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गाड़िया लोहार की जिंदगी बदहाल...पढ़िए...बूंदी में 100 परिवारों के संघर्ष की कहानी

आज भी गाड़िया लोहार परिवार किसी संघर्ष भरे जीवन से कम नहीं गुजर रहे है. सरकार लाख दावें करें लेकिन आज दिन तक भी उन योजना का लाभ इन तक नहीं पहुंच पाया है.

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Published : Apr 4, 2019, 12:32 PM IST

आज भी बेघर...गाड़िया लोहार परिवार

बूंदी. महाराणा प्रताप के साथी रहे गाड़िया लोहार का अतीत जितना शौर्यपूर्ण था, आज उनका वर्तमान उतना ही संघर्ष भरा है. गाड़िया लोहार सहित उनकी पूरी पीढ़ी ने वफादारी से महाराणा प्रताप के साथ घर छोड़ दिया था. लेकिन, उस दौर की बात अलग थी. आज भी 500 साल बाद भी ये हालत बदतर बनी हुई है. आज भी गाड़िया लोहार परिवार किसी संघर्ष भरे जीवन से कम नहीं गुजर रहे है. सरकार लाख दावें करें लेकिन आज दिन तक भी उन योजना का लाभ इन तक नहीं पहुंच पाया है.

बस आस लगाए बैठे है यह परिवार की किसी न किसी दिन तो सवेरे होगा और हमें बिजली, पानी, खुद का मकान मिलेगा. इसी आस को लगाए बैठे कई बार रोज सुबह शाम अपनी झुग्गी झोपडी में बैठे रहते है.

आज भी बेघर...गाड़िया लोहार परिवार

बूंदी शहर के पेंच ग्राउंड में करीब 100 परिवार गाड़िया लोहार जाति के झुग्गी झोपड़ी में निवास करते है. लेकिन, किसी के पास जमीन नहीं है. एक झोपड़ी है. जिसमें 3-3 परिवार रहने को मजबूर है. राजस्थान सरकार की ओर से सुरक्षित जीवन यापन के लिए महाराणा प्रताप आवासीय योजना के तहत निशुल्क भूखंड और आवास उपलब्ध कराने की योजना लागू की गयी है, लेकिन उस योजना पर पानी फिरता नजर आ रहा है. सरकार ने महाराणा प्रताप आवास योजना के तहत गाड़ियां लोहार परिवार को आवास के लिए सहायता राशि भी मिलती है. उन्हें जमींन में आवंटित होती है, लेकिन बूंदी नगर परिषद ने अभी तक जमीन को आवंटित नहीं किया है. जिले के माटूंदा रोड पर श्मशान के पास भूमि को आवंटित करने के प्रयास किये जा रहे है. जिसके विरोध में लोहार जाति आ गयी है. उन्होंने ने वहां जाने से मना कर दिया है और कहा है की श्मशान में नहीं रह सकते. हमें दूसरी जगह आवंटित की जाए ताकि योजना में लाभ उठाया जा सकें.

आज भी लोहारी का काम
गाड़िया लोहार परिवार के लोग लोहे के कबाड़े को खरीद कर लोहे को तपाकर उसकी कृषि निर्माण और अन्य औजार के साथ -साथ घरेलू उपकरण बनाने का कार्य शहर की सड़कों पर करते रहते है. इनकी पीढ़ी भी इसी व्यवसायों को बचपन से ही शुरू कर देती है. यह परिवार रोज दो जून की रोटी के लिए खाते कमाते है. इनके बच्चे पढ़ने के लिए भी जाते है, लेकिन मॉनेटरिंग कर आभाव होने के चलते वह ज्यादा दिन स्कूल रूक नहीं पाते. जिससे शिक्षा का स्तर काफी निचला सा हो चुका है. यह लोग आज भी बैलगाड़ियों में अपनी घर गृहस्थी की सामग्री को लेकर मेहनत-मजदूरी करते हुए गांव-गांव में जाकर दिन बिताते हैं. सालभर खुले आसमान के नीचे अपने परिवार के साथ रहते हैं. यहां कुछ परिवार तो आज भी बिना झोपड़ी के निवास कर रहे है. सबसे ज्यादा समस्या बारिश में होती है. कीचड़, पानी भर जाने से मच्छर सहित बीमारी फैलने का अंदेशा रहता है. जिससे वह लोग परेशान होकर बीमार भी पड़ रहे है.

लोहार परिवार का दर्द
यहां के लोगों ने बताया कि आज तक हमारे लिए न तो कोई किसी प्रकार की कॉलोनी बनी है. न ही सरकार ने घर बनवाए गए हैं. रोजगार के साधन नहीं होने के कारण शहर में घूमकर रोजगार की तलाशना पड़ता है, नहीं मिले तो भीख तक मांगनी पड़ती है. परिवार के लोगों ने बताया कि अब तक हमारे पास पक्के मकान नहीं होने के कारण बच्चों को किसके भरोसे छोड़कर जाएं. इसके चलते बच्चों को भी साथ लेकर चलना पड़ रहा है. ऐसे में परिवार के बच्चों की पढ़ाई भी नहीं हो पाती है और वह शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. अगर सरकार हमे आवास योजना के तहत भूखंड दिला दे तो हम वहां रुककर परिवार भी चला ले और हमारे बच्चे भी रूक जाये तो उनकी पढ़ाई भी सकती है, लेकिन पिछले 50 सालों से हम ऐसे ही कचरे में पड़े हुए है. हमें कोई पूछने वाला नहीं है.

नगर परिषद का क्या कहना है जानिए
वहीं नगर परिषद के आयुक्त बृजेश राय का कहना है की मैंने अभी पदभार ग्रहण किया है. ऐसे में कुछ ज्यादा बता नहीं सकता लेकिन इनके लिए जो जमीन आवंटित की वह भूमि किस कारण से इन लोगों ने मना की. उन्हें मैं दिखवाऊंगा और जल्द से जल्द योजना का लाभ मिले ऐसे प्रयास किये जायेंगे. अब देखना होगा की कब इन झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों को कब भूखंड मिलेगा और कब इन्हे मूलभुत सुविधाओं का लाभ मिलेगा या ऐसे ही यह नरकीय जिंदगी जीने को मजबूर होंगे.

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