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SPECIAL: बूंदी में दम तोड़ रही है ऐतिहासिक चित्र शैली, देखरेख का अभाव सबसे बड़ी वजह

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Published : Aug 25, 2020, 9:32 PM IST

बूंदी की हजारों साल पुरानी बूंदी चित्र शैली का अब अपना अस्तित्व खत्म होता हुआ नजर आ रहा है. चित्रों पर प्रशासनिक लापरवाही की आंच नजर आ रही है. देखरेख के अभाव में ये ऐतिहासिक धरोहर खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है. बूंदी के तारागढ़ फोर्ट में स्थित ऐतिहासिक चित्र शैली जगह-जगह से जर्जर और धुंधली हो रही है.

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दम तोड़ रही है ऐतिहासिक चित्र शैली

बूंदी. अरावली पर्वत मालाओं से घिरा राजस्थान का बूंदी शहर घूमने के लिए बहुत ही खूबसूरत जगह है. राजस्थान के ज्यादातर शहर खासतौर से अपने किलों और महलों के लिए मशहूर है. लेकिन बूंदी को खास बनाती है यहां की चित्रशाला और बूंदी अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए विख्यात है. जो इस आंचल के मध्य कला में विकसित हुई है. बूंदी चित्र शैली में लाल पीले रंगों की प्रचुरत प्राकृतिक का सतरंगी चित्रण विशेष रूप से पाया जाता है. लेकिन इस चित्र शैली की हालत दिन प्रतिदिन खराब होती जा रही है.

दम तोड़ रही है ऐतिहासिक चित्र शैली

बूंदी के तारागढ़ फोर्ट में स्थित ऐतिहासिक चित्र शैली अब धीरे-धीरे खत्म होने लगी है. हालांकि यह चित्र शैली भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है. फिर भी इस चित्र शैली को विभागीय अधिकारी सवांरने में लापरवाही बरत रहे हैं. हालत तो यह हो चली है कि पूरा परिसर अब जर्जर होने लगा है. जो पेंटिंग दीवारों पर अकरी हुई है वह अब धीरे-धीरे जर्जर होने लगी है. इतना ही नहीं कुछ जगहों पर तो चित्रकारी खत्म भी हो गई है. बूंदी चित्र शैली को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों की तादाद में सैलानी आते हैं. लेकिन उन्हें देखने के दौरान इन जर्जर अवस्था में पड़ी हुई चित्र शैली को देखते हैं तो सैलानियों को अजीब सा लगता है.

विश्व प्रसिद्ध चित्र शैली है हजारों साल पुरानी

राजस्थान के 33 जिलों में से बूंदी जिला एक ऐसा जिला है जो अपनी विरासत के साथ चित्र शैली के नाम से भी विख्यात है. बूंदी की लोक संस्कृतिक झलकियां देखने के लिए हर साल हजारों पर्यटक देश विदेश से आते हैं. जिसमें बूंदी की चित्र शैली का टशन उन्हें आकर्षित करता है. बूंदी में एक किला है जिसका नाम तारागढ़ है और तारागढ़ का यह नाम वहां की रानी तारा के नाम पर रखा गया था.

ऐतिहासिक शहर बूंदी

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बूंदी तारागढ़ का किला बहुत ही भव्य हैं और किले के भीतर और मुख्य दरवाजे पर चित्र शैली में चित्र बने हुए हैं. इन चित्रों में हाड़ौती चित्र शैली और मेवाड़ चित्र शैली का मिलाजुला स्वरूप देखा जा सकता है. हाड़ौती चित्र शैली में कोटा बूंदी और संभाग के हाड़ौती चित्रकला के अंतर्गत आते हैं. यह हाड़ौती चित्र शैली कहलाती है. राजा राव भाऊ सिंह का शासन काल के चित्र शैली का स्वर्ण काल माना जाता है. इनके शासन में पशु पक्षी का चित्र प्रमुख है. मुख्य विषय वस्तु, रागिनी, बारहमासा, नायिका, भेद, रसिक और प्रिया प्रमुख है. इतिहासकारों की मानें तो 1750 में बूंदी के शासक राव उम्मेद सिंह ने इस चित्र शैली का निर्माण करवाया था और बूंदी के तारागढ़ फोर्ट में एक अलग से महल बनाकर इस चित्र शैली की नींव रखी थी.

दम तोड़ रही है हमारी विरासत

बूंदी में राजाओं के जमाने से बनाई गई बूंदी चित्र शैली शासक बदलने के साथ ही और सजने संवरने लगी. बूंदी के शासक रहे राव बहादुर सिंह ने इस चित्र शैली को राज परिवार से अलग कर सरकार के उपक्रम भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन कर दिया था. इसके पीछे बूंदी शासक राव बहादुर सिंह की मंशा थी कि सरकार के अधीन होने के साथ ही इस चित्र शैली को चार चांद लगे रहेंगे. साथ ही मेंटेनेंस सरकारी स्तर पर होता रहेगा और इसकी देखरेख भी होगी. लेकिन बूंदी राज परिवार ने कभी नहीं सोचा था कि उनके द्वारा की गई बूंदी चित्र शैली आज दम तोड़ती हुई चली जा रही है.

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बूंदी फोर्ट में ऊपरी भाग के महल में स्थित यह चित्र शैली अब दम तोड़ रही है. बड़े सारे महल में स्थापित यह चित्र शैली जगह-जगह से जर्जर हो गई है. चित्र शैली के अंदर प्रवेश होने के साथ ही प्रशासनिक अधिकारी की लापरवाही की हालत नजर आने लग जाती है. अंदर परिसर में प्रवेश होते हैं तो जहां पर चित्र है वह धीरे-धीरे लापरवाही से खत्म होने लगे हैं. बूंदी चित्र शैली एक ऐसी चित्र शैली है जो पूरे परिसर में अकरी हुई है. परिसर का लगभग 80% हिस्सा जर्जर हो चुका है.

भारतीय पुरातत्व विभाग के सूत्र बताते हैं कि 1 साल पहले विभागीय अधिकारियों ने इसका सर्वे किया था और विकास कराने की बात कही थी. लेकिन विभागीय अधिकारियों ने दोबारा सर्वे के बाद यहां जाकर नहीं देखा और पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष और हालत दयनीय हो गई है. अगर ऐसे हालात बन रहे तो लगता नहीं कि ज्यादा दिन तक यह चित्र शैली अपना अस्तित्व बचा पाएगी.

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जनता ने उठाई चित्र शैली को संवारने की मांग

बूंदी शहर की जनता ने भी खत्म होती चित्र शैली को संवारने की मांग की है. लोगों का कहना है कि भारतीय पुरातत्व विभाग और सरकार इसको लेकर एक रोडमैप तैयार करें. जिससे चित्र शैली को बचाया जा सके. वर्षों पुराने चित्र शैली ऐसे खत्म होगी तो विरासत में नई पीढ़ी के पास कुछ बचेगा नहीं. यहां पर हर वर्ष हजारों की तादाद में पर्यटक आते हैं और वह बूंदी चित्र शैली को देखते हैं. लेकिन उन्हें चित्र शैली की यह क्षतिग्रस्त अवस्था दुख देती है. शहर की जनता ने मांग की है कि बूंदी चित्रशैली को संवारने के लिए सरकार बजट दें. जिससे इस चित्र शैली को बजट के माध्यम से बचाया जा सके.

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