जयपुर.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार का विधानसभा चुनाव किसी व्यक्ति के चेहरे से जुदा पार्टी के चिन्ह पर लड़ने की बात कह चुके हैं. इस बीच महारानी और राजकुमारी का विवाद भी पुराना हो चुका है, पर कमल निशान के लिए भाजपा के भगवा खेमे में चेहरों की तलाश का दौर जारी है. इस बीच दो पूर्व राजपरिवारों के सदस्यों की चर्चा इन दिनों राजस्थान के सियासी हलकों में जोरों पर है. राजनीतिक दलों से आजादी के बाद से ही राजपरिवारों के रिश्तों का दौर देखा गया है. बदलते वक्त के साथ इन राजपरिवारों की स्वीकार्यता को आम जनता के बीच भुनाने की कोशिश में सभी पार्टियां नजर आती है. प्रदेश में 2023 के रण में ऐसे ही दो राजपरिवारों की चर्चा जमकर हो रही है, जो भाजपा के खेमे से हैं. इनमें पहला नाम जयपुर के पूर्व राजपरिवार की सदस्य दीया कुमारी का है, तो हाल ही में भाजपा के कुनबे के साथ जुड़े मेवाड़ के पूर्व राजघराने के सदस्य विश्वराज सिंह का नाम भी इन दिनों परवान पर है.
दीया कुमारी की राजनीतिक विरासत:जयपुर के पूर्व राजपरिवार की तीन पीढ़ियों का राजनीति से ताल्लुक रहा है. खास बात है कि इन पीढ़ियों की राजनीति तीन अलग-अलग राजनीतिक दलों से जुड़ी रही है. 1962 में जयपुर की महारानी गायत्री देवी ने स्वतंत्र पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ा था और रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की थी. उनकी इस जीत को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया था. उनके बाद गायत्री देवी के बेटे ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने कांग्रेस की टिकट से साल 1989 में लोकसभा चुनाव लड़ा, पर उन्हें गिरधारी लाल भार्गव से शिकस्त मिली.
इस परिवार की तीसरी पीढ़ी के रूप में साल 2013 में दीया कुमारी बीजेपी में शामिल हुई. उन्होंने इसी साल विधानसभा चुनाव में सवाईमाधोपुर से डॉ किरोड़ीलाल को हराया, तो साल 2019 में दीया कुमारी ने राजसमंद लोकसभा सीट के जरिए संसद में एंट्री ली. इस बार के चुनाव में वह बीजेपी प्रत्याशी के रूप में जयपुर की विद्याधर नगर सीट से मैदान में है. दीया कुमारी में सियासी भविष्य देखने वाले नेताओं के बीच उनका बढ़ता राजनीतिक कद चर्चा का मुद्दा बना हुआ है.