जयपुर. जेएलएफ में 'कास्ट मैटर' सत्र ने श्रोताओं को समाज की वास्तविकता से रूबरू कराया. सत्र सूरज येंग्ड़े की किताब 'कास्ट मैटर' पर आधारित था, जिसमें वरिष्ठ अकादमिक सुरेंदर एस जोधका ने उनसे बात की. सत्र की शुरुआत करते हुए जोधका ने भारत में जातिवाद के इतिहास पर रोशनी डालते हुए कहा, भारत को आजाद हुए 75 साल हो गए हैं, लेकिन आज जाति के बारे में जो बात हो रही है वो 70 और 80 के दशक से अलग है. उन्होंने मंडल मिशन के जरिए ओबीसी और दलितों के संघर्ष को व्यक्त किया. लंबे समय तक जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाने वाले लेखक और विचारक सूरज येंग्ड़े ने विजय सिंह पथिक समेत उन सभी विचारकों का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस दिशा में काफी काम किया.
जातिवाद कुछ के लिए गर्व, कुछ के लिए शर्मिंदगी: उन्होंने जातिवाद की जमीनी हकीकत के बारे में कहा, कुछ लोगों के लिए ये गर्व की बात है. लेकिन अधिकांश लोगों के लिए शर्मिंदगी है. ये शर्मिंदगी ही उन्हें हिंसा के लिए मजबूर करती है. वो इस नए रिपब्लिक का हिस्सा नहीं बन पाते. हालांकि, उन्होंने माना कि भारत की प्रत्येक विचारधारा ने जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी है, फिर वो चाहे बौद्ध हो, नाथपंथी, कबीरदास या तुलसीदास.
लेखिका रोहिणी निलेकनी ने क्या कहा जानिए: समाज, सरकार, बाजार सत्र में लेखिका रोहिणी निलेकनी ने बताया कि नागरिकों को इसके प्रति क्या नजरिया रखना चाहिए. सत्र में रोहिणी से लेखक वीर सांघवी ने बातचीत किया. उन्होंने कहा, उनका पालन-पोषण मुंबई के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ और सादगी से जीने वाले उनके परिवार में संसाधनों को वरीयता दी जाती थी. इंफोसिस और उसके बाद के बदलावों के बारे में उन्होंने कहा कि पैसा आने के बाद जिम्मेदारियों का एहसास हुआ. लेखिका रोहिणी ने आगे बताया कि इसके बाद उन्होंने छोटे-छोटे बदलावों की तरफ ध्यान दिया जैसे रोड सेफ्टी और साफ पानी.