जयपुर. फॉरेस्ट ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में दो दिवसीय राष्ट्रीय परामर्श कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है. शुक्रवार से शुरू हुई कार्यशाला में राजस्थान में टाइगर प्रोजेक्ट को लेकर विचार विमर्श किया गया. बाघ संरक्षण को लेकर विशेषज्ञों के साथ वन विभाग के अधिकारियों ने चर्चा की.राजस्थान के सभी टाइगर रिजर्व एरिया से संबंधित अधिकारी भी इस कार्यशाला में शामिल हुए. सरिस्का, मुकंदरा, धौलपुर, करौली सहित प्रदेश भर के टाइगर रिजर्व को लेकर अधिकारियों ने अपने प्रेजेंटेशन पेश किए. रणथंभौर जैसे वन क्षेत्र में बाघों की संख्या बढ़ने लगी है और भाग जंगलों से बाहर निकल रहे है.
प्रदेश में बाघ संरक्षण को लेकर जयपुर में 2 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन - jaipur
आज शुक्रवार से शुरू हुई कार्यशाला में राजस्थान में टाइगर प्रोजेक्ट को लेकर विचार विमर्श किया गया. बाघ संरक्षण को लेकर विशेषज्ञों के साथ वन विभाग के अधिकारियों ने चर्चा की.
जिसको लेकर वन विभाग योजना तैयार कर रहा है कि किस तरह से टाइगर्स को जंगलों में ही रोका जाए. मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक अरिंदम तोमर ने बताया कि रणथंभौर में टाइगर की आबादी ज्यादा बढ़ गई है. जिससे ओर अधिक टाइगर वहां पर नहीं रखे जा सकते. वन विभाग बाकी वन क्षेत्रों में भी टाइगर की आबादी को बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. इन टाइगर्स को रखने के लिए नई जगहो की तलाश भी की जा रही है. जंगलों से बाहर निकल कर जाने वाले टाइगर्स को भी विस्थापित किया जाएगा. टाइगर्स को रखने के लिए उस क्षेत्र का इको सिस्टम भी बेहतर होना जरूरी है. इन सभी बातों को लेकर वैज्ञानिकों के साथ विचार विमर्श किया जा रहा है.
सरिस्का वन क्षेत्र के डीएफओ एसआर यादव ने बताया कि सरिस्का में टाइगर्स की 24 घंटे मॉनिटरिंग की जा रही है. वन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांव को भी विस्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है. रणथंभौर डीएफओ मनोज पाराशर ने बताया कि टाइगर्स की आबादी ज्यादा बढ़ने से टाइगर इधर-उधर निकलने लगे हैं. टाइगर पापुलेशन को अच्छी तरह सेटल करने के लिए नई जगहो को लेकर चर्चा की गई है। रणथंभौर में टाइगर की आबादी बढ़ने से उनका जंगल से बाहर निकलना वन विभाग के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है. इसके लिए ऐसे एरिया डेवलप किए जाएंगे जहां पर टाइगर रह सके.