चित्तौड़गढ़.डेयरी का बिजनेस आज के वक्त में सदाबहार माना जाता है. चाहे कितनी भी क्राइसिस क्यों न हो, लेकिन दूध की मांग कभी कम नहीं रहती है. ये ऐसा बिजनेस है कि इनवेस्ट करने के पहले दिन से ही पैसा कमाना शुरू कर सकते है. पशुपालन आय का सबसे बढ़िया स्रोत बनता जा रहा है! कुछ इसी तरह बिजनेस करके उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चित्तौड़गढ़ आए शिवेंद्र तिवारी ने नाम और पैसा दोनों कमाया. हालांकि अब वह हमारे बीच नहीं हैं. चलिए जानते हैं शिवेंद्र तिवारी का सफर कैसा था और अब उनका डेयरी बिजनेस कैसा चल रहा है. कौन चला रहा है सबकुछ.
जय विश्वनाथ मिश्रा बताते हैं कि शिवेंद्र तिवारी का बिजनेस के लिहाज से डेयरी फार्म खोलने का कोई मकसद नहीं था, गौपालन केवल उनका शौक था. लेकिन यही शौक उन्हें चित्तौड़गढ़ के एक बड़े दूध व्यापारी की पहचान दे गया. हालांकि शिवेंद्र तिवारी अब हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके द्वारा 10 साल पहले शुरू की गई डेयरी न केवल युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बन गई बल्कि परिवार के लिए एक बड़ा सहारा साबित हो रही है जिसका प्रतिवर्ष टर्नओवर करोड़ रुपए तक पहुंच गया.
कोयला सप्लाई का था कारोबार : शिवेंद्र तिवारी वर्ष 2000 में चित्तौड़गढ़ आए थे. मूल रूप से वाराणसी के रहने वाले तिवारी का पुठोली स्थित हिंदुस्तान जिंक में कोयले सप्लाई का कारोबार था. जब कारोबार अच्छा चल निकला तो उन्होंने चित्तौड़गढ़ में ही रहने का मानस बना लिया और कपासन राजमार्ग पर सिंहपुर टोल नाके के पास 25 बीघा जमीन खरीद ली. उस समय उनका खेती करने का ही मकसद था. चूंकि अच्छा खासा पानी था, ऐसे में खेती-बाड़ी के साथ वर्ष 2013 में बेंगलुरु से 10 एचएफ गाय मंगवाई ताकि फार्म हाउस का खर्चा निकल जाए और कुछ इनकम भी हो जाए.
घास कटिंग से दूध निकालने तक मशीन : सबसे पहले वे बेंगलुरु गए और वहां बड़े-बड़े डेयरी फार्म देखा. गाय को किस प्रकार रखा जाता है? पालन पोषण किया जाता है और उनके लिए क्या-क्या फैसिलिटी होना चाहिए? यह सब बारीकी से देखने के बाद 10 गायों का आर्डर किया और चित्तौड़गढ़ अपने फार्म हाउस को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस प्रोजेक्ट बनाकर फैसिलिटी जुटाई. शुरू में 10 में से 5 गाय दूध दे रही थी. हर एक गाय से दोनों समय का 35 से 40 लीटर दूध हो रहा था. ऐसे में धीरे-धीरे इन गायों के बछड़ों को तैयार करने के साथ और भी गाय मंगवाते रहे. साथ ही घास कटिंग से लेकर दूध निकालने तक मशीनों का इस्तेमाल किया गया. डेयरी को लगातार विस्तार देने के साथ-साथ अत्याधुनिक बनाने में जुटे रहे. नतीजतन, महज 10 साल में गायों की संख्या सवा सौ तक पहुंच गई.