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झुंझुनूः जंजीरों से बांधकर रखना पड़ रहा है मासूम बेटे को, माता पिता की आंखों में मदद के आंसू

झुंझुनू के सिंघाना में 17 साल के किशोर की मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से माता पिता को उसे जंजीरों से बांध कर रखना पड़ता है. पिता का कहना है कि न तो सरकार ही कोई मदद कर रही है ना हीं कोई जनप्रतिनिधि बेटे के इलाज के लिए मदद कर रहा है.

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Published : Feb 11, 2021, 7:57 PM IST

मानसिक रुप से बीमार युवक , Mentally ill youth
जंजीरों से बांधकर रखना पड़ रहा है 17 साल के बेटे को

सिंघाना (झुंझुनू). सिंघाना पंचायत समिति के चितौसा गांव में मानवीय संवेदनाओं की हत्या हो रही है. सरकार गरीबों और असहाय लोगों की सहायता के लिए बड़े बड़े दावे किए जा रहे हैं, लेकिन चित्तौसा गांव के बाबूलाल यादव के लिए तो राम और राज दोनों ही रूठ गए हैं.

जंजीरों से बांधकर रखना पड़ रहा है 17 साल के बेटे को

माता पिता को ऐसी स्थिति से गुजरना पड़ रहा है कि अपने 17 साल के जिगर के टुकड़े बेटे अमित को जंजीरों से पेड़ से बांधकर रखना पड़ रहा है. अमित को करीब 8 साल से बाहर पशुओं के साथ पेड़ के साथ बांध कर रखना पड़ता है. वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है. जब अमित को बेड़ियों से खोलते तो घर में तोड़फोड़ और बाहर गांव में जाकर लोगों के साथ मारपीट शुरू कर देता है. जिससे मजबूरन पिता बाबूलाल और मां राजेश देवी को अपने बेटे को बांधकर ही रखना पड़ रहा हैं.

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पेड़ से बंधे बंधे ही उसको खाना देते हैं. नित्य कर्म भी अपने बेटे का हाथों से ही करवाते हैं. वह कोई भी कार्य अपने हाथों से नहीं कर पा रहा है. उसको बार-बार दौरे पड़ रहे हैं. पिता का मलाल है कि न तो सरकार ही कोई मदद कर रही है ना हीं कोई जनप्रतिनिधि बेटे के इलाज के लिए मदद कर रहा है. पिता के पास जमा पूंजी थी वह भी बेटे के इलाज पर खर्च हो चुकी है घर में आय का कोई साधन नहीं है खेती-बाड़ी और पशुपालन करके अपने घर का गुजारा कर रहे हैं.

इलाज करवाने में भी अब माता-पिता हुए असमर्थ

मानसिक रूप से विक्षिप्त अमित जब 4 साल का था तब एक बार दौरा पड़ा था उस समय वह बेहोश हुआ था. उस समय चिड़ावा में डॉक्टर को दिखाया, इलाज भी शुरू किया. कुछ फर्क भी पड़ा, लेकिन जब वह बारह तेरह साल की उम्र का हुआ तो दौरे ज्यादा पड़ने लगे, तब झुंझुनू के कपूर थालौर को भी दिखाया, लेकिन कुछ समय तक दवाएं असर देती रही, लेकिन बाद में धीरे-धीरे दवाओं का भी असर कम हो गया.

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अब स्थिति यह है कि दिन में बार-बार दौरे पड़ रहे हैं. पिता बाबूलाल की मजबूरी है कि बाहर बड़े अस्पतालों में दिखाने की सामर्थ्य शक्ति नहीं है. आस पास में ही दिखाया लेकिन कोई इलाज नहीं हुआ मजबूरी में जंजीरों से बांधकर रखना पड़ रहा है.

जनप्रतिनिधियों से भी मिली निराशा

मानसिक रूप से विक्षिप्त के पिता बाबूलाल ने बताया कि जनप्रतिनिधियों के भी कई बार गुहार लगाई है, लेकिन कोई सहायता नहीं मिली चुनाव में प्रत्याशी मदद के बड़े-बड़े आश्वासन दिए थे, लेकिन चुनाव के बाद आ करके भी नहीं झांका. अब तो बेटे को देख देख कर माता पिता की आंखों में आंसू आते रहते हैं.

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