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चित्तौड़गढ़: वन विभाग की अनोखी पहल, ग्रामीणों को सिखाए पलाश से रंग बनाने के गुर - पलाश के फूलों से रंग बनाना

चित्तौड़गढ़ में वन विभाग ने एक अनूठी पहल की. उन्होंने ग्रामीणों को पलाश के फूलों से रंग बनाने की विधि सिखाई. जिसमें बड़ी संख्या में ग्राणीण मौजूद रहे और पलाश से रंग बनाने के गुर सीखे. इस दौरान विभाग ने बताया कि अब ग्रामीण भी रंग बना कर अपनी आमदनी को बढ़ा सकेंगे. अब इससे न सिर्फ वन सम्पदा के संरक्षण को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि ग्रामीण रंग बनाने के गुर सिख रोजगार से भी जुड़ पाएंगे.

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वन विभाग की पहल

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Published : Mar 22, 2021, 12:05 PM IST

चित्तौड़गढ़.जिले के वन विभाग ने गांव के लोगों के लिए एक अनूठी पहल की. उन्होंने काटून्दा के महुपुरा में वेरी महादेव स्थित पलाश वैली में न केवल विश्व वानिकी दिवस मनाया बल्कि ग्रामीणों को पलाश के फूलों से रंग बनाना भी सिखाया. बता दें कि गांव के आसपास बड़ी संख्या में पलाश के पौधे हैं, ऐसे में अब ग्रामीण भी रंग बना कर अपनी आमदनी को बढ़ा सकेंगे. इस दौरान उप वन संरक्षक सुगना राम जाट के साथ उपखंड अधिकारी और विभाग के अधिकारी कर्मचारी एक साथ गांव पहुंचे और एक समारोह आयोजित कर विश्व वानिकी दिवस का महत्व बताया. वहीं लोगों को विशेषज्ञों ने पलाश से रंग बनाने की विधि सिखाई.

उन्होंने बताया कि अब इससे न सिर्फ वन सम्पदा के संरक्षण को प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि ग्रामीण रंग बनाने के गुर सिख रोजगार से भी जुड़ पाएंगे. उप वन संरक्षक जाट ने इस मौके पर मानव जीवन में वन और वन्य जीवों का महत्व बताते हुए कहा कि जीवन के लिए पेड़ पौधे बहुत जरूरी हैं. साथ कहा कि आज जो हमारे सामने समस्याएं आ रही है उसका मूल कारण वनों की अंधाधुंध कटाई है, जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ता जा रहा है और हालात गंभीर होते दिख रहे हैं. जिसकों लेकर तमाम देश आज इस मुद्दे पर सामूहिक तौर पर कदम उठाने को मजबूर हो गए हैं.

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इस मौके पर बेगू के उपखंड अधिकारी, सहायक उप वन संरक्षक समी उल्ला खान के अलावा रावतभाटा से भी विभाग के अधिकारी और कर्मचारी शामिल रहे. इस दौरान विशेषज्ञों की ओर से पलाश के फूलों से ग्रामीणों को रंग बनाने की विधि भी सिखाई. जिसको देखते हुए बड़ी संख्या में गांव की महिलाएं भी कार्यक्रम में पहुंचीं. .

गौरतलब है कि पलाश को "जंगल की आग" भी कहा जाता है. प्राचीन काल से ही होली के रंग इसके फूलों से तैयार किये जाते रहे है. पलाश को किंसुक, पर्ण, याज्ञिक, रक्तपुष्पक, क्षारश्रेष्ठ, वात-पोथ आदि नामों से भी जाना गया है. जो चित्तौड़गढ़ जिले और आस-पास के क्षेत्र में यह बहुतायत संख्या में मिलते हैं.

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