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स्पेशल रिपोर्ट: दुख, दर्द और बीमारी दूर करता है 'गवरी नृत्य' - gawri dance of bhilwara

राजस्थान अपनी परंपरा और संस्कृति के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. गवरी नृत्य यहां के पारंपरिक नृत्यों में से एक है. इसी के चलते भीलवाड़ा में भील समाज के लोगों ने श्री खेड खुट माताजी के मन्दिर पर गवरी लोक नृत्य का आयोजन किया गया. भील समाज की परंपरा के अनुसार भगवान शंकर को साक्षी मानकर गांव में बीमारी की रोकथाम के लिए हम धार्मिक स्थान पर गवरी नृत्य किया जाता है.

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Published : Sep 26, 2019, 11:47 AM IST

भीलवाड़ा.शहर के संजय कॉलोनी में स्थित खेड़ाखुट माताजी के मंदिर में समाज के लोगों ने गवरी नृत्य का आयोजन किया. जिसमें शहर के सैकड़ों महिला-पुरुष और बच्चे नृत्य देखने पहुंचे. गवरी नृत्य को देखकर सभी भाव-विभोर हो गए.

भील समाज की अनूठी परंपरा

गवरी नृत्य में 30 कलाकारों का एक समूह होता है. इस नृत्य में भाग लेने वाले कलाकारों के लिए बहुत कड़े नियम होते हैं. जो भी गवरी नृत्य करते हैं, उन्हें इस दौरान एक माह तक हरी सब्जियों और मांस मदिरा का त्याग करना पड़ता है. साथ ही दिन में एक बार ही भोजन ग्रहण करना होता है. नर्तकों को हमेशा नंगे पाव रहना पड़ता है. इतना ही नहीं ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए अपने परिवार से दूर भी रहना होता है.

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दुख, दर्द और बीमारी दूर करता है गवरी नृत्य

भील समाज के लोगों का मानना है कि क्षेत्र में लोगों में दुख, दर्द और बीमारी नहीं फैले. इसी मंशा के साथ हम भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती का अभिनय कर लोगों को नशा मुक्ति का संदेश देते हैं. इस अभिनय को करने वाले सभी सदस्य पुरुष होते हैं जिसमें से कुछ महिला का किरदार भी निभाते हैं. 40 दिन के बाद यह माता की शाही सवारी के साथ जल में विसर्जित कर दिया जाता है. समाज की मान्यता है कि हमारी माता गोरजा माता लड़ाई-झगड़े और दु:ख से छुटकारा दिलाती है.

गवरी नृत्य कर भगवान शंकर को कर रहे याद

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गवरी के आयोजन कर्ता ने बताया है कि गोरजा माता पार्वती की बहन है, जो कैलाश पर्वत से उनसे मिलने आती थी. बहन को सबसे मिलाने के लिए मेवाड़ में जगह-जगह गवरी खेल का आयोजन किया जाता है. यह आयोजन 40 दिन तक चलता है. इस नृत्य करने से परिवार में सुख शांति समृद्धि आती है.

33 करोड़ देवी-देवताओं को साक्षी मानकर करते हैं नृत्य

गवरी नृत्य करने वाले कलाकार शोभा लाल ने ईटीवी भारत से खास बातचीत करते हुए कहा कि यह नृत्य भादवा माह में किया जाता है. जिसमें हम भगवान भोलेनाथ का अभिनय करते हैं. हम पूरे क्षेत्र में सभी धार्मिक स्थानों पर यह नृत्य करते हैं. गवरी कलाकार मोहनलाल का कहना है कि गवरी का खेल पुरखों के समय से ही भील समाज के लोग ही करते आ रहे हैं. इसमें 33 करोड़ देवी-देवताओं को साक्षी मानकर अभिनय किया जाता है.

गवरी कलाकार मोहनलाल ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए

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गौरतलब है कि भील समाज के लोग एक तरफ तो प्रदेश की परपंरा को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने का प्रयास भी कर रहे हैं. अब देखना यह होगा कि गवरी नृत्य से समाजिक बुराईयां समाप्त होती हैं या नहीं. भील समाज का यह अनूठा प्रयत्न कितना कारगर साबित होता है, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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