चूरू.फाल्गुन की मस्ती में सराबोर होली के रसिया रात-रात भर चंग की थाप पर थिरकते रहते हैं. होली के धमाल गीतों में जान भरने का काम चंग ही करता है. या यूं कहे कि बिना चंग के धमाल हो ही नहीं सकता. होली के त्योहार पर धमाल के साथ चंग बजाने का अपना महत्व है, साथ ही चंग की बेहतरीन क्वालिटी होली के रसियो के द्वारा गाये जाने वाले धमाल गीतों की पहली जरूरत होती है. ये चंग मशीन ने नहीं बनते, बल्कि कारीगर अपने हाथों से तैयार करते हैं. एक बेहतरीन क्वालिटी का डफ बनाने में तीन से चार दिन का समय लगता है. यह काम मेहनत मांगता है.
चूरू शहर में होली से करीब एक महीने पहले ही कुछ परिवार चंग बनाने का काम शुरू कर देते है. हम आपको चूरू के ऐसे परिवार से मिलवाते है, जो 100 साल से बेहतरीन क्वालिटी के डफ तैयार कर रहा है. इस परिवार के द्वारा बनाये गए डफ फाल्गुन के धमाल में एक अलग ही मिठास घोलते है. यही वजह है कि इस परिवार के सदस्यों के बनाए गए डफ ना केवल चूरू में या जिले से बाहर बल्कि विदेशों तक में पसंद किए जा रहे है. यह परिवार है चूरू शहर के चांदनी चौक का चंदेल परिवार.
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जानिए कैसे तैयार होता है चंगचंग का घेरा बनाने का काम सबसे मेहनत का काम होता है. डफ का घेरा बनाने में ज्यादातर आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है. आम की लकड़ी काफी हल्की होती है और इससे बनाये गए डफ को काफी देर तक हाथ में रखा जा सकता है. यही वजह की आम की लकड़ी का घेरा बनाया जाता है. आम के घेरे पर भेड़ की खाल को चढ़ाया जाता है. भेड़ की खाल को डफ के घेरे पर लगाने के लिए मैथी व सिलिकॉन का घोल काम में लिया जाता है. इससे पहले भेड़ की खाल को आंकड़े के पौधा के दूध से साफ किया जाता है. एक डफ तैयार करने में चार से छह घंटे लगते है, लेकिन सूखने में तीन से चार दिन लग सकते है. डफ जितना ज्यादा सूखा होगा इसकी धून उतनी ही अच्छी होगी.