जैसलमेर.स्वर्णनगरी जो अपने पर्यटन की वजह से दुनिया भर में अपनी खास पहचान रखता ही है. वहीं, यहां मनाया जाने वाला होली का पर्व भी अपने आप में अनूठा हैं. होलकाष्ठम लगने के साथ ही जैसलमेर में होली के रंग चढ़ने लग जाते हैं और एकादशी आते ही अपने पूरे परवान पर चढ़ जाते हैं. रियासत काल से ही जैसलमेर में होली के पर्व की अपनी अलग पहचान है. यहां की सभी जातियां एक साथ मिलकर होली के रंगों में आपसी भाईचारे का संदेश देती है. इतना ही नहीं यहां होली की परंपरा भी अनूठी है. स्थानीय लोगों के साथ-साथ महारावल (राज परिवार सदस्य) और सात समंदर पार से सैलानी भी यहां होली मनाने आते हैं.
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लक्ष्मीनाथ मंदिर आते हैं महारावल
जैसलमेर रियासत के राजा यदुवंशी हैं. ऐसे में आज भी भगवान श्री कृष्ण के अवतार के रूप में जनता इनका सम्मान और सत्कार करती है. होली के त्योहार पर एकादशी के दिन स्वयं महारावल लक्ष्मीनाथ मंदिर आते हैं और फाग गाने वाले होली के रसिया पर गुलाल उड़ाकर होली का आगाज करते हैं. फिर इन्हीं रसियों के साथ बैठकर होली के गीतों का आनंद उठाते हैं. मंदिर में होली के बाद सभी समाजों के लोग अपनी-अपनी होली की गैरों को लेकर सबसे पहले महारावल के महल जाते हैं और उनके महल के आगे होली के गीतों के माध्यम से उनका यशगान करते हैं और उनके परिवार और जिले में शुभ हो इसकी कामना करते हैं.
राजाओं को भगवान श्री कृष्ण का वंशज माना जाता हैं
जैसलमेर की होली में आमतौर पर गाए जाने वाले गीत रसखान के होते हैं. जिन्होंने कृष्ण और राधा के प्रेम पर बहुत कुछ लिखा है. वहीं, यहां के कुछ स्थानीय कवियों ने भी होली के कई छंदों की रचना की है, जो अपने आप में अनूठे है. जैसलमेर यदुवंशी राजाओं की रियासत है. ऐसे में यहां के राजाओं को भगवान श्री कृष्ण का वंशज माना जाता है और ये लोग भगवान लक्ष्मीनाथ को अपना आराध्य मानते हैं. ऐसे में होली के त्योहार में राधा और कृष्ण के बीच खेले जाने वाली होली जैसा माहौल यहां पैदा किया जाता है. यहां गाए जाने वाले होली के गीतों में कृष्ण और राधा के उसी प्रेम का भरपूर बखान किया जाता है, जिसे बच्चों से लेकर बुजुर्ग और महिलाएं सब मिलकर आनंद उठाते हैं.
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सांप्रदायिक सौहार्द्र का भी संदेश देती है यहां की होली
देश में जहां इन दिनों धर्म को लेकर घमासान की स्थिति बनी हुई है. इसी बीच जैसलमेर में बनाई जाने वाली होली सांप्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक भी मानी जाती है. जैसलमेर की होली के दौरान कई तरह के स्वांग रचाए जाते हैं, जिसमें जिंदा-जिंदी जो कि भगवान शिव और पार्वती के प्रतीक के रूप में होते हैं. वहीं सोनार किले के मुख्य चौक में मुगल बादशाहों के प्रतीक के रूप में बादशाह और शहजादे का भी स्वांग रचाया जाता है. जिसे देखने के लिए पूरा शहर उमड़ता है. जैसलमेर की होली के अनूठे रंगों को देखने के लिए दुनियाभर के सैलानी यहां आते हैं और यहां के लोगों के साथ होली के रंगों में सरोबार होकर भूल जाते हैं कि वह किसी और देश के रहने वाले हैं.