झालावाड़.चंद्रभागा की कोख से निकली जिस अमूल्य धरोहर को यहां से उठाकर अजमेर संग्रहालय के स्टोर में रख दिया गया था. वो धरोहर 112 साल के इंतजार के बाद वापस झालावाड़ को मिल गई है. झालावाड़ के गढ़ संग्रहालय को एक सदी से भी लंबे इंतजार के बाद 9 मूर्तियां वापस मिली हैं. इलाके के इतिहासकारों, शोध विद्यार्थियों और पुरा प्रेमियों को इससे काफी राहत मिली है और वे हर्ष महसूस कर रहे हैं. रिपोर्ट देखिये...
झालावाड़ से वर्ष 1908 में अजमेर में राजपूताना संग्रहालय की स्थापना के दौरान 12 मूर्तियां प्रदर्शन के लिए भेजी गई थीं. जिसके बाद 1915 में झालावाड़ में संग्रहालय की स्थापना हुई. उसके बाद से लगातार मूर्तियों को वापस लाने की कवायद की जा रही थी. लेकिन सारे प्रयास असफल रहे थे. ऐसे में अब 112 साल बाद प्रशासन और आम जनता के प्रयास रंग लाए हैं. झालावाड़ की बहुमूल्य 9 मूर्तियां यहां के संग्रहालय को वापस मिल गई हैं. ऐसे में अब ये ऐतिहासिक धरोहर झालावाड़ के गढ़ संग्रहालय की शोभा बढ़ाएंगी. इन प्रतिमाओं को प्रदर्शित करने की तैयारियां चल रही हैं.
ये हैं वे अमूल्य मूर्तियां
अजमेर से झालावाड़ लाई गई मूर्तियों में शिव पार्वती की मूर्ति, योग नारायण की मूर्ति, तोरण की मूर्ति, वराह अवतार की मूर्ति, प्रेमी युगल की मूर्ति, ब्रह्मांड की मूर्ति, सिर खण्ड की दो मूर्तियां, नाग-नागिन की मूर्ति और जैन मूर्ति शामिल हैं. ब्रह्माजी की मूर्ति अजमेर संग्रहालय में प्रदर्शन के लिए रखी हुई है. इसलिए ब्रह्मा की प्रतिमा को नहीं लाया गया है. जबकि शिव और पार्वती की मूर्ति में दरार आने की वजह से नहीं लाई जा सकी.
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जिला कलेक्टर ने किया प्रयास
झालावाड़ जिला कलेक्टर हरिमोहन मीणा ने हाल ही में गढ़ संग्रहालय का निरीक्षण किया था. इस दौरान उन्हें जानकारी मिली कि यहां की 12 मूर्तियां अजमेर संग्रहालय में हैं. ऐसे में उन्होंने वापसी के लिए पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग से संपर्क किया. जहां से अनुमति मिलने के बाद 9 मूर्तियां लाई गई हैं.
अजमेर संग्रहालय के लिए जुटाई गई थी प्रतिमाएं
अंग्रेजों ने 1908 में अजमेर में राजपूताना संग्रहालय की स्थापना की थी. उस संग्रहालय में प्रदेश भर में अलग अलग जिलों से ऐतिहासिक पाषाण प्रतिमाएं लाई गई थीं. झालावाड़ के अलावा सीकर, जोधपुर और अन्य जिलों से प्रतिमाएं लाई गई. उस समय चूंकि झालावाड़ के पास अपना कोई संग्रहालय नहीं था, इसलिए इन 12 अमूल्य प्रतिमाओं को पुरावेत्ता गौरीशंकर ओझा अजमेर लेकर गए.