बीकानेर. सनातन धर्म में ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत किया जाता है. वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए वट वृक्ष या बरगद की पूजा करती हैं.
पति की दीर्घायु के लिए व्रत : पौराणिक मान्यता के अनुसार सावित्री ने अपने पति सत्यवान की यमराज से प्राणों की रक्षा के लिए तीन दिन तक निर्जला व्रत किया था. यह सौभाग्यवती स्त्रियों का व्रत है. उत्तर भारत में ज्येष्ठ अमावस्या और दक्षिण भारत में ज्येष्ठ पूर्णिमा को यह व्रत किया जाता है. पंडित राजेन्द्र किराडू कहते हैं कि शास्त्रों में कहा जाता है कि इस दिन पतिव्रता सावित्री ने अपने पति को यमपाश से छुड़ाया था. समर्थ स्त्रियां तो यह व्रत तीन दिन के लिए (ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से ज्येष्ठ अमाव्स्या अथवा ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से ज्येष्ठपूर्णिमा तक) रखती हैं. इस व्रत के दिनों में स्त्रियां इस मन्त्र से वटसिञ्चन करती हैं.
"ॐ वट सिञ्चामि ते मूलं सलिलैरमृतोपमैः
यथा शाखा प्रशाखाभिः वृद्धोऽसि त्वं महीतले
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा।।
परिक्रमा कर लपेटे सूत : वटसिञ्चन के बाद 5 या 7 बार प्रदक्षिणा करते हुए सूत के सूत्र (धागे) से वट को लपेटना चाहिए. 108 बार परिक्रमापूर्वक वट को धागे से लपेटने की भी प्रथा है. वटसिञ्चन से पूर्व वटवृक्ष के मूल में पूर्वाभिमुख बैठकर तैलदीपक जलाकर वट का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए. इसके बाद सावित्री एवं धर्मराज की भी यथोचित उपचारों से पूजा करनी आवश्यक है. पूजन के बाद सावित्री व्रत कथा सुनने-पढ़ने की भी परम्परा है. इससे पहले व्रत का संकल्प भी लिया जाना चाहिए और इसके लिए इस प्रातः व्रतसंकल्प मंत्र का उच्चारण किया जाता है.