जयपुर. राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नेता हनुमान बेनीवाल की पार्टी चुनाव बाद सत्ता में कौन से दल की भागीदार बनेगी, इस बात को लेकर सियासी हलकों में अटकलों का दौर देखने को मिल रहा है. नागौर से पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने के बाद लगातार पश्चिमी राजस्थान से कांग्रेस छोड़कर जाट नेताओं के जाने की चर्चाएं हो रही थी. इस बीच डेगाना से पूर्व विधायक और उनके विधायक पुत्र रिछपाल मिर्धा और विजयपाल मिर्धा को लेकर भी अटकलें लगाई गई. साथ ही युवा विधायक दिव्या मदेरणा की नाराजगी की खबरें भी लगातार चलती रही. इन नेताओं की नाराजगी के पीछे हनुमान बेनीवाल की बेलगाम बयानबाजी और कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व की खामोशी को बताया जा रहा था.
हनुमान बेनीवाल रहे हैं हमलावर: पश्चिमी राजस्थान में नागौर के मूंडवा से और वर्तमान में खींवसर सीट से अपनी सियासी पारी को आगे बढ़ाने वाले आरएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल ने परंपरागत जाट परिवारों को शुरुआत से ही चुनौती दी है. पहले रामनिवास मिर्धा के पुत्र हरेंद्र मिर्धा और फिर नाथूराम मिर्धा की पोती ज्योति मिर्धा को उन्होंने अपने निशाने पर लिया. वरिष्ठ नेता रहे स्वर्गीय परसराम मदेरणा की पोती दिव्या मदेरणा भी लगातार हनुमान बेनीवाल की बयानबाजी का हिस्सा रही.
इसके बाद नाथूराम मिर्धा की विरासत को चुनौती देते हुए डेगाना में रिछपाल मिर्धा की सियासत को भी हनुमान बेनीवाल ने हमेशा अपने निशाने पर रखा. ऐसे में प्रदेश नेतृत्व की ओर से कभी भी हनुमान बेनीवाल के बयानों का खंडन नहीं हुआ, साथ ही सियासी हलको में यह चर्चा हमेशा रही कि पर्दे के पीछे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ हनुमान बेनीवाल कदम से कदम मिलाकर एनडीए से अपनी मुखालफत के बाद राजस्थान में जड़ों को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं. हनुमान बेनीवाल की प्रदेश नेतृत्व से यह नजदीक या पश्चिमी राजस्थान में हाथ को पकड़े हुए जाट नेताओं को अब रास आती हुई नहीं दिख रही है.