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स्पेशल: चूरू के मालचंद जांगिड़ परिवार ने चंदन शिल्पकला को देश-विदेश में दिलाई पहचान, राष्ट्रपति अब विनोद को देंगे शिल्प गुरु पुरस्कार

कहते है कि कला को किसी सीमा या क्षेत्र के दायरे में नहीं बांधा जा सकता है. यही वजह है कि राजस्थान के चूरू जिले के मालचंद जांगिड़ परिवार की ओर से चंदन पर कलाकृतियां उकेरने को लेकर शुरू की गई इस कला के आज देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हजारों-लाखों मुरीद हैं. इतना ही नहीं इस परिवार की कला में दक्षता और कौशल को लेकर अब तक कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित भी किया जा चुका है. अब इस परिवार के सदस्य विनोद जांगिड़ को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों शिल्प गुरु पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

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Published : Nov 25, 2019, 3:25 PM IST

चूरू. यह है चूरू के मालचंद जांगिड़ का परिवार. इस परिवार की चार पीढ़ियां चंदन पर शिल्प कला के दम पर देश-विदेश में अपनी खास पहचान बना चुकी हैं. आमतौर पर सर्दियों में माइनस डिग्री और गर्मियों में 50 डिग्री के पार पारा रहने के तौर पर पहचाने जाने वाला चूरू शहर आज चंदन शिल्प कला के दम पर पूरे विश्व में अपनी नई पहचान बना रहा है. इस पहचान को दिनों-दिन ऊंचाइयों पर पहुंचाने में जुटा है शहर का मालचंद जांगिड़ का परिवार.

चूरू के जांगिड़ परिवार ने चंदन शिल्पकला को देश-विदेश में दिलाई पहचान

चंदन की लकड़ी पर शिल्प कला में इस परिवार ने इतना नाम कमाया कि इनके परिवार को दसवीं बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा. इससे पूर्व में 9 बार में कभी राष्ट्रपति, कभी प्रधानमंत्री व कभी उप राष्ट्रपति के हाथों राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हो चुके जांगिड़ परिवार के ही विनोद जांगिड़ को अब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शिल्प गुरु पुरस्कार से सम्मानित करेंगे.

शिल्प कला के प्रति ऐसा प्रेम भी घर का नाम भी कलाकार कुंज रखा

चंदन की लकड़ी पर बारीक कारीगरी के लिए सबसे पहले वर्ष 1971 में मालचंद जांगिड़ को राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया था. जो सिलसिला आज चौथी पीढ़ी तक बरकरार है. कला के प्रति इस परिवार का समर्पण इतना कि खुद के मकान का नाम भी कलाकार कुंज रख दिया. कला के प्रति प्रेम व आगे बढ़ाने की चाह इतनी कि इस परिवार का सदस्य शुभम जिसकी उम्र महज 11 साल है, वो भी चंदन शिल्प कला में धीरे धीरे पारंगत हो रहा है.

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अमेरिका सहित कई देशों में पसंद है चंदन शिल्प कला

मालचंद परिवार की ओर से चंदन लकड़ी पर की जाने वाली शिल्प कला इतनी खास है कि जिसके चाहने वाले देश ही नहीं बल्कि सात समंदर पार विदेशों में भी है. इस कला के दीवाने विदेशों में ज्यादा है. दिल्ली और जयपुर में तो इनके द्वारा बनाई गई वस्तुओं के काफी खरीदार है ही. विदेशों में भी अमेरिका, हॉलैंड, थाईलैंड के साथ ही अरब देशों में भी काफी खरीदार है.

चंदन की लकड़ी पर उकेर चुके हैं ऐसी कलाकृतियां

इस परिवार के सदस्यों की ओर से देवी-देवताओं देवताओं के चित्रों के साथ ही, पुष्प, फलों सहित कई आकृतियां चंदन की लकड़ी पर उकेरी जा चुकी है. जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है. अब तक इस कला के जरिए वह भगवान राम का जीवन, हनुमान, गणेश, भगवान कृष्ण की लीलाएं, संगीत सम्राट तानसेन का जीवन, गुलाब का फूल, तलवार, जेब घड़ी, ताजमहल, बादाम, माला, सितार, राजस्थानी पनिहारी व पंखी सहित कई कलाकृतियां चंदन की लकड़ी पर उकेर चुके हैं.

परिवार के इन सदस्यों को मिल चुके है राष्ट्रीय पुरस्कार

1. मालचंद जांगिड़ -1971- राष्ट्रपति वीवी गिरी ने पुरस्कार दिया
2. मालचंद जांगिड़ - 1972 - प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पुरस्कार दिया
3. चौथमल जांगिड़ - 1973 - राष्ट्रपति वीवी गिरी ने पुरस्कार दिया
4. महेश - 1993 - राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने पुरस्कार दिया
5. विनोद जांगिड़ - 1995 - राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने पुरस्कार दिया
6. पवन जांगिड़ - 1999 - प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पुरस्कार दिया
7. सीताराम - 2002 - उप राष्ट्रपति कृष्णकांत शर्मा ने पुरस्कार दिया
8. नरोत्तम - राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पुरस्कार दिया
9. कमलेश - राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने पुरस्कार दिया

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