जैसलमेर.चंद दशक पहले तक ऐतिहासिक गड़ीसर सरोवर शहरवासियों के लिए पेयजल का प्रमुख स्रोत हुआ करता था. लेकिन आज ऐसे हालत है कि इसका पानी नहाने के काबिल भी नहीं रह गया है. गड़ीसर को निहारने आज भी सालाना लाखों देसी विदेशी सैलानी पहुंचते हैं.
कहीं इतिहास ना बन जाए यह ऐतिहासिक विरासत वहीं जैसलमेर आने वाला प्रत्येक सैलानी गड़ीसर जरूर जाता है. लेकिन पानी के बीचों-बीच और किनारे बनी हुई प्राचीन बंगालियों व झरोखों को जीर्ण अवस्था को सुधारने के लिए कई काम नहीं हो रहा है. ऐसे ही पानी की आवक के रास्ते में होने वाले अतिक्रमणओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.
गड़ीसर और उसके आसपास धड़ल्ले से अतिक्रमण और अवैध निर्माण का सिलसिला बेधड़क चल रहा है.नगर परिषद से लेकर जिला प्रशासन की ओर से समाधान के प्रयास अभी तक नहीं किए जा रहे हैं. जैसलमेर नगर परिषद की ओर से विगत सालों के दौरान गड़ीसर के आसपास घाट निर्माण तथा दो सुलभ शौचालय का निर्माण ही कराया गया है और लाखों रुपए की राशि इन कार्यों पर खर्च हो चुकी है. लेकिन प्राचीन और कलात्मक उंगलियों पर क्षत्रियों की तरफ जिम्मेदारों का ध्यान नहीं जा रहा है.
गड़ीसर में प्राचीन स्मारकों के जीर्णोद्धार पुरातत्व विभाग पर है वह इन स्मारकों के प्रति उपेक्षा पूर्ण बर्ताव करता रहा है.पिछले 3 साल में बंगाली पर बनी पत्थर की मयुरकर्ति नीचे गिरी हुई है उससे अब तक यथास्थान तक नहीं लगाया गया है .
वहीं गड़ीसर क्षेत्र में साफ सफाई के इंतजाम भी पर्याप्त नहीं है. सैलानियों और अन्य लोगों की शिकायत यह रहती है कि कचरा डालने के लिए डस्टबिन तक नहीं लगे. दिन और रात के समय सरोवर के आसपास शराब बीयर पीने वालों को रोकने वाला कोई नहीं है वह तो के कांच बिखरे हुए नजर आते हैं.