थान भी कोविड- 19 की दूसरी लहर से बुरी तरह से प्रभावित है. कोविड-19 की प्रथम लहर की बात करें तो कृषि ही एक ऐसा सेक्टर था जो सबसे कम प्रभावित हुआ था. इसमेें कृषकों की अथक मेहनत, वैज्ञानिकों की ओर से कोविड-19 के बावजूद विभिन्न माध्यमों से कृषकों तक जानकारी उपलब्ध कराना, समय पर कृषि सलाह पहुंचाना, ऑनलाइन माध्यम से कृषकों से लगातार संपर्क में रह कर उन्नत एवं वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध कराना आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहा. इस महामारी के कारण देश की अर्थव्यवस्था पर भी काफी प्रभाव पड़ा है, जिसके चलते आवश्यक है कि कृषक कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए किसान स्वयं महामारी से बचें एवं वैज्ञानिकों की ओर से समय-समय पर जारी की जाने वाली कृषि सलाह जानकारी के माध्यम से महामारी के दौरान भी कृषि गतिविधियां सुचारू रूप से जारी रखें.

कृषि विभाग की माने ये एग्रो-एडवाईजरी

वर्तमान में रबी फसलों की कटाई, थ्रेसिंग का काम लगभग खत्म हो चुका है, इसलिए आवश्यक है कि कृषक वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार कार्य करके वर्तमान महामारी के दौर में भी कृषि गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित रख कर अपनी आय में वृद्वि के साथ साथ देश की उन्नति में मददगार साबित हो सकेते हैं. इसके लिए कृषि विभाग ने विभिन्न प्रकार से एग्रो-एडवाईजरी जारी की है.

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मृदा जांच रिपोर्ट

वर्तमान में रबी फसलों की कटाई के बाद खेत लगभग खाली है. अत: आवश्यकता है कि मृदा नमूने एकत्र कर प्रयोगशाला में उनका विश्लेषण करवाया जाए. जिससे आगामी फसलों की बुवाई में मृदा जांच रिपोर्ट की सिफारिश के अनुसार पोषक तत्वों का प्रयोग किया जाये. इससे पोषक तत्व उप्रयोग दक्षता में वृद्धि होने के साथ साथ मृदा को स्वस्थ भी रखा जा सकेगा व संस्तुत मात्रा में उर्वरक प्रयोग करके अधिक उत्पादन व अधिक लाभ प्राप्त किया जा सके.

जिप्सम का प्रयोग व ग्रीष्मकालीन जुताई

मृदा जांच रिपोर्ट के आधार पर खेतों में जिप्सम का प्रयोग करें जिससे मृदा का पीएच सही स्तर पर रहेगा. मृदा में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढे़गी व जिप्सम के प्रयोग से मृदा में कैल्शियम व गंधक पौषक तत्वों की उपलब्धता बढे़गी. इससे आगामी मौसम में बोई जानी वाली सभी फसलों विशेष तौर से तिलहन व दलहन की पैदावार में बढ़ोतरी होगी व उत्पाद की गुणवता में सुधार होगा. खेतों में जिप्सम डालने के बाद गहरी जुताई करें जिससे भूमि की पलटाई होगी, फसल अवशेष मृदा मे मिल जाएंगे. खेतों में उगे खरपतवार व अवांछित पौधे नष्ट किये जा सकेंगे. राजस्थान प्रदेश में दिन में तापमान अधिक होने और राते ठंडी होने से मृदा मेें लाभदायक भौतिक, रासायनिक एंव जैविक परिवर्तन होंगे, जिससे मृदा अधिक उर्वर व उत्पादक होगी. इस ग्रीष्मकालीन जुताई से भूमि में उपलब्ध नुकसानदायक कीट उनके अण्डे, लार्वा, प्यूपा व रोगाणु भी नष्ट हो सकेेगे व मृदा स्वस्थ होगी.

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हरी खाद ढेंचा की बुवाई

ढेंचा की हरी खाद की ओर से भूमि को कम लागत और कम समय में उपजाऊ बनाया जा सकता है. विभिन्न जिवांश खादों की सीमित उपलब्धता के कारण कृषक रसायन उर्वरकों का प्रयोग दिन प्रतिदिन अधिक करते जा रहे हैं. इस कारण मृदा में विभिन्न प्रकार के विकार उत्पन्न हो रहे हैं, एन-पी-के पौषक तत्वों का संतुलन गडबडा रहा है जिससे मृदा की उर्वरा शक्ति में भी गिरावट आ रही है. इस परिस्थितियों में ढेंचे की हरी खाद सबसे उपयुक्त विकल्प है. इसलिए पानी की व्यवस्था वाले क्षेत्रों में अप्रैल-मई माह में तथा वर्षा आने पर ढेंचे की बुवाई करें व उपयुक्त नमी स्तर पर फूल आने से पूर्व अवस्था पर मिट्टी में रोटावेटर की ओर से मिला देवे. इसके लिए कृषकों को 60 किलो बीज प्रति हेक्टर की दर से काम मे लेना चाहिए.

गुणवता युक्त बीज की उपलब्धता

फसल उत्पादन में बीज सबसे महत्वपूर्ण आदान है, इसलिए आवश्यकता है कि कृषकों को उच्च गुणवता का संकर/उन्नत किस्म का प्रमाणित बीज स्थानीय स्तर पर व सही दर पर उपलब्ध हो. इसके लिए कृषक अपने नजदीक के कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि अनुसंधान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय, विभिन्न कृषि अनुसंधान संस्थानों या सहकारि समितियों से संपर्क कर समय पर उच्च गुणवता का बीज प्राप्त करें. कई बार देखने में आया है कि वर्षा होने पर कृषक एक साथ बीज के लिए प्रस्थान करते हैं जिससे वह उपलब्ध भी नहीं हो पाता है. इसलिए पूर्व में ही उपरोक्त संस्थाओं से गुणवत्ता युक्त बीज प्राप्त कर आश्वस्त रहें. बीज अगर उपचारित है तो ठीक है अन्यथा कृषक बुवाई से पूर्व बीज को कृषि वैज्ञानिकों की सलाह अनुसार फफुदनाशी, कीटनाशी व कल्चर से इसी क्रम में संस्तुत मात्रा से उपचारित करके ही बीज की बुवाई करें.

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