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राजस्थान में यहां 400 साल पुरानी परंपरा है मजेदार...जानिए कैसे खेलते हैं डोलची होली

बीकानेर. होली के मौके पर कई अलग अलग खास आयोजन किए जाते हैं. रंग उड़ाकर धूमधाम से मनाए जाने वाला यह त्यौहार ना सिर्फ देश में बल्कि विदेश में भी जोर शोर से मनाया जाता है. हर मायने में अपनी अलग पहचान रखने वाला होली के त्यौहार का हर को बेसबरी से इंतेजार करता है.

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Published : Mar 19, 2019, 12:19 PM IST

बीकानेर में डोलची पानी का खेल

बीकानेर. होली के मौके पर कई अलग अलग खास आयोजन किए जाते हैं. रंग उड़ाकर धूमधाम से मनाए जाने वाला यह त्यौहार ना सिर्फ देश में बल्कि विदेश में भी जोर शोर से मनाया जाता है. हर मायने में अपनी अलग पहचान रखने वाला होली के त्यौहार का हर को बेसबरी से इंतेजार करता है.

ऐसे ही होली से पहले बीकानेर में होने वाली रम्मत का आयोजन अपने आप में खास है. जिले में होली के मौके पर स्वांग के रूप में खेले जाने वाला फागणिया फुटबॉल भी एक ऐसा ही आयोजन है. इस त्यौहार में होली के साथ कई इतिहास और परंपराएं भी जुड़ी हुई हैं. ऐसी ही एक ऐतिहासिक परंपरा का 400 साल बाद भी लोग निर्वहन कर रहे हैं. बीकानेर में पुष्करणा समाज की हर्ष और व्यास जाति के बीच 400 साल पहले हुआ एक जातीय संघर्ष हुआ था. उस समय परंपरा के रूप में इन दोनों जातियों के लोगों ने एक ऐसा आयोजन शुरू किया जो 400 साल बाद तक भी निभाया जा रहा है. जिसमें डोलची से पाली डाल पर होली खेली जाती है.

बीकानेर में डोलची पानी का खेल

कैसे खेली जाती है ये होली

इस आयोजन में दोनों ही जातियों के लोग एक दूसरे पर डोलची में पानी भरकर फेंकते है, जिसे डोलची पानी का खेल कहा जाता है. डोलची का मतलब यहां चमड़े का बना ऐसा पात्र, जिसमें पानी भरकर सामने वाले व्यक्ति की पीठ पर फेंका जाता है. ऐसे में पेट में जब पानी गिरता है तो दर्द बहुत होता है, लेकिन प्यार और उमंग के आगे इस दर्द का एहसास खत्म हो जाता है. इस अर्जुन को देखने के लिए भी आस-पास के लोग घरों में छत पर खड़े होकर देखते हैं. महिलाएं भी इस आयोजन को देखने के लिए छतों पर मौजूद रहती हैं.

सभी लेते हैं भाग, लेकिन अधिकता इन दो जातियों की रहती है

रंगों के इस त्यौहार में होने वाले इस आयोजन में दोनों ही जाति के लोग बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. हर उम्र के लोग इस आयोजन में अपनी सक्रिय भागीदारी भी निभाते हैं. समय बीतने के साथ धीरे-धीरे अब इस आयोजन में इन दो जातियों के अलावा भी लोग शामिल होने लगे हैं. फिर भी इस आयोजन में पुष्करणा समाज की हर्ष और व्यास जाति को लोगों की ही अधिकता रहती है.

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