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स्पेशल रिपोर्ट : मजबूरी ऐसी कि...कब्रगाह में पढ़ाई करते हैं बच्चे, यहीं खाते हैं मिड-डे मील - कब्रगाह में मदरसा

धौलपुर जिले के सैपऊ उपखण्ड़ मुख्यालय स्थिति राजस्थान मदरसा बोर्ड द्वारा संचालित मदरसा तालीमुल में पिछले 16 वर्ष से नौनिहाल बच्चे दफन लाशों के ऊपर पढ़ रहे हैं. देखिये ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्ट...

madarsa running in Cemetery, सैपऊ में मदरसा

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Published : Nov 7, 2019, 11:21 PM IST

धौलपुर. मदरसे की तालीम ले रहे इन बच्चों को देखिए. ये कोई स्कूल या कोई आम स्थल नहीं कब्रगाह है जहां बैठकर तालीम हासिल कर रहे हैं. जिस कब्रगाह के सन्नाटे में इंसान जाने से घबराने लगता है, उसकी मिट्टी के नीचे दफन लाशों पर बैठकर ये बच्चे पढ़ाई करने को मजबूर हैं.

ये मामला धौलपुर जिले के सैपऊ कस्बे में बने कब्रिस्तान का है. जहां पिछले 16 वर्षों से चल रहा मदरसा आज भी भवन की आस लगाए बैठा है. सरकारों ने आश्वासन भी दिया लेकिन आज भी इन बच्चों को इन कब्रगाहों में बैठकर पढ़ाई करनी पड़ रही है.

...यहां कब्रगाह में पढ़ाई करते हैं बच्चे, यहीं खाते हैं मिड-डे मील

भवन के अभाव के चलते इन बच्चों को खुले आसमन के नीचे बैठना पड़ता है. इतना ही नहीं मिड-डे मील का पोषाहार भी इन बच्चों दफन लाशों के ऊपर बैठकर ही खाना पड़ता है. जब भी किसी मरने वाले का जनाजा कब्रगाह में पहुंचता है तो इनकी पढ़ाई बीच में ही रोकनी पड़ती है. अब जरा सोचिए, मय्यत पर पहुंचने वाले लोगों की सिसकियों का इन बच्चों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा.

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लेकिन पिछले 16 सालों से ही चला आ रहा है, जो बच्चों के जीवन का हिस्सा बन गया है. मदरसे में कुल तीन शिक्षक नियुक्त हैं. लेकिन भौतिक सुविधाओं का अभाव होने पर बच्चे शिक्षा की तालीम से ऐसे हालातों में ले रहे हैं. एक छात्र इंसान ने बताया कि कस्बे से जब कब्रिस्तान में लाश लाई जाती है, तो उन्हें भय प्रतीत होता है. इतना ही नहीं गंदगी और कूड़ा होने के चलते विषैले सर्प और बिच्छू भी निकल आते हैं. धूप, बारिश और अधिक सर्दी बिना पढ़ाई किये ही घर लौटना पड़ता है.

मदरसा टीचर रुबीना कब्रिस्तान होने के कारण अभिभावक भी अपने बच्चों को भेजने से कतराते हैं. ऐसे में उन्हें खुद बच्चों को घर तक लेने जाना पड़ता है. सर्दी गर्मी और बारिश के मौसम में बच्चे खुले आसमान के नीचे ही पढ़ाई करते है. समस्या को लेकर राजनेताओं एवं प्रशासन के अधिकारियों को भी अवगत करा दिया है. लेकिन बच्चों को भवन उपलब्ध कराने की जहमत किसी ने भी नहीं उठाई है.

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अब सवाल ये उठता है राज्य का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहेगा, सरकारें ऐसा दावा तो करती हैं. लेकिन हकीकत में दावे पूरे होते नहीं दिखते. यही वजह है कि सैपऊ कस्बे के इस मदरसे के नौनिहाल आज भी भवन एवं भौतिक सुविधाओं के अभाव में खुले आसमान के नीचे दफन लाशों के ऊपर पढाई करने को मजबूर हैं.

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