डूंगरपुर. देश की आजादी (Indian Independence Day) को लेकर इस बार हम अमृत महोत्सव मना रहे हैं. गुलामी की जंजीरों में जकड़े भारत को आजाद कराने के लिए वीर स्वतंत्रता सेनानियों ने हंसते-हंसते प्राणों को न्यौछावर कर दिया था. स्वतंत्रता सेनानियों की मुहिम और शौर्य के कारण ही भारत ने 15 अगस्त 1947 को आजाद होकर एक नया सवेरा देखा था. आजादी के लिए आंदोलन छेड़ते हुए प्राणों की आहूति देने वाले महापुरुषों की शौर्य गाथा (Freedom fighters across India) आज भी सुनाई देती है. इन्हीं वीर योद्धाओं में एक नाम नारीशक्ति कालीबाई (Nari Shakti Kalibai of Dungarpur) का भी है.
आदिवासी परिवार में जन्मी 12 साल की ये बच्ची अंग्रेजी हुकूमत के सामने नहीं झुकी. अपने गुरुजी को जीप से बांधकर ले जा रहे अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपनी जान तक दे दी. लेकिन अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके. राजस्थान के दक्षिणांचल में स्थित आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिला. अंग्रेजों के शासनकाल में डूंगरपुर भी गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा. लेकिन आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों के खिलाफ खूब लड़ाई लड़ी, इसमें वीरबाला कालीबाई भी शामिल थी.
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आदिवासी परिवार में कालीबाई का जन्म: वीरबाला कालीबाई का जन्म 1935 में रास्तापाल गांव में आदिवासी सोमा भाई के घर हुआ. जन्म से होनहार, निडर कालीबाई आदिवासी अंचल में शिक्षा और वीरता का ऐसा संदेश देकर गई जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. आदिवासी इलाके में अंग्रेजी हुकूमत के बढ़ते अत्याचार और पाबंदियों के बीच रास्तापाल गांव में सबसे पहली स्कूल खुली.
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अंग्रेजों ने स्कूल पर लगाई पाबंदीः गांव के एक केलूपोश घर में गुरुजी सेंगा भाई और नाना भाई खांट ने पाठशाला शुरू की. आसपास के सभी बच्चों को पढ़ाया जाता था, लेकिन ये बात जैसे ही अंग्रेजी हुकूमत को पता लगी तो उन्होंने स्कूल खोलने पर पाबंदी लगा दी. लेकिन रास्तापाल गांव में ये स्कूल बंद नहीं हुई. इससे नाराज अंग्रेज 19 जून 1947 को नानाभाई खांट की पाठशाला पहुंचे, जहां कालीबाई समेत कई बेटियां और बच्चे पढ़ते थे.
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गुरुजी बंधा देख उठा ली दांतलीः स्कूल में नाना भाई खांट और शिक्षक सैंगा भाई दोनों ही थे. अंग्रेजों ने दोनों से स्कूल बंद करने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इस पर अंग्रेजों ने दोनों को बंदूकों से मारा और स्कूल से बाहर निकालने के बाद अंग्रेजों ने दरवाजे पर ताला लगा दिया. दोनों ने विरोध किया तो शिक्षक सेंगा भाई को रस्सी से बांधकर अंग्रेजों ने पुलिस जीप के पीछे बांध दिया और उन्हें घसीटते हुए ले जाने लगे.
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उसी समय खेतों की ओर से घास लेकर आ रही कालीबाई ने अपने गुरुजी सेंगा भाई को पुलिस जीप के पीछे बंधा और घसीटते हुए देखकर घास के ढेर को नीचे फेंका और दौड़ पड़ी. घास काटने की दांतली से ही गुरुजी सेंगा भाई की रस्सी को काट दिया. इससे नाराज अंग्रेजों ने वीरबाला कालीबाई को बंदूक की गोलियों से भून दिया. वही सेंगा भाई पर भी गोलियां चलाई. गांव की पाठशाला को बचाने के लिए अंग्रेजों से लोहा लेते हुए दोनों शहीद हो गए. आज भी इनकी वीरता को याद किया जाता है. कालीबाई ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए देश की आजादी और आदिवासी अंचल में शिक्षा के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर दी.
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कालीबाई के नाम से बांटी जाती है स्कूटीः वीरबाला कालीबाई के इस बलिदान को आजाद भारत में याद करना बहुत जरूरी है. रास्तापाल गांव में वीरबाला कालीबाई के साथ ही गुरुजी सेंगा भाई और नाना भाई खांट की मूर्तियां लगी हुई हैं. वहीं कालीबाई के नाम से गांव में स्कूल भी है. डूंगरपुर शहर में तहसील चौराहा के पास कालीबाई सर्किल बना हुआ है, जहा मूर्ति भी लगी है.
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वहीं नाना भाई के नाम से भी पार्क है, उसी में कालीबाई का एक और स्टेच्यू लगा है. बालिका शिक्षा को लेकर जान न्योछावर करने वाली कालीबाई के नाम से डूंगरपुर शहर में सबसे बड़ा वीर कालीबाई कन्या महाविद्यालय है. वहीं शहर के मांडवा खापरडा में कालीबाई की वीरगाथा को लोगो तक पहुंचाने के लिए पैनोरमा बना हुआ है, जहां कालीबाई के घटनाक्रम से जुड़ी सभी चीजों को प्रदर्शनी के जरिए समझाया गया है. सरकार की ओर से वीरबाला कालीबाई के नाम से ही बालिकाओं को प्रदेशभर में स्कूटी वितरण योजना शुरू की गई है. प्रदेश में बोर्ड परीक्षा में अव्वल रहने वाली आदिवासी बालिकाओं को हर साल कालीबाई के नाम से स्कूटी दी जाती है.